गढ़वाल के ऊंच-नीच धरती म जन्मे, प्रकृति के बीच म खेलत चन्द्रकला जी जब छत्तीसगढ़ के धरती म बहू बनके आइस। तब इंहा के प्रकृति म अपन मन ल बसा लीस। ‘मोर गोठ’ म लिखे हांवय के छत्तीसगढ़ के संस्कृति म कब घुल मिल गेंव पता नई चलिस। गांव-गांव घूमत ये कहिनी के जनम होवत गीस। ”बगरे गोठ” इही कहिनी के संकलन आय। एखर भूमिका लखनलाल गुप्त 1 जनवरी 1994 म लिखे हावंय। ये संकलन के पहिली कहिनी ह बता देथे के लेखिका ह दू संस्कृति के संगम आय। एक…
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मै मै के चारों डाहर घूमत साहित्यकार – सुधा वर्मा
एक कार्यकरम म कुछ साहित्यकार मन संग भेंट होईस। एक लेखक जेन कवि घलो आय आके पांव छुईस अउ बइठगे। थोरिक बेरा मा कुछु-कुछु गोठियाय के बाद म कहिथे, मैं ह छत्तीसगढ़ के टॉप के बाल साहित्यकार आंव। अभी-अभी थोरिक दिन पहिली एक महिला साहित्यकार फोन कर-कर के कई झन ल कहिस के मैं ह पहिली महिला साहित्यकार आंव जेखर तीन किताब छत्तीसगढ़ी म छपे हावय। मैं ह पहिली महिला उपन्यासकार आंव। एखर पहिली एक शिक्षक साहित्यकार एससीईआरटी म काहत रहय के हाना ऊपर कहिनी मैं ह पहिली लिखे हाववं।…
Read Moreजुन्ना सोच लहुटगे हमर रंग बहुरगे
सर्दी के मौसम के जाती अउ गरमी के आती के बेरा एक संधिकाल आय। ये संधिकाल के मौसम के ‘काय कहना?’ ठंड के सिकुड़े देह मौसम के गर्माहट म हाथ गोड़ फैलाए ले लग जथे। खेती के काम निपट जथे। चार महीना बरसात अउ चार महीना ठंड म असकटाए मनखे, खेती के काम ले थके मनखे निखरे घाम म बाहिर आथे त बदलत मौसम म पेड़ पौधा के अटियई ल देखके झूमे ले लग जथे। मौसम के मस्ती के बाते अलग रहिथे। बसंत के बासंती रंग ओढ़े प्रकृति नाचत रहिथे।…
Read Moreभासा के लड़ाई कहां तक
आज देस के एक राय अपन भासा ल सबके मुड़ ऊपर लादे बर खड़े होगे हावय। मुड़ म जादा वजन लादे मा दू बात हो सकथे। एक तो जादा वजन ल मनखेच्च गिर जही। दूसर, वो ह बोझा ल पटक दिही। ऊंहा अइसने होने वाला है। सब बोझा ल, बने अउ गिनहा रासनपानी, गोबर कचरा, फूलपान, कचरा-काड़ी ल एक जगह सकेले जाये अउ मौसम के मार एक साल ले खाय के बाद ओखर रूप ल देखे जाय त फेकइया मनखे घलो नई सोच सकय के ये ह काय बनगे हावय।…
Read Moreनौ बछर के छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ राय जब तक गर्भ म रहिस हे तब तक ओ ह छटपटावत बहुत रहिस हे। कमजोर महतारी ह ओखर ऊपर, धियान कम दिस। छत्तीसगढ़ के हुकारू ह दिल्ली तक पहुंचीस, ओखर दु:ख पीरा ल सुनके दिल्ली ह ओखर इलाज करीस। सन् 2000 म छत्तीसगढ़ के जनम होईस। बहुत दु:ख पीरा के संग-संग घर के अंगना म खुसी जब बहुत विलंब ले आथे तब खुसी के रंग बदले रहिथे। छत्तीसगढ़ संग घलो अइसने होईस। खुसी ल महतारी अपन अंचरा म, ददा ह अपन गमछा म रखे नई सकिस। दू लइका…
