एक दिन के बात आय। मैं हर जावत रहेंव आलू बिसाय। झालो घर रटपिट-रटपिट रेंगत हबक ले एक झन मनसे मेर लड़ई खागे। काय-काय समान धरे रहिस। बंदन-चंदन झंडा ला साडा करिया। कस बाबू तैं अतका जल्दी-जल्दी काबर रेंगत हावच बइगा मोला पूछिस। मैं हर न बइगा, आलू बिसाय जावत हवं। झालो घर रांधे बर बेरा होत हावय कहिके जल्दी-जल्दी रेंगत हंव फेर तैं काय-काय धरे हावच। बइगा कहां जावत हस। जगमोहन बइगा कहिबे तै निच्चट बुध्दू हावच जी। आज तो इतवार आय अउ हमार गांव म इतवार तिहार मानत…
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सुक्खा तरिया म पानी
गांव म पहली पानी बिना अकाल परय। जेमा आदमी मन भूख के मारे मरयं। बिना भात-बासी के शरीर एकदम कमजोर हो जाय, जेकर ले आदमी तड़प-तड़प के मर जाय। दुकलहा समय के एक झन सीताराम नाव के डोकरा रहय थोरकिन पढ़े-लिखे रहिसे। सब अपन हालत ल जानत रहिसे दुकाल के दीन ल। एक दिन ये बबा हर बइठक जुरे रहै ते मेरा जाके कइथे-थोरकिन मोरो गोठ ल सुन लेतव जी। महाबीर नाव के एक झन कड़कनहा आदमी हर कइथे- का हो ही बबा! काय गोठे तेन ल बता। बबा सीताराम…
Read Moreसच्चा चेला
सुन्दरपुर म एक झन बहुत बढ़िया साधु रहय। जेन हर रोज भगवान भक्ति म लीन रहय। येकर कुटिया म बहुत झन चेला रहय जेन मन अपन गुरुजी के बताय मार्ग, रस्ता म रेंगय। इही म एक झन किरपाल नाम के चेला रहीस। तेन हर अपन गुरुजी के संझा बिहनिया पांव परय अउ हर कहना ल मानय। एक दिन गुरुजी हर अपन सब चेला ल उंकर-उंकर लईक काम बताईस। सब चेला अपन-अपन काम म चल दीन। बाच गीस किरपाल हर तेन ल गुरुजी हर कइथे- बेटा किरपाल तैं आज सुख्खा-सुख्खा लकड़ी…
Read Moreकबिता : चना-बऊटरा-तिवरा होरा
शहरिया बाबू आइच गांव म।खड़ा होइस बर पिपर छांव म॥ दाई ददा के पाव पलगी भुलागे।बड़ शहरिया रंग छागे॥ये माघ के महिना।पहिने सुग्घर गहिना॥गिरा घुमे फिरे अपन खेत म।छत्तीसगढ़िया रेंगना रेस म॥हेमा पुष्पा मन्टोरिया पोरा।भुंजिस चना बऊटरा तिवरा होरा॥देख के शहरी बाबू पूछय।मगन होके मेड़पार म सुतय॥देख डारिस किरपा डोकरा।पूछे काहा ले आय हे छोकरा॥बड़ हमेरी बोलत हे।किचि पिचि भाखा खोलत हे॥का मिलथे बाबू शहर म।धूल गैस के कहर म॥इहा शुध्द ठण्डा हवा पीले। निरोगी जीवन जी ले॥कुहकय कोयली खार म।बइठ के चा बटर खाले पार म॥ममता मई होथे महतारी…
Read Moreकबिता : बसंत रितु आथे!
