शेषनाथ शर्मा ‘शील’ के बरवै छंद

भासा, सहज, सरस, पद, नानक छंद जइसे गुर के पागे सक्‍कर कंद सुसकत आवत होइही भइया मोर छईंहा म रंचक डोलहन लेइहा अगोर मोर नगरिहा ल लागत होइही घाम बैरी बदर ते कस होगे बाम कइसे डहर निहारौ लगथे लाज फुंदरा वाला बजनी पनही बाज बहुत पिरोहित ननकी बहिनी मोर रोई रोई खोजत होइही खोरन खोर तुलसी चौरा के देंवता सालिकराम मइके ससुर के पूरन करिहा काम मोरसुरता म भइया दुख झन पाय सुरर सुरर झन दाईं रोये हाय इहां तौ हाबै काबर दोहिन गाय ननकी बाबू बिन गोरस नई…

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