Read Moreमया बर हर दिन ‘वेलेन्टाइन डे’ होथे
अपन मया ल देखाय बर एक तिहार मनाये जाथे। जेन ल ‘वेलेन्टाइन डे’ कहे जाथे। येला आज जम्मो दुनिया के मन मनाथे। आज मया खतम होगे हावय। तभे तो ओखर बर एक तिहार मनाये बर दिन निश्चित करे हावंय। 14 फरवरी के दिन वेलेन्टाइन नांव के संत पैदा होय रहिस हे। ओ ह परेम के जोत जलइस। सही म आज ये जोत के जरूरत हावय। फेर येखर रूप ह बदल गे हावय। ये जोत ह सत के आगू म नई जलत हे, ये ह आज असत के आगू म बरत…
Read Moreबसंत ल देखे बर सिसिर लहुटगे
सिसिर रितु, पतझड़ ल न्यौता दिस ‘आ अब तैं आ मैं दूसर जगह के न्यौता म जात हावंव। तोला इंहा बसंत के आय के तइयारी करना हे। प्रकृति ल अइसे संवार दे के बसंत आके देखय त नाचे ले लग जाय।’ भौंरा, तितली, कोयली सब कान दे के सुनत रहिन हे। पतझड़ ह जझरंग ले कूद परिस आमा के डारा म। आमा के रंग, रूप ल संवारे बर कुछ तो करना हे, ये सोचत पतझड़ ह ओला धियान लगा के देखिस। सिसिर कहिस ‘चल मैं चलत हावंव, तैं सब ल…
Read Moreआज जरूरत हे सत के
कोनो भी चीज के जब अति होथे त ओह फुट जाथे। कर्मकांड, पाखंड के अति ह, जनम दिस सत ल। येला बगराय बर, सतबर जागरिति लाय बर कबीर ह अलख जगइस। उही कड़ी म निर्गुण ब्रह्म के सुग्घर ममहाती हवा के झोंका अइस। ये हवा ल पठोवत रहिन गुरु घासीदास सत्यनाम या फेर सतनाम के रद्दा। ये सब जाति के मनखे समागे। कहिथे न, पानी बरसथे त नान-नान जगह-जगह के पानी के धार ह नदिया म समा जथे। इहू ह अइसने रहिस हे। हर जाति धरम के मनखे ऐला समावत…
Read Moreछत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य अउ देशबन्धु
अभी-अभी जुलाई के देशबन्धु अपन स्वर्ण जयंती मनइस हावय। रायपुर के निरंजन धरमशाला म बहुत बडे आयोजन होईस। हमर मुख्य मंत्री डॉ. रमन सिंह अवइया पचास साल के बाद काय होही एखर ऊपर व्याख्यान दीस। व्याख्यान बहुत बढ़िया रहिस हे। छग के नहीं विश्व के बात होईस जब पूरा विश्व एक हो जही। बहुत अच्छा बात आय। छत्तीसगढ़ी भाषा के कोनो बात नई होईस। पचास साल में चालीस साल होगे देशबन्धु म छत्तीसढ़ी कॉलम आवत। सबले पहिली टिकेन्द्र नाथ टिकरिहा एक कॉलम छत्तीसगढ़ी म लिखत रहिन हे। ओखर बाद भूपेन्द्रनाथ…
Read Moreनंदावत पुतरा-पुतरी – सुधा वर्मा
अक्ती (अक्षय तृतीया) बैसाख महिना के तीज ल कहिथें, तीज अंजोरी पाख के होथे। ये दिन ल अब्बड़ पवित्र माने गे हे। अक्षय तृतीय के कहानी सुनव: एक राजा के सन्तान नई रहिस हे। रानी बहुत उदास राहय। रानी ह कखरो घर भी बिहाव होवय त एक झांपी समान भेजय। एक दिन के भात रानी डाहर ले राहय। रानी ह रंग-रंग के पुतरा-पुतरी रखे राहय, अपन समय ल उही म बितावय। रंग-रंग के कपड़ा जेवर पहिरावय। एक दिन ओखर मन म विचार आथे के मैं ह अपन पुतरी के बिहाव…
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