कहिनी : दोखही

हिम्मत करत रमेसर कहिस, आप मन के मन आतीस तब चंदा के एक पइत अऊ घर बसा देतेन। वाह बेटा वाह तयं मोर अंतस के बात ल कहि डारे। जेला मय संकोचवस कहूं ला नई कहे सकत रहेंव तयं कहि डारे बेटा बुधराम गुरूजी कहिस। मयं तोर बात विचार ले सहमत हंव फेर मोर एकठन शर्त हे। बर- बिहाव म जतका खरचा होही तेला मंय खुद करिहंव। चंदा ल बहुरिया बना के लाय रहेंव बेटी बना के कनियादान मंय खुद करिहंव।’ रमेसर के दाई बिराजो ला, बेटी अवतारे के बड़…

Read More

कबिता : बसंत गीत

मउरे आमा गमके अमरइया झेंगुरा गावथे छंद। गुन गुनावत भंवरा रे चुहके गुरतुर मकरंद॥ प्रकृति म समागे हे, ममहई सुगंध। आगे संगी येदे आगे रे, रितु राज बसंत॥ पेड़ ले पाती हा झरगे हे। तेंदू लदा-लद फरे बोईर बिचारी निझरगे हे। परसा ललियावत खड़े॥ चना गहूं झुमय नाचय जी, मउहा माते मंगत। आगे संगी ये दे आगे रे, रितु राज बसंत॥ मुड़ मं मउर खाए आमा। बने दुलहा-डउका गावय गारी बरोड़ा पाये ठउका मउका॥ उलुहा पाना पंखा डोलावय जी सुरूज करे परछन। आगे संगी ये दे आगे रे रितु राज-…

Read More