बरस अठारा में रानी ने, भरिस हुंकार सीना तान। भागय बैरी ऐती तेती, नई बाचय ग ककरो प्राण। गदर मचादिस संतावन में, भाला बरछी तीर कमान। झाँसी नई देवव बोलीस, कसदिच गोरा उपर लगाम। राव पेशवा तात्या टोपे, सकलाईस जब एके कोत। छोड़ ग्वालियर भगै फिरंगी, ओरे ओर अऊ एके छोर। चना मुर्रा कस काटय भोगिस, चक रहय तलवार के धार। कोनों नई पावत रिहिस हे, झाँसी के रानी के पार। चलय बरोड़ा घोड़ा संगे, त धुर्रा पानी ललियाय। थरथर कांपय आँधी देखत, कपसे बैरी घात चिल्लाय। मारे तोला अब…
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चलनी में गाय खुदे दुहत हन
चलनी में गाय खुदे दुहत हन कईसन मसमोटी छाय हे, देखव पहुना कईसे बऊराय हाबै। लोटा धरके आय रिहीस इहाँ, आज ओकरे मईनता भोगाय हाबै। परबुधिया हम तुम बनगेन, चारी चुगली में म्ररगेन। छत्तीसगढिया ल सबले बढिया कीथे, उहीं भरम में तीरथ बरथ करलेन। भाठा के खेती अड़ चेथी जानेंन, खेती बेच नऊकरी बजायेन। चिरहा फटहा हमन पहिरेन, ओनहा नवा ओकरे बर सिलवायेन। लाँघन भूखन हमन मरत हन, दांदर ओकरे मनके भरत हन। हमर दुख पीरा हरय कोन, बिन बरखा तरिया भरय कोन। सांप के मुंडी करा, हमर मन के…
Read Moreभक्ति करय भगत के जेन
परिया परगे धनहा डोलि, जांगर कोन खपाय। मीठलबरा के पाछू घुमैईया, ससन भर के खाय। बांचा मानै येकर मनके, कुंदरा, महल बन जाय। मिहनत करैईया भूखे मरय, करमछड़हा देखव मसमोटाय। लबारी के दिन बऊराय, ईमान देखव थरथराय। पसीना गारे जेन कमाय, पेट में लात उही ह खाय। भक्ति करय भगत के जेन, पावय परसाद दपट के। खंती माटी कोड़य जेन, मार खावय सपट के। विजेंद्र वर्मा अनजान नगरगाँव (धरसीवां) विजेंद्र वर्मा अनजान नगरगाँव(धरसीवां)
Read Moreपंचू अऊ भकला के गोठ : चुनई ह कब ले तिहार बनगे
पंचू अऊ भकला के गोठ बात चलत रिहिस हे, थोरकिन सुने बर बईठ गेंव पंचू काहत रहय भकला ल, सुन न रