नान्हे कहिनी : जिनगी के मजा

पुजारी जी अउ समझाईस बेटा दाई के मालिक के दया तो पहिली ले हे, तभे तो ये मनखे जोनी पाये हन, अतेक सुग्घर संसार म आय हन। अब ओखर संसार म आके, अपन घर-परिवार, अपन जिम्मेदारी ले भागना, बल्कि ओ मालिक के अपमान होथे, अउ फेर तें का समझथस। नवरात्रि के परब चल राहय। चहुं ओर जगमगावत राहय माता के जोत ले घोर निरासा म अपार आसा भरइया, दुख-दरद ल दूर करइया, भूले- भटके ल रद्दा देखइया माता के जोत ले। लगय जइसे जम्मो चांद-सितारा, सरग आगे हें धरती म…

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नान्हे कहिनी : सिरिफ एक पेड़

बड़ उदास राहय सुकालू अउ दुकालू। घर- कुरिया, खेत-खार भांय-भांय लगय। कतको खातिन, कमातिन, पातिन, फेर मनछोट, अधूरा-अधूरा। आंधी म टूटे गिरे लिपटिस कस बगीचा लगय परिवार। ददा तो राहय फेर, दाई तो होथे दाई, कोनो नई पा सकंय ओखर गहराई। दाई तो छाता होथे, अउ ददा पितर पाख के महीना चलत राहय। नवमीं के पितर अवइया राहय ऊंखर दाई-ददा ल जीयत राखेबर, ओखर खुशी शांति बर, भागवत कहवाये राहंय। मंदिर बनवाए राहय। फेर दूनो भाई के मन ल शांति नई मिलिस। ऊंखर मन म घेरी-बेरी खटकय के दाई बर…

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नान्‍हे कहिनी : रोजी

करे के इच्छा नई हे त छोड़व महराज! एहि साल भर पूरा करे के किरपा करव। भागवत घर हर बछर सत्यनारायण कथा अउ शंकर पूजा होवय। दू तीन पीढ़ी ले चलत रहिस हे। बड़ सुग्घर लगय, गांव भर के मनखे आवै, कथा सुने ल, परसाद झोकेल। भागवत के मन अउ अंगना दूनो भर जाय। फेर जम्मो आनंद मजा, किचकिच हो जय, महराज के भाव बियाना म। बबा जमाना म खाये बर खपरा न पीये बर पानी रहिस तेन दिन एहि गंवई के सहारा, रहिस हे, जीनगी के गुजारा इंहे ले…

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नान्हे कहिनी : झन फूंटय घर

खाये पीये के मामला म, माई लोगिन मन म मनमुटाव होय के संभावना रहिथे। तेखरे सेति, ददा ह घर के जम्मो कामकाज ल हम दूनो भाई म बांट देये हे, अउ तीज तिहार म, परब म, रोटी, पीठा, खई खजेनी ल अपन हाथ म राखे हे। सब ला बरोबर बांटय ताकी झन फूटय घर, झन होवय मनमुटाव, दरार। तिलक आत-जात राहय संतू के घर। अइसे तो संतू के कुछ रिस्तेदार नई लगे तिलक, फेर जिहां परेम, तिहां का नेम, का जरूरत कोनो रिस्ता के। परेम तो खुद सबले बड़े अउ…

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कबिता : सिध्दिविनायक मुसवा म काबर चढ़थे

सिध्दिविनायक मुसुवा म काबर चढ़थे?मुसुवा निकल सकथे बघवा के पिंजरा ले,मुसुवा निकाल घलो सकथे बघवा ल पिंजरा लेमुसुवा ह पाथे सबले पहिली धान-पान, जइसे सबले आगू पाथे, गनेस भगवान,मुसुवाये म चढ़केलम्बोदर अगुवागेनम्बर वन बनगेयेखरे सेति गजानन मुसुवा म चढ़थे। लम्बोदर जी के काबर होथे भारी पेट?महाराज, रखथे सबके खियाल,येखरे सेति अपन पेट म लुका, डालबांटत रहिथे सब ल, हरथे सबके दु:ख,नई देख सकय देवा, कोखरो भूख। गजानन के काबर होथे लम्बो सोंढ़? गजानन ल कहिथे विघ्नहरन, अउ एहि कारनअपन लम्बा नाक ले सूंघ केअपन भक्तन के दूर-दूर ले,बाधा-बिघन हरत रहिथे,हाथी…

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हरेली के गीत

हरेली निराली झूमत-नाचत आय हरियाली लाए संग म ये खुशहाली, आए हे गेड़ी म चढ़के दिखे देवी-देवता मन सरग के। धरे ठेठरी, खुरमी भरे थाली। झम-झम फूल बरसाए बादल संभर गे जम्मो मोटियारी, मुसकुरावय गरीब किसान नागर बैला के करत सम्मान रंधनी ले मुसकावय घरवाली। सब डाहर खुशी मस्ती छागे नदिया, नरवा घलो बौरागे कूके लगिस कोयलिया कारी। मन के बात मन म झन राखव दया-मया बांटव खुशी ल बांटव रोज बन जाही हरेली निराली। तेजनाथ पिपरिया, कवर्धा

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बेलपत्ता

बेलपत्ता नई होवय सिरिफ तीन कोनिया पन्ना। बेलपत्ता- होथे भोले नाथ के, परम, दिव्य सिंगार व्यंजन अउ अलंकार सुहागिन के सेंदूर कस। बेलपत्ता- होथे भगवान शिव के, त्रिनेत्र के त्रिशूल के समान्तर चिन्हा। बेलपत्ता म, समाए हे, तीनों लोक, तीनों देव, तीनों गुन। बेलपत्ता- चढ़ाना होथे तीनों देव के प्रसन्नता खातिर, तीनों गुन सम्पन्न, तीनों ताप के नाश करइया, सुग्घर हरियर पत्ता, हरियाली खुशहाली के प्रतीक परेम के श्रध्दा रूप म, तीनों लोक चढ़ाना। तेजनाथ बरदुली, पिपरिया जिला कबीरधाम

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