छत्तीसगढ़ी साहित्य में काव्य शिल्प-छंद

– रमेशकुमार सिंह चौहान छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ प्रांत की मातृभाषा एवं राज भाषा है । श्री प्यारेलाल गुप्त के अनुसार ‘‘छत्तीसगढ़ी भाषा अर्धभागधी की दुहिता एवं अवधी की सहोदरा है।’’1 लगभग एक हजार वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ी साहित्य का सृजन परम्परा का प्रारम्भ हो चुका था। अतीत में छत्तीसगढ़ी साहित्य सृजन की रेखायें स्पष्ट नहीं हैं । सृजन होते रहने के बावजूद आंचलिक भाषा को प्रतिष्ठा नहीं मिल सकी तदापि विभिन्न कालों में रचित साहित्य के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। छत्तीसगढ़ी साहित्य एक समृद्ध साहित्य है जिस भाषा का व्याकरण हिन्दी के पूर्व…

Read More

गीत-“कहां मनखें गंवागे” (रोला छंद)

दिखय ना कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। दिखय ना कोनो मेर, हवय के नाव बुतागे खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। जंगल झाड़ी खार, डोंगरी मा जा जाके । सहर सहर हर गांव, गीत ला गा गाके ।। इहां उहां खोज, मुड़ी हा मोर पिरागे । खोजव संगी मोर, कहां मनखे गंवागे ।। रद्दा म मिलय जेन, तीर ओखर जा जा के । करेंव मैं फरियाद, आंसु ला ढरा ढरा के । जेला मैं पूछेंव, ओखरे मतिच हरागे । खोजव संगी…

Read More

मुर्रा के लाड़ू : नान्हे कहिनी

घातेच दिन के बात आय। ओ जमाना म आजकाल कस टीवी, सिनेमा कस ताम-झाम नई रहिस। गांव के सियान मन ह गांव के बीच बइठ के आनी-बानी के कथा किस्सा सुनावयं। इही कहानी मन ल सुनके घर के ममादाई, ककादाई मन अपन- अपन नाती-पोता ल कहानी सुना-सुना के मनावयं। लइका मन घला रात-रात जाग के मजा ले के अऊ अऊ कहिके कहानी सुनयं। ओही जमाना के बात ये जब मैं छै-सात बरस के रहे होहूं । हमन तीन भाई अऊ ममा के तीन झन लइका। ममादाई ले रोज सांझ होतीस…

Read More

गांव होवय के देश सबो के आय

मनखे जनम जात एक ठन सामाजिक प्राणी आवय । ऐखर गुजारा चार झन के बीचे मा हो सकथे । एक्केला मा दूये परकार के मनखे रहि सकथे एक तन मन ले सच्चा तपस्वी अउ दूसर मा बइहा भूतहा जेखर मानसिक संतुलन डोल गे हे । सामाजिक प्राणी के सबले छोटे इकाई घर परिवार होथे, जिहां जम्मोझन जुर मिल के एक दूसर के तन मन ले संग देथें अपने स्वार्थ भर ला नई देखंय कहू कोनो एको झन अपन स्वार्थ ला अपन अहम ला जादा महत्व दे लगिन ता ओ परिवार…

Read More

छत्तीसगढ़ी तांका

1. का होगे तोला मन लइ लागे हे काम बुता मा कोनो चोरा ले हे का मया देखा के। 2. मया के फांदा मैं हर फसे हंव आंखी ला खोले निंद मा सुते हंव देखत ओला । 3. तोर आंखी मा उतर के देखेंव थाह नइ हे डूबत हंव ओमा मया के मारे । 4. दिल हरागे मया मा सना के गा बेजान देह गारी देवा के गल्ला का मतलब । रमेशकुमार सिंह चौहान मिश्रापारा नवागढ, जिला-बेमेतरा मो 9977069545

Read More

छत्तीसगढ़ी कुण्डलियां

छत्तीसगढ़ी हे हमर, भाखा अउ पहिचान । छोड़व जी हिन भावना, करलव गरब गुमान ।। करलव गरब गुमान, राज भाषा होगे हे । देखव आंखी खोल, उठे के बेरा होगे हे ।। अड़बड़ गुरतुर गोठ, मया के रद्दा ल गढ़ी । बोलव दिल ला खोल, अपन ये छत्तीसगढ़ी ।। भाखा गुरतुर बोल तै, जेन सबो ल सुहाय । छत्तीसगढ़ी मन भरे, भाव बने फरिआय ।। भाव बने फरिआय, लगय हित-मीत समागे । बगरावव संसार, गीत तै सुघ्घर गाके । झन गावव अष्लील, बेच के तै तो पागा । अपन मान…

Read More