पितर पाख म साहित्यिक पुरखा के सुरता – विद्या भूषण मिश्र

बगुला के पांख कस पुन्नी के रात, गोरस मं भुइंया हर हावय नहात ल बुढवा के चुंदी कस कांसी के फूल, आंखी दुधरू दुधरु खोखमा के फूल। लेवना कस सुग्घर अंजोरी सुहाय, नदिया के उज्जर देंहे गुरगुराय। गोकुल के गोरी गोपी अइसन् रात, तारा के सुग्घर फूले हे फिलवारी। रतिहा के हाँथ मं चांदी के थारी, पंडरा पंडरा लागै खेत अउ खार नवा लागय जइसे गोरस के धार, घेरी बेरी दिया झांकै लजात आमा के छईहाँ संग उज्जर उज्जर अंजोरी, दुःख सुख जइसे बने जांवर जोरी। कई दिन के गर्मी…

Read More