हरितालिका व्रत (तीजा)

भादो महीना अंजोरी पाख के तीजा के दिन सधवा माईलोगन मन अपन अखण्ड सुहाग के रक्षा खातिर श्रध्दा भक्ति ले हरितालिका व्रत (तीजा) के उत्सव ल मनाथें। शास्त्र पुरान म सधवा-विधवा सबे ये व्रत ल कर सकत हें। कुमारी कइना मन घलो मनवांछित पति पाय खातिर ये बरत ल कर सकत हें, काबर के कुंवारी म ही ये बरत ल करके पारबती जी ह भगवान शंकर ल पति के रूप म पाय रहिस। आज के दिन माईलोगिन मन ल निराहार रहना पड़थे। पानी ल नई पिययं। निर्जला व्रत ल करथें।…

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सावन के तिहार

सावन सोमवार- सावन महीना म भगवान संकर के पूजा करे के बिसेस महत्तम हे। रोज-रोज पूजा नई कर सके म मनसे मन ल हरेक सम्मार के सिवपूजा जरूर करना चाही। बिधान- सम्मार के दिन सिवजी के माटी के मूर्ति बना के जेकर संख्या एक या ग्यारह रहय। कोपरा म पधरा के पंचामृत ले स्नान कराके फेर आरुग पानी ले नहवावय। बाद म चंदन, फूल, चाउंर, कपड़ा चढ़ा के मंत्रोपचार पूजा करके आरती करय अउ भगवान के स्तुति करय-

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माँ-छत्तीसगढ़ के महत्व

जेन ह जिनगी भर लइका ल देते रहिथे। तभे तो प्रसाद जी कहे हे अतेक सुग्घर के मन म वोला गुनगुनाते रहाय तइसे लागथे इस अर्पण में कुछ और नहीं, केवल उत्सर्ग छलकता है। मैं दे दूं और न फिर कुछ लूं, इतना ही सरल झलकता है। व्यास जी कहे हे- ‘गुनी लइका ह दाई अऊ ददा दूनू ल एक संग देखय त पहिली दाई ल परनाम करय पीछू ददा ल।’सुग्घर समाज म पढ़े-लिखे लइका मन जहां अपन पांव म खड़ा हो जाथे तहां अपन जनम देवइया महतारी ल अपन…

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बरी बिजौरी करत हे चिरौरी

कहां नंदागे चरौंटा भाजी अउ गुरमटिया के भात। लागय सुग्घर खोटनी भाजी, खोटनी बरी संग भात। अब तो सुरता रहिगे, रंधनी घर के सेवाद सिरागे। सि रतोन बात ताय। तइहा-तइहा के बरी-बिजौरी ल खाय बर जे जुन्ना मनखे बांचे हे ते मन तरस गे हे। डुबकी, चीला, बूंदिया, भजिया के कढी घला आज रंधनी घर ले परा गे हें। जे दू-चार झन सियनहा बांचे हे ते मन कहूं खाय के सउख कर पारही त आज के बोहो-बेटी मन चिटपोट नइ करयं अउ बपुरा सियनहा जीभ ल चांटत अपन पानी ल…

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जइसे खाबे अन्न तइसे बनही मन

‘सेठ ह कहिथे- महंतजी, मे ह चोरी के बाहना बिसाय रहेंव व वोमा मोला अड़बड़ फायदा होइस तेकरे सेती में ह मंदिर म दान दे रहेंव। महंत जी वो अनाज के प्रभाव ल समझिस’ हमर खवई पिययि ह हमर मन का बनाथे- बिगाड़थे एकरे सेती हमर सास्त्र-पुरान ह खाय-पिये म पबरित रहय। अइसे बताय हे। जेन धन ले अनाज बिसाय गे हे वोकरो असर ह मनखे के मन ल परभावित करथे। वृन्दावन (उ.प्र.) के घटना आय- एक मंदिर म एक झन महात्मा रहत-रहय। एक रात के घटना आय वो ह…

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डॉ. सम्पूर्णानन्द के आस्था : नान्हे कहिनी

