अकती के तिहार आगे। लगन धर के बिहाव आगे। मड़वा गड़गे हरियर-हरियर पुतरा-पुतरी दिखता हे सुग्घर। मनटोरा के पुतरी, जसोदा के पुतरा तेल हरदी चघ गे, दाई दे दे अचरा। जसोदा के पुतरा के बरात आगे बरा सोहारी बराती मन खावथे। तिहारू ह मांदर मंजीरा बजावतथे। मनटोरा के पुतरी के होवथे बिदई कलप-कलप के रोवत हे दाई। नवा बहुरिया संग उछाह आगे अकती के तिहार आगे घर-घर लगन माड़गे। – डॉ.शैल चंद्रा रावणभाठा, नगरी, जिला धमतरी
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डॉ.शैल चंद्रा के किताब : गुड़ी ह अब सुन्ना होगे
संगी हो ये किताब ल बने सहिन पीडीएफ बनाए नइ गए हे, तभो ले डॉ.शैल चंद्रा जी के रचना मन के दस्तावेजीकरण के उद्देश्य से येला ये रूप में हम प्रस्तुत करत हवन। पाछू प्रकाशक या टाईप सेट वाले मेरे ले सहीं पीडीएफ या टैक्स्ट फाईल मिल जाही त वोला प्रकाशित करबोन। 1. सहर के गोठ 14. नंदागे लडकपन 27. भगवान के नांव म 40. आज के सरवन कुमार 2. बैसाखू के पीरा 15. फायदा 28. पढंता बेटा 41. इक्कीसवीं सदी के गंधारी 3. अपन-अपन भाग 16. आज के सीता…
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