अनुवाद : तीसर सर्ग : सरद ऋतु

कालिदास कृत ऋतुसंहारम् के छत्तीसगढ़ी अनुवाद- अओ मयारुककांसी फूल केओन्हा पहिरे,फूले कमल कसहाँसत सुघ्घर मुंहरनमदमातेहंसा के बोली असछमकत पैजनियां वालीपाके धान के पिंवरी लेसुघ्घर येकसरी देंह केमोहनी रूपनवा बहुरिया कससीत रितु ह आगे। सीतरितुआय ले कांसी फूल ले धरतीचंदा अंजोर म रतिहाहंसा मन लेपानी नदिया के कुई ले तरियाफूल म लहसे छतवन ले बन अउमालती ले बाग बगइचा हरचारों खूंट हो गेहे उज्जर फर-फर। ये बेरा म तुलमुलही, मन भावननान-नान मछरी के करधन चारों खूंटअंडा लर के उज्जरमाली पहिरेचाकर पाट कसकनिहावालीबिन सउर केमोटियारिन कसधीरे-धीरे रेंगत हेनदिया। चांदी, संख अउ कमल कसउज्जरपानी…

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