स्वाधीनता सेनानी डॉ. सम्पूर्णानंद के अपन देस के संस्कृति म खूब सरधा रहिस। वोकर इच्छा रहिस के हमर देस ह राजनीति भर म नहीं भलुक संस्कृति जेन हमर देस के हे वोहू म तरक्की करय अउ स्वतंत्र भारत म भारतीय सिक्षा नियम लागू होवय। देस जइसने आजाद होइस। डॉ. सम्पूर्णानंद उत्तर परदेस के सिक्षा मंत्री बनिस। वोकर कार्यकाल म कोनो बिस्वविद्यालय के कुलपति वोकर सोज मिले बर आइस। डॉ. साहेब उंकर संग शिक्षा भारत म कइसे दे जाय ये बिसे मे बातचीत सुरू करिन। उन कहिन- अंग्रेज मन जेन पध्दति…

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भाव के भूखे भगवान – नान्हे कहिनी

एक समे के बात आय, एक झन नानकुन लइका पेड़ तरी बइठे रहय अउ का जानी काय-काय बड़बड़ावत रहय। उही करा एक झन महराज रद्दा रेंगत पहुंचगे। वो ह देखिस वो लइका ह कुछु-कुछु अपने अपन बड़बड़ावत हे। वो ह पूछिस- कस बाबू तैं अकेल्ला बइठे काय बड़बड़ावत हस? वो लइका कथे महाराज! मोर दाई ह मोला कहे जे जब ते ह अकेल्ला रहस त भगवान सोज बात करे कर। वो काहना ल मान के ये ह भगवान कर गुठियावत रहेंव। लइका के बात ल सुनके महाराज ह कथे- सुन…

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पेड़ लगावा जिनगी बचावा

‘पेड़ लगाए के महत्त बहुत हावय। जेन पेड़ ल लगाये जाथे ओखर उपयोग मनखे ह कोनो न कोनो रूप म करथे। पीपर लगइस त सरीर ल दिन रात जीवनदायनी आक्सीजन मिलत रहिथे त वोकर उमर ह बाढ़ जथे वो ह सुवस्थ रहिथे। ऐखरे बर कहे गे हावय के पीपर पेड़ लगइया हजारों बछर ले पताल लोक म निवास करथे। ये बात ब्रह्मव्रर्त पुरान म लिखाय हावय’ पेड़ परानी मन बर बहुत उपयोगी हे। तेखरे सेती हमर रिसी मुनि मन पेड़-पौधा के पूजा करे के विधान बना दे हांवय। मनखे के…

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अनुवाद : बारह आने

(मोरेश्वर तपस्वी ”अथक” द्वारा लिखित ”बारह आने” का अनुदित अंश) वो ह मोर हाथ ल धरलिस अउ एक ठन छोटकन पुड़िया दे के मोर मुठा ल बंद कर दिस अउ कहिस- बाबू जी, आज मोर मंसा ह पूरा होगे। मैं तुम्हीं ल खोजत रहेंव। आज मिलगेव। ये पुड़िया म तुंहर बारा आना ह हावय। बाबूजी, मैं गरीब हंव फेर काकरो उपकार ल रखना नइ चाहवं। दू महीना बनी करके मैं ये बारा आना ल बचाय हांवव। संझा के बेरा रहिस। अगास करिया-करिया बादर छाय रहिस। बादर ल चीर के सुरुज…

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राघवेन्द्र अग्रवाल के गोठ बात : जान न जाइ नारि गति भाई

एक ठन गंवई रहय। उहां मनसे परेम लगा के रहत रहंय। एक दुसर के सुख-दु:ख म आवंय-जायं, माई लोगिन, बाब पिला मन घला संघरा गुठियावयं बतावयं, कोनो ल काकरो ऊपर सक-सुभा नि रहय, फेर परेम के पूरा ह काला अपन डहर तिर लिही तेला कोनो नि जानंय, इही कथें आयं, कहत बांय हो जाथे कहिके। वो गांव म एक झन पुरोहित रहय। कथा वार्ता कहयं घर-घर जाके अऊ अपन गिरस्थी के गाड़ी ल चलावत रहय। वोला अडबड़ दिन ले को जानी का बात वोकर मन म रहत ते, अपन गोसइन…

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