शहर म एक झन लंगड़ा भिखारी रहय। जम्मो मनखे मन ओला लंगड़ा भिखारी कहिके पुकारय। भिखारी ह हमेशा खुसी-खुसी के जीवन बितावय, कभू घुस्सा नई करय। भिखारी शहर के दुरिहा म एक ठन झोपड़ी म राहय। झोपड़ी ह कुड़ा-करकट के ढेर के बीच म एक ठन पेड़ के तरी रहिस हे। लंगड़ा भिखारी के झोपड़ी म खाना पकाय के टूटे-फूटे बरतन अउ एक दू ठन चिरहा कपड़ा रहय। भिखारी ह हर दिन बिहनिया नहा-धो के आठ बजे ले अपन भोजन खातिर सहर के जम्मो दरवाजा म भीख मांगे बर जाय…
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- Ravishankar Chandrakar