तैं कहाँ चले संगवारी मोर कुरिया के उजियारी तैं कहाँ चले संगवारी॥ चाँद सुरज ला सखी धर के, भाँवर सात परायेन अगिन देवता के साम्हू मां, बाचा सात बंधायेन मोर जिनगी के फुलवारी तैं कहाँ चले संगवारी। एक डार के फूल बरोबर सुखदुख संगे भोगेन कोनो के अनहित ला रानी कभू नहीं हम सोचेन मोर कदम फूल के डारी, तैं कहाँ चले संगवारी। हाय हाय मोर किसमत फूटिस, फूटिस दूध के थारी बाग-बगीचा सबो सुखागै, उजर गइस फुलवारी मोरे जनम जनम के प्यारी कहाँ संगवारी। चंदा-सूरुज सब्बे सुतगे, बूतिस दिया…
Read MoreTag: Pyare Lal Gupt
साहित्यिक पुरखा के सुरता : प्यारेलाल गुप्त
झिलमिल दिया बुता देहा गोई, पुछहीं इन हाल मोर तौ, धीरे ले मुस्क देहा। औ आँखिन आँखिन म उनला, तूं मरना मोर बता देहा।। अतको म गोई नइ समझें, अउ खोद खोद के बात पुछैं। तो अँखियन म मोती भरके, तूं उनकर भेंट चढ़ा देहा।। अतको म गोई नइ समझें, अउ पिरीत के रीत ल नइ बूझें। एक सुग्घर थारी म धरके, मुरझाए फूल देखा देहा।। गोई, कतको कलकुत उन करहीं, बियाकुल हो हो पाँ परहीं। तौ काँपत काँपत हाँथ ले तूं, झिलमिल दिया बुता देहा ।। -0- घर उज्जर…
Read More