कारी गाय के बहुत महत्व हावय। कारी गाय के तो अतका महिमा हे के वोकर दूध अऊ कारी तुलसी के पत्ती ल छै महिना तक खाय त कैंसर तक ठीक हो जाथे अइसे काशी नगरी के प्रख्यात वैद राजेश्वर दत्त शास्त्री के कहना हे। एक समे रहिस जब मनसे प्रकृति के संग म रहय तेखर सेती उनकर जिनगी सहज, सरल रहय। वो समे म गउ माता के पूजा करंय वोला महतारी मानंय, उंकर दे दूध, दही, घीव ल पी खा के मनसे तंदुरुस्त रहंय। महाभारत म गउ माता के बिसे म…
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संस्कार अउ संस्कृति : गोठ बात
जब काकरो सन गुठियावन त हम का बोलतहन तेकर ऊपर धियान रहय वो हमर कर्म बनथे। अपन करनी ल जांचन वो ह हमर आदत बनथे। अपन आदत ल परखना चाही वो हमर चरित्र के निरमान करथे। आज के समे म ये देखे बर मिलत हे, के हमार विचार म आधुनिकता समाधन हे अउ हमर संस्कार अउ संस्कृति ह भागत जात हे। अइसन म नवा पीढ़ी ल अपन करतब के गियान कइसे होवय? बिचार करे म अइसे लागथे के आज के पढ़ई-लिखई सदाचरन या अइसे कहन के संस्कारी बनाय म उपयुक्त…
Read Moreअक्षय तृतीया
(बैसाख अंजोरी पाख तीज) भविष्य पुराण म लिखे हे के आज के दिन त्रेतायुग प्रारंभ होय रहिस हे। आजे के दिन भगवान परसुराम के घला अवतार होय रहिस हे। तेखरे सेती अक्ति के दिन ल अबूझ मुहुरत माने गे हे अउ एमा बर बिहाव मंगल कारज ल बिन मुहुरूत देखे करथें। बैसाख अंजोरी पाख के तीज के दिन ये तिहार ल मनाय जाथे। अक्ती तिहार ह बसंत ऋतु अउ ग्रीष्म ऋतु के संधिकाल आय। नारद पुराण, भविष्य पुराण म एकर बिसद विवरन पढ़े बर मिलथे। आज के दिन करे दान…
Read Moreजइसे खाय अन्न वइसे बनही मन
अहार के मनसे के जिनगी म परभाव परथे। ईमानदारी ले कमई करके बिसाय धन ले बनाय खाय के अलगे असर परथे। ये असर हमला दिखय नहीं, फेर जेखर जिनगी तप के परभाव ले सुग्घर हो गे हे उंकर म एक परभाव तुरते दिखथे। एला समझे खातिर वृन्दावन के एक ठन किस्सा बतावत हंव बिचार करिहा। उहां के मंदिर म एक झन महात्मा रहत रहंय। एक रात के उन सुते रहिन। एकाएक उंकर मन म भगवान के गहना-गूठा ल चोराय के बिचार उठे लागिस। फेर का कथस मन के कहना ल…
Read Moreजइसे खाय अन्न वइसे बनही मन
अहार के मनसे के जिनगी म परभाव परथे। ईमानदारी ले कमई करके बिसाय धन ले बनाय खाय के अलगे असर परथे। ये असर हमला दिखय नहीं, फेर जेखर जिनगी तप के परभाव ले सुग्घर हो गे हे उंकर म एक परभाव तुरते दिखथे। एला समझे खातिर वृन्दावन के एक ठन किस्सा बतावत हंव बिचार करिहा। उहां के मंदिर म एक झन महात्मा रहत रहंय। एक रात के उन सुते रहिन। एकाएक उंकर मन म भगवान के गहना-गूठा ल चोराय के बिचार उठे लागिस। फेर का कथस मन के कहना ल…
Read Moreसुन्ना कपार – उतरगे सिंगार
”मास्टरिन के बात ल सुन के मैं ह खुस होगेंव के देखव तो अब इंकर मन म जागे के चिनगारी उठत हे। जेन माइलोगिन निंदा-चारी के परवाह नई करके समाज अउ परिवार संग जुझथे वो ह अवइया कतेक माइलोगिन मन बर रद्दा बना देथे। कतको सिक्छित माइलोगिन मन ल कपार ल जुच्छा नि राखंय अउ बिंदी टीका लगाथे।” मे-ह अंध बिसवास ले दुरिहा रथौं। अउ जेन मोर करा अपन दु:ख ले उबरे के उपाय पूछे बर आथे तेन मन ल घला मे-ह ये समाज के दकियानूसी दुरिहा रहे के सलाह…
Read Moreनान्हें कहिनी गुरुजी के सीख – राघवेन्द्र अग्रवाल
”बेटा तें ह किसानी म झिन पर गा, ऐमा गुजारा नि होवय, कछेरी म बाबू बन जा त रटाटोर पइसा पाबे अउ हमर हालत सुधर जाही। ओकर बाबू कथे-ददा! ते किसानी ल अपन ढंग ले करत रहे, में ह तो किसानीच्च करिहा। ते देखबे तो कइसे हमर दसा ह नि सुधरही तेला। ए क दिन गुरूजी ह अपन कक्षा के लइकामन सोज पूछिस-”तुमन पढ़ के काय बनना चाहत हो? लइकामन कथें- गुरूजी में डाक्टर बनिहां। गुरूजी में मिस्त्री बनिहां। एक झिन लइका कथे-”गुरूजी मोर घर म किसानी हे मे ह…
Read Moreपढ़व, समझव अउ करव गियान के गोठ -राघवेन्द्र अग्रवाल
एक बखत के बात ये, संतखय्याम ह अपन एक झन चेला संग घनघोर जंगल के रद्दा ले जात रहिस हे। नमाज पढे क़े बेरा म दूनू गुरू-चेला नमाज पढ़े बर बइठिन तइसने उनला बघवा के गरजना सुने बर मिलिस अउ थोरेकच्च म देखिन के बघवा ह उंकरे डहर आवत हे। चेला ह डर के बारे एकठन रुख म चढ़गे जबके वोकर गुरू खय्याम ह धियान लगा के नमाज ल पढ़त रहय। बघवा वो करा आइस अउ चुपचाप चल दिस। बघवा के जाय बाद चेला ह रुख ले उतरिस अउ नमाज…
Read Moreदुखिया बनगे सुखिया – राघवेन्द्र अग्रवाल
तइहा-तइहा के बात ये एक ठन गांव म एक झन माई लोगिन रहय। भगवान ह वोकर सुख-सोहाग ल नंगा ले रहय। वो ह अकेल्ला अपन जिनगी ल जियत रहय। वोकर एक झन बेटा रहय, नाव रहिस लेड़गा। ‘जइसना नाव तइसना गुन’ तभो ले वोकर दाई ह वोला अड़बड़ मया करय। दिन जात बेर नि लागय। नानकन ले बड़े होगे। महतारी ह वोकर लेड़गई ले संसो म परगे । कमाय-धमाय बर जांगर ह नइ चलय। ढिल्ला गोल्लर कस गिंदरत रहय। वोकर दाई सुकवारो ह मन म भंजाइस के अब ये टूरा…
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