होगे होरी तिहार होगे – होगे होरी के, तिहार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। करु बोली मा,अउ केरवस रचगे। होरी के रंग हा, टोंटा मा फँसगे। दू गारी के जघा, देय अब चार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। टेंड़गा रेंगइया हा,अउ टेंड़गा होगे। ददा – दाई ,नँगते दुख भोगे। अभो देखते वो , मुहूँ फार गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। पउवा पियइया हा,अध्धी गटक दिस। कुकरी खवइया हा,बोकरा पटक दिस। टोंटा के कोटा गय , जादा बाढ़ गा। कखरो बदलिस न,आदत ब्यवहार गा। घर मा खुसर के,बरा-भजिया…
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परम पूज्य बाबा गुरु घासीदास : सरसी छंद
जेखर जनम धरे ले भुँइया,बनगे हे सत धाम। उही पुरष के जनम दिवस हे,भज मनुवा सतनाम।।1।। बछर रहिस सतरह सौ छप्पन,दिवस रहिस सम्मार। तिथि अठ्ठारह माह दिसम्बर,सतगुरु लिन अँवतार।।2।। तब भुँइ मा सतपुरुष पिता के,परे रहिस शुभ पाँव। बालक के अविनाशी घासी,धरे रहिन हे नाँव।।3।। वन आच्छादित गाँव गिरौदा,छत्तीसगढ़ के शान। पावन माटी मा जनमे हे,घासीदास महान।।4।। महँगू अमरौतिन बड़ भागी,दाई ददा महान। गोदी मा मानव कुल दीपक,पाइन हे संतान।।5।। घोर तपस्या करे रहिन हे,गुरु सतखोजन दास। सँग मा संत समाज सबोझिन,करे रहिन उपवास।।6।। माँग रहिस एक्के ठन सब के,मिलके…
Read Moreसरसी छंद : जनकवि कोदूराम “दलित” जी
धन धन हे टिकरी अर्जुन्दा,दुरुग जिला के ग्राम। पावन भुँइया मा जनमे हे,जनकवि कोदूराम। पाँच मार्च उन्नीस् सौ दस के,होइस जब अवतार। खुशी बगरगे गाँव गली मा,कुलकै घर परिवार। रामभरोसा ददा ओखरे,आय कृषक मजदूर। बहुत गरीबी रहै तभो ले,ख्याल करै भरपूर। इसकुल जावै अर्जुन्दा के,लादे बस्ता पीठ। बारहखड़ी पहाड़ा गिनती,सुनके लागय मीठ। बालक पन ले पढ़े लिखे मा,खूब रहै हुँशियार। तेखर सेती अपन गुरू के,पावय मया दुलार। पढ़ लिख के बनगे अध्यापक,बाँटय उज्जर ज्ञान। समे पाय साहित सिरजन कर,बनगे ‘दलित’महान। तिथि अठ्ठाइस माह सितम्बर,सन सड़सठ के साल। जन जन ला…
Read Moreसुखदेव सिंह अहिलेश्वर”अँजोर” के छंद
मदिरा सवैय्या छंद सुग्घर शब्द विचार परोसव हाँथ धरे हव नेट बने। ज्ञान बतावव गा सच के सब ला सँघरा सरमेट बने। झूठ दगा भ्रम भेद सबे झन के मुँह ला मुरकेट बने। मानस मा करतव्य जगै अधिकार मिलै भर पेट बने। दुर्मिल सवैय्या छंद सुनले बरखा झन तो तरसा बिन तोर कहाँ मन हा हरषे। जल के थल के घर के बन के बरखा बिन जीव सबो तरसे। नदिया तरिया नल बोरिंग मा भरही जल कोन बिना बरसे। जिनगी कइसे चलही सबके अब आस सुखावत हे जर से। मत्तगयंद…
Read Moreहमर बहू – विष्णु पद छंद
कहाँ जात हस आतो भैया,ले ले सोर पता। अब्बड़ दिन मा भेंट होय हे,का हे हाल बता। घर परिवार बहू बेटा मन,कहाँ कहाँ रहिथें। नाती नतनिन होंही जेमन,बबा बबा कहिथें। अपन कहौ हमरो कुछ सुनलौ,थोकुन बइठ जहू। बड़ सतवंतिन आज्ञाकारी,हमरो हवय बहू। बड़े बिहनहा सबले पहिली,भुँइ मा पग धरथे। घर अँगना के साफ सफाई,नितदिन हे करथे। नहा खोर के पूजा करथे,हमर पाँव परथे। मन मा सुग्घर भाव जगाथे,पीरा ला हरथे। हमर सबो के जागत जागत,चूल्हा आग बरे। दुसरइया तब हमर तीर मा,आथे चाय धरे। पानी गरम नहाये खातिर,मन चाहा मिलथे।…
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