सरला शर्मा का यह छत्तीसगढ़ी उपन्यास अपनी विशिष्ट शैली के कारण पठनीय है। यह उपन्यास यात्रा- संस्मरण का पुट लिए हुए सास्कृतिक-बोध के लिए आधार-सामग्री प्रदान करता है। छतीसगढ़ की सास्कृतिक चेतना का स्वर उपन्यास के पात्रों, स्थलों और उसकी भाषा में गूंजता दिखाई देता है। इस उपन्यास में शासन के स्तर की अनेक योजनाओं का प्रचार-पसार है तो दूसरी ओर गाँवों के समग्र विकास का सपना भी है। इस सपने को हकीकत में बदलने की कोशिश की कुछ झलक भी इसमे प्रदर्शित है। छत्तीसगढ़ की जांज़गिरी मिठास इस उपन्यास…
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गांव-गंवई के बरनन- मिश्र के कविता में – सरला शर्मा
तेईस दिसंबर सन् उन्नीस सौ तीस म जाज्वल्यदेव के ऐतिहासिक नगरी जांजगीर के बाह्मनपारा म रहइया स्व. कन्हैयालाल मिश्र अऊ श्रीमती बहुरादेवी के घर अंजोर करइया बेटा जनमिस। महतारी-बाप के खुसी के ठिकाना नइ रहिस। आघू चल के विद्याभूषण जी अपन नांव के मरजाद राखिस अऊ छत्तीसगढ़ के प्रसिध्द लोकप्रिय गीतकार बनिस जिनला आज हम विद्याभूषण मिश्र के नाव से चिन्हथन। उन पहिली कविता 1946 मं बसन्त ऋतु पर लिखिन फेर कक्षा 11वीं म 1947 म सरस्वती वंदना लिखिन। अइसे लागथे वो दिन सरसती दाई संवागे आके उनकर मूंड़ म…
Read Moreसुन संगवारी
सुन संगवारी सरला शर्मा के कविता, निबंध अउ कहानी के संघरा किताब
Read Moreहमर पूंजी व्यवस्था में चीनी सेंधमार
लिखइया सरला शर्मा आज हमर विदेशी मुद्रा भण्डार 278.6 अरब डालर है जेहर छय सात महीना के आयात बर पुरही। फेर सुरता करिन तो सन् 1991 मं एहर 60 करोड डालर तक गिर गये रहिस। तभो गुने बर परत हे आघूं अवइया गर्रा धूंका हर हमर का हाल करही? दूसर बात के कारखाना मन के कम होवत उत्पादन, घटत पूंजी निवेश, बाढ़त महंगाई अऊ संसार के बजार मां रूपिया के घटत कीमत ये सबो के सीधा असर आम आदमी उपर परत हे। ए तरह के बिगड़त हालत मं घटत औद्योगिक…
Read Moreपढ़ई-लिखई : सरला शर्मा
मुगल बादशाह हुमांयू ल हरा के शेरशाह सूरी जब दिल्ली के गद्दी म बइठिस त उपकारी भिश्ती ल एक दिन के राज मिलिस चतुरा भिश्ती राज भर म चमड़ा के सिक्का चलवा दिस एला कहिथें नवा प्रयोग। आजकल हमर देस म पढ़ई-लिखई के ऊपर अइसनेहे नवा-नवा प्रयोग होवत रहिथे। आजादी मिले साठ बरिस पूर गे फेर आजो सिक्छा के सरुप हर जनकल्याणकारी नई होये हे। सन् 1993 म 14 साल तक के लइका मन बर मुफ्त अउ अनिवार्य सिक्छा ल मौलिक अधिकार के दर्जा मिल गइस। उत्ता धुर्रा गांव-गांव म…
Read Moreपुस्तक समीक्छा : धनबहार के छांव म
धनबहार के छाँव म- सुधा वर्मा प्रकाशन मुद्रण एवं वितरण- पहचान प्रकाशन मूल्य- 200 रुपए ये धरती म मनखे के विकास के संगे-संग कहिनी के जनम अऊ विकास के कहिनी सुरू होइस होही। काबर के मनसे जौन देखथे, सुनथे, गुनथे, अनुभव करथे तेला दूसर संग बोलथे, बतियाथे एकरे नांव कहिनी आय। भासा के जनम अउ लिपि के विकास के संग कहिनी अपन वाचिक परम्परा ल छोड़ के लिखित रूप म दिखिस। हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दूनों भाषा के सुरूवाती कहिनी मन म संस्कृत के पंचतंत्र, हितोपदेश, कथा सरित्सागर के प्रभाव दिखथे। मोर…
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