बोड़रा नाम के गांव रिहिस जी। उहां दू झन संगवारी रिहिस। एक के नाव बल्लू, दूसर के नाव स्याम। दूनो संगवारी जब समे मिलय, सनझाती बेरा, घूमे बर जाये। बल्लू अनपढ़ गंवार रिहीस, फेर सरीर ले बढ़ तगड़ा। दूसर कोती स्याम पढ़हे लिखे रिहीस, फेर सरीर ले कमजोर। एक दिन, सांझकुन जावत जावत दूनो झिन गोठियावत रिहिस। स्याम किथे – गनेस चनदा मांगे बर काली गांव के लइका मन आये रिहीन जी। में कहि पारेंव, बल्लू जतका दिही ततके महूं देहूं कहिके। मे जानत हंव, तोर मोर हैसियत एके बरोबर…
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