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जीवन परिचय

सुराजी वीर अनंतराम बर्छिहा

सत् मारग म कदम बढ़ाके, देश-धरम बर करीन हें काम। वीर सुराजी वो हमर गरब आय, नांव जेकर हे अनंतराम।। देश ल सुराज देवाय खातिर जे मन अपन जम्मो जिनिस ल अरपन कर देइन, वोमन म अनंतराम जी बर्छिहा के नांव आगू के डांड़ म गिनाथे। वो मन सुराज के लड़ाई म जतका योगदान देइन, […]

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गीत

बोरे-बासी के दिन आगे..

दही-मही संग बोरे-बासी के लगिन धरागे रे गोंदली संग सुघ्घर झड़के के दिन आगे रे………. http://mayarumati.blogspot.in/2013/03/blog-post_29.html

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गीत

ये भोले तोर बिना….

ये भोले तोर बिना…. जिनगी के चार दिना, कटही कइसे मोर जोंही गुन-गुन मैं सिहर जाथौं, ये भोले तोर बिना….. हांसी हरियावय नहीं, पीरा पिंवरावय नहीं जिनगी के गाड़ी, तोर बिन तिरावय नहीं श्रद्धा के गांजा-धथुरा, ले के तैं हमरो ल पीना… ये भोले… उमंग अब उवय नहीं, संसो ह सूतय नहीं बिपदा के बैरी […]

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गीत

बसंत गीत : सुशील भोले

बसंती रंग झूम-झूम जाथे… बगिया म आगे हे बहार, बसंती रंग झूम-झूम जाथे पुरवइया छेड़ देहे फाग, मन के मिलौना ल बलाथे मउहा ममहाथे अउ तीर म बलाथे मंद सहीं नशा म मन ल मताथे संग म सजन के सोर करवाथे….बसंती रंग…. परसा दहक गे हे नंदिया कछार झुंझकुर ले झांकत हे मुड़ी उघार लाली-लाली […]

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गुड़ी के गोठ

छत्तीसगढ़ी : कामकाज अउ लेखन के रूप : सुशील भोले

जबले छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के दरजा दे के ए भरोसा जगाये गे हवय के अवइया बेरा म ए ह शिक्षा के संगे-संग राजकाज के भाषा बन सकथे, तबले एकर साहित्यिक लेखन के रूप अउ कामकाज माने प्रशासकीय रूप ऊपर भारी गोठ-बात अउ तिरिक-तीरा चलत हे। ए संबंध म राजभाषा आयोग ह एक ठ विचार गोष्ठी […]

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गुड़ी के गोठ

हीरा गंवा गेहे बनकचरा म…

ये ह छत्तीसगढ़ महतारी के दुर्भाग्य आय केवोकर असर हीरा बेटा मनला चुन-चुनके बनकचरा म फेंक अउ लुकाए के जेन बुता इहां के इतिहास लिखे के संग ले चालू होय हे तेन ह आजो ले चलते हे। एकरे सेती हमला आज हीरालाल काव्योपाध्याय जइसन युग पुरुष ल जनवाय के उदीम करे बर लागत हे। ये […]

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गीत

तोर मेहनत के लागा ल…..

तोर मेहनत के लागा ल….. तोर मेहनत के लागा ल, तोर करजा के तागा ल उतार लेतेंव रे, मैं ह अपन दुवार म……… देखत हावौं खेत-खार म जाथस तैं ह मंझनी-मंझनिया देंह ठठाथस तैं ह जाड़ न घाम चिन्हस, बरखा न बहार देखस ठउका उही बेर तोला पोटार लेतेंव रे, मैं ह अपन……. कहिथें बंजर-भांठा […]

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गीत

एक डंडिय़ा : माटी के पीरा…

ए माटी के पीरा ल कतेक बतांव, कोनो संगी-संगवारी ल खबर नइए। ए तो लछमी कस गहना म लदे हे तभो, एकर बेटा बर छइहाँ खदर नइए।। कोनो आथे कहूँ ले लाँघन मगर, इहाँ खाथे ससन भर फेर सबर नइए।… अइसे होना तो चाही विकास गजब, फेर खेती ल उजारे के डगर नइए।… धन-जोगानी चारों […]

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गुड़ी के गोठ

अस्मिता के आत्मा आय संस्कृति

आजकाल ‘अस्मिता’ शब्द के चलन ह भारी बाढग़े हवय। हर कहूँ मेर एकर उच्चारन होवत रहिथे, तभो ले कतकों मनखे अभी घलोक एकर अरथ ल समझ नइ पाए हे, एकरे सेती उन अस्मिता के अन्ते-तन्ते अरथ निकालत रहिथें, लोगन ल बतावत रहिथें। अस्मिता असल म संस्कृत भाषा के शब्द आय, जेहा ‘अस्मि’ ले बने हे। […]

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व्यंग्य

कवयित्री के गुण / कवयित्री धोंधो बाई

माईलोगिन मन के मुँह ह अबड़ खजुवाथे कहिथें। एकरे सेती जब देखबे तब वोमन बिन सोचे-समझे चटर-पटर करत रहिथें। हमरो पारा म एक झन अइसने चटरही हे, फेर ये चटरही ह आजकल ‘कवयित्री’ होगे हे। बने मोठ-डाँठ हे तेकर सेती लोगन वोला ‘कवयित्री धोंधो बाई’ कहिथें। वइसे नांव तो वोकर ‘मीता’ हे, फेर ‘गीता’ ह […]