ऐ दाई ते हरह सुने हस का वो? काय रे? ऐती वोती चारों कोती, ‘स्वाइन फ्लू’ है बगरत हावय काय फूल रे? बने तो हे रे! फूल बगरत हावय त चारो कोती बने ममहाही वइसने आजकल पढ़े लिखे मन घलो कचरा ल जम्मो डाहर फेंक देथे अउ हमन अनपढ़ होके घलो घुरूवाच म डारथन। नहीं दाई, फूल नहीं वो ‘स्वाइन फ्लू’ एक ठन वाइरस हावय तेन ह सब झन ला अपन बस मा करत हावय, अउ मारत हावय। आदमी-औरत मन एक दूसर ल अपन बस मा करथे तेला सुने रेहेंव…
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