सनत के छत्‍तीसगढ़ी गज़ल

1 डहर-डहर मं घन अंधियार होगे,बिहनिया हमर नजर के पार होगे।जेखर उपर करत रेहेंन विसवास,वो हर आजकल चोर-बटपार होगे।पहिरे हावय वो हर रंग-रंग के मुखउटा,चेहरा हर ओखर दागदार होगे।जॉंगर टोरथन तभोले दाना नइ चुरय,जिनगी हमर तो तार-तार होगे।मर-मर के जीना कोन्‍हों हमर ले सीखय,हमर बर जीत ह घलो हार होगे।गलती करके मूड़ मं चघा पारेन,वो ह हमरेच्‍च मुड़ के भार होगे।घर गोसिया ल पहुना ह डरवावय,अब तो जेखर मार तेकर सार होगे। 2 इहॉं आके संगी तैं का पाबे,अलकरहा जिनगी पहाबे।आसा के महल धसक जाही,सपना ला देखत रहि जाबे।कतको कमाबे…

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