पंच-पंच कस होना चाही

पंच पंच कस होना चाही, साच्छात परमेस्वर के पद, पबरित आसन येकर हावै, कसनो फांस परे होवे, ये छिंही-छिंही कर सफा देखावै। दूध मा कतका पानी हे, तेला हंसा कस ये अलग्याथे। हंड़िया के एक दाना छूके, गोठ के गड़बड़ गम पाथे।। छुच्छम मन से न्याव के खातिर, मित मितान नइ गुनै कहे मा। पाथै ये चरफोर गोठ म, कला छापाना है का ये मा। एकरे बर निच्चट निमार के, बढ़िया बीज बोना चाही। पंच-पंच कस होना चाही। पंच चुनाई करत समे मे, रिस्ता नता मया झन देखा। चाहे अनबन…

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