इस्कुली कार्यकरम मं पंचायत बॉडी के सदस्य ल ही मुख्य अतिथि के खुरसी मं बिराजमान होना हे। सब ला खुरसी मिलना चाही। मास्टर मन तो सालभर खुरसी मं बइठ के खुरसी टोरत रइथें। मास्टर मन कोती ले हमर सेवा सत्कार होना चाही अउ एक बात के बिल्कुल धियान रखना हे के सब ला खुरसी जरूर मिलना चाही। उंकर झंडा-फंडा अउ गवई-बजई ले जादा अपन के मतलब रखना हे। अउ कोनो मास्टर हमर पंचायत बॉडी अउ गांव वाले के मीनमेख कहूं निकालिस ते उंकर सतपुरखा मं पानी रितोना हे। एक बात…
Read MoreTag: Tikeshwar Sinha “Gabdiwala”
टिकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’ के छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह : ठूठी बाहरी
भूमिका : टीकेश्वर सिन्हा के कविता संकलन “ठूठी बाहरी ” ल पढे कं वाद सोचें बर परिस आखिर ठूठी बाहरी काबर? बाहरी ह ठूठी कब होथे? जब बाहरी ह घर दूवारी के कचरा ल बाहर के सकेला करथे। ओखर वाद ओला घर गोसइन ह र्फकथे। वइसनेने ये टीकेश्वर के कलम ह बाहरी बनके घर द्वार, गाँव, त्तरिया, खेतखार, समाज सब ल बाहर के साफ करे हावय। … सुधा वर्मा.
Read Moreटुरी देखइया सगा
हमर गांव-देहात म लुवई-टोरई, मिंजई-कुटई के निपटे ले लोगन के खोड़रा कस मुंह ले मंगनी-बरनी, बर-बिहाव के गोठ ह चिरई चिरगुन कस फुरूर-फुरूर उड़ावत रइथे। कालिच मंगलू हल्बा के नतनीन ल देखे बर डेंगरापार के सगा आय रिहिस। चार झन रिहिन। दू झन सियनहा अउ दू झन नवछरहा टुरा। ठेला करा मोला पूछिस- ‘कस भइया, इहां हल्बा नोनी हावय बर-बिहाव करे के लइक।’ कहेंव- हव, कइसन ढंग के लड़की चाही आप मन ला। एक झन मोट्ठा सगा ह अंटियावत दांत निपोरीस- ‘कुंआरी।’ ओखर हांथी खिसा दांत ल देख के एक…
Read Moreमोला कभू पति झन मिलय – कहिनी
धान कोचिया राधे हर हुत करात अइस- सदानंद ठेलहा हस का रे? चल खातुगोदाम मेर मेटाडोर खड़े हे। विसउहा तेली के धान ल भरना हे। कइसे सुस्त दिखत हस रे। अल्लर- अल्लर। चल जल्दी। सुरगी म मार लेबे एकाध पउवा। पउवा के गोठ सुन के सदानंद के मुंहुं पंछागे। एक्के भाखा म टुंग ले उठगे।’ एसो के बइसाख म मंगली ह अठरा बछर के होगे। बिसराम अउ सोनारिन ल मंगली कस सुघ्घर बेटी पाए ले आन असन जादा सगा-सोदर देखे बर नइ लागिस। बड़ सुंदर रूपस राहै मंगली हर। मंगली…
Read Moreपातर पान बंभुर के, केरा पान दलगीर
‘राऊत नाचा ह महाभारत काल के संस्कृति, कृसि, संस्कृति अउ भारत के लोक संस्कृति ले जुरे हावय। राऊत नाच राऊत मन के संस्कृति आय फेर ये ह भारतीय संस्कृति के पोषक घलो हे। भारत के संस्कृति कृसि प्रधान हे। ये कारन गाय-बइला, खेत-खार, गोबर-माटी अउ पेड़-पौधा, नदिया-नरवा ले सबो ल मया हावय। येला राऊत नाचा अउ ओखर दोहा के माध्यम ले समझे अउ देखे जा सकथे।’ जगमग-जगमग करत दीया के अंजोर ले देवारी के अंधियारी रात घला पुन्नी रात कस लागथे। लोगन के हृदय के अंगना म हर्स अउ उमंग…
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राऊत नाचा ह महाभारत काल के संस्कृति, कृसि, संस्कृति अउ भारत के लोक संस्कृति ले जुरे हावय। राऊत नाच राऊत मन के संस्कृति आय फेर ये ह भारतीय संस्कृति के पोषक घलो हे। भारत के संस्कृति कृसि प्रधान हे। ये कारन गाय-बइला, खेत-खार, गोबर-माटी अउ पेड़-पौधा, नदिया-नरवा ले सबो ल मया हावय। येला राऊत नाचा अउ ओखर दोहा के माध्यम ले समझे अउ देखे जा सकथे।’ जगमग-जगमग करत दीया के अंजोर ले देवारी के अंधियारी रात घला पुन्नी रात कस लागथे। लोगन के हृदय के अंगना म हर्स अउ उमंग…
Read Moreसुरता अइस
सावन के महिना ह गन-गन-गन अइसअंधियारी पाख के निकलतउगोना ह सट ले निकलतउगोना ह सट ले अइसपरोसिन नोनी हरमोला भइया कहिके चिल्लइसमोला अपनबहिनी के सुरता अइसभादो के महिना मंतीजा ह लकट्ठइससेठ हर मोला आजलुगरा देखात अंखिअइसपोरा के बिहान दिनमोर मन रूक बुकइसमोला ईमान से अपनबेटी के सुरता अइस। टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’
Read Moreतीजा जावत
तीजा जावत अपन बाई ल देख के मोला मनेमन अड़बड़ हाँसी लागेईमान से महापरसाद आज मोला अड़बड़ अलकरहा लागेसुत उठ के तरिया ले साबुन म नहा के आगेमइके जाय के सुध मंसाबुन डब्बा ल भुलागेलाटिया गुर डारे बरा मंगहूं पिसान के लाड़ू बांधेभात गलाये दरगोटनी म पटुवा भाजी ल महीं मं रांधेमुंड म डारे अंडी तेलउल्टा कोकवा म मुंड़ कोरयकान म फुल्ली, नाक म खिनवामांडी के जात ले लुगरा पहिरयमटकत जावय अपन ददा संगमोर पांव परे बर घलो भुलागे तीजा जावत अपन बाई ल देखमोला अड़बड़ रोवासी लागे। टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’
Read Moreघासीदास जी के अमर संदेश-पंथी गीत
सत ल जाने बर घासीदास सन्यासी होगे। सत असन अनमोल जिनीस ल पाए बर वाजिब साधना के जरूरत परिस। बर-पीपर सांही पवित्र वृक्ष ल छोड़के ये औंरा-धौंरा असन साधारन पेड़ के खाल्हे तपस्या म लीन होगे। ये घासीदास के निम्न वर्ग लोगन के प्रति ओखर पिरीत अउ लगाव के प्रतीक आय। लगन अउ साधना ले घासीदास एक चमत्कारिक फल सत के प्राप्ति होइस। बाद म इही सत ल दुनिया म सतनाम के संग्या मिलीस। गुरु घासीदास हर छत्तीसगढ़ के पावन भूमि बिलासपुर के गिरौदपुरी गांव मं संवत 1756 सन् (1700)…
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