जग अंधियारी छा गे हवय, मन ला कईस उजियारंव गा। आ जतेस तै सुरूज देवता, बिनती तोर मनावंव गा॥ कारी अंधियारी बादर, हफ्ता भर ले छाय हवय, शीत लहर के मारे, देहें सरी कंपकपाए हवय। यहां मांग-पूस मं, सावन कस बरसत हे, कोन परदेस गे तैं, दरस नई मिलत हे॥ कतेक दु:ख ला गोठियावंय मय, काला गोहरावंव गा। आ जतेस तै सुरूज देवता, बिनती तोर मनावंव गा॥ धान के झरती मिंजई, अउ ओनहारी बगियावत हे। खेत अउ बियारा मं, किसान हा रिरियावत हे, बछर भर के मिहनत हा, पानी म…
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कहिनी : लछमी
मास्टर ह रखवार ल कथे- चल जी मंय तोला परमान भीतरी दूंहू आ कहिके रखवार अऊ रऊत संग गुरुजी ह भीतरी म जाथे, गरूआ मन ओला देख के बिदके ल लगथे एती-ओती भागे ल धरथे त रखवार ह हांसथे- ले जम्मो तो तोला देखके भीतरी म भागथे बड़ा गाय वाला बनथस। मास्टर कथे अभी देख न जी परमान ल अऊ मास्टर ह हूंत कराथे- अरे सुकवारो, लछमी गायत्री, बुधियन्तीन, सुक्रती, सुती आओ लछमी दाई हो। गाय मन ओरी पारी आगे मास्टर के चारो कोती झूम जथे। भभगवान ह सिरीस्टी ल…
Read Moreभाग ल अजमावत हावय
दिन-रात पोंगा ल, वजावत हावयं घर-घर म जाके, रिरियावत हावंय अईसन छाये हे, चुनावी मऊसम चारो खूंट मनखे, बगरावत हावंय कोन्हों कुछु करंय त झन करंय फेर, लोगन ल आसरा देवावत हावय नान-नान लईका, जंवरिहा, सियान दारू पीरे बन गेहें मितान ‘नल’, ‘जांता’ अऊ ‘पत्ती’ छापा सब्बो ‘खुरसी’ बर ललचावत हावंय परचार करय बर पियत हावंय घरा म कलहा मतावत हावयं गांव ल आदर्श बनाबों कहिथें नशा-बांट-बांट वोट मांगत हावयं दारू, मुर्गा, अऊ पईसा हा चुनथे नेता मतदाता के नाव ह बोहावत हावंय अपन गियान के खिड़की ल खोले रखहू…
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