हासत हे पाना डारा। लहलहात हे बन के चारा॥ कुद कुद बेंदरा खाथे। रितु राज बसंत आथे॥ चिरई चिरगुन चहके लागे। गुलाबी जाड़ अब आगे॥ लहलहात हे खेत खार। रुख राई लगे हे मेड़ पार॥ पेड़ ले अब गिरत हे पान। अइसे हे बसंत रितु के मान॥ टेसु सेम्हरा कस फूल फूलत हे। कोयली ये डार ले ओ डार झूलत हे॥ झिंगरा मेकरा सब कहय। बसंत ऋतु हरदम रहय॥ न पानी न बादर घाम। दुख शासर न काम॥ फुलगे आमा डारा। कुहकय कोयली बिचारा॥ उड़त हे आसमान म फुतका। कूद-कूद…
Read Moreछत्तीसगढ़ के राजिम धाम
बड़ भाग मानी मानुष तन।नंदिया तरिया कहत हे बन॥जग म होगे कुंभ नाम।मोर छत्तीसगढ़ के राजिमधाम॥ऋषि, मुनि के दरसन पाए।दूर-दूर ले मनसे आए।सरग ले भगवान कुंभ मेला आगे।सब नगर म मंगल छागे॥देख के महादेव कुंभ के गुन गाईचजेन नहाइच त्रिवेणी म तेन सरग पाइच॥इंहा सब सरग लागे।जगा-जगा मंगल गीत बाजे।महानदी सोढुर, खारून नदिया नाम।मोर छग के राजिमधाम॥इंहे हे काशी, इंहे हे मथुरा।आस्था म दीखय देवता पथरा॥महानदी के निर्मल धार।जेकर नहाय ले हो जाही पार॥जिंहा आवत हे ऋषि मुनि नागा।जय शिव शंकर के बाजे बाजा॥धन-धन हे ये नाम।मोर छत्तीसगढ़ के राजिमधाम॥…
Read Moreमन के लाड़ू
रोज बिगड़ई म परिसान होके बिदही तीस हजार म मेटाडोर ल बेच दीस। घर म न चांउर रहीस न दार, उई पइसा ल सब उड़ात गिस। सब पइसा सिरागे त बिदही रोजी-रोटी कमाय जाय लगिस।’समारू ल गांव के सब छोटे बड़े मन बढ़िया मान गौन करयं। समारू हर तको अपन ले बड़े के गोड़ छू के पांव परथे। समारू हर गांव म ककरो घर पर लर जाथे जिहा दंऊड़ के आ जाथे। अपने सब काम ल छोड़ के। ककरो घर चांउर-दार नई रहय त समारू हर चाउर-दार, लकड़ी-फाटा सब दे…
Read Moreआथे गोरसी के सुरता
पागा बांधे बुढ़गा बबापहिरे पछहत्ती चिथरा कुरता।पियत चोंगी तापे खनीयाआथे गोरसी के सुरता॥नंदागे गोरसी नंदागे चोंगी,मन होगे बिमार तन होगे रोगीबदल गे दुनिया बदल गे बारबदल गे बखरी बदल गे खार।नंदागे जाड़ ठंडानंदागे तपई बरई भुर्रीनंदागे झिटी बिनय काड़ी।नंदागे भइंसा बैला गाडी॥अब्बड़ दूर चल दीस गांवबिसरागे हमर आजा पुरखानइए चिमनी दीया के दिनआथे गोरसी के सुरता।धरे बइठे भिंसरहा बबातापत गोरसी बियारा धानसुरता आथे बिसरे गोठहोगे अब अंधयारी रात॥सुखागे नंदिया नरवाटूटगे पियार परवा।बिसरागे पुरवा के बिहावआगे सरकारी मड़वा॥पानी के दिन बादर भागेजाड़ के दिन गर्मी लागेजरोटा मेमरी ल भेड़ी खागेगोरसी के…
Read Moreनान्हे कहिनी : डोकरा-डोकरी के झगरा
डोकरा-डोकरी के झगरागांव म एक ठन घर में डोकरा-डोकरी रहय। एखर मन के लोग-लइका नई रहिस। डोकरा-डोकरी अतका काम-बुता करय के जवान मनखे मन नई कर सकंय। अपन खेत-खार ल अपनेच मन बोवय अपनेच मन निंदय-कोंड़य। बुता-काम ले थोर-बहुत ठलहा होवय त छांव म थोर-बहुत संगवारी मन करा गोठ-बात करे के मन होथे। एक दिन डोकरा हर बुता-काम ले आइस घर म बढ़िया खा के निकलिस बर छांव मेर। जिंहा एक घुमक्कड़ टुरा मन बइठे रहयं। उही मेर रमेश (धोनी) नाम के लपरहा पुच-पुचहा टुरा तको बइठे रहय। अब येती…
Read Moreरूख लगाय के डाढ़ – कहिनी
एक झन पुराना बाबू कहिस रूख के बदला हमन ला रूख लगा के दिही। अब तुंहर काय विचार हे अब तुमन बतावव। गांव के पंच, सरपंच, मिलजुल के कहे लागिस। तुमन अपन अपन हाथ म बीस-बीस पेड़ तरिया के जात ले लगाहू, जेमा गांव हर पेड़ पौधा ले भरे-भरे लागय, रूख लगाय के डाढ़ हर तुहर मन के डांढ ये जान डरव। पुराना सियान मन के भाखा हर संत बानी कस होथे। इकर मन के कहे हर कभू बेकार नई होवय। कोई मनखे ल कुछु कही त सोच समझ के…
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