सरगुजिहा कहनी- मितान

ढेरे जुनहा गोठ हवे। गांव कर उत्तर कती एगो झोपड़ी रहिस। उहां एगो महात्मा रहत रहिन । दिन भर भीख मांगे अउर रात में झोपड़ी में कीर्तन भजन करत रहें। गांव में उनकर चेला-चपाटी भी रहिन ! कीर्तन भजन करे वाला चेला। ओही चेला में एगो चेला रहिस बिसनाथ। पढ़ल-लिखल होसियार चेला। कीर्तन भजन करे में उसताज। एक दिन बिसनाथ महात्मा जग भिनसारे पहुँचिस। ओकर चेहरा उदास रहिस । हाथ में एगो झोला रहिस। ओहर महात्मा ला पायलगी करके एक कती बइठ गइस। तब महात्मा कहिन – “का बात हवे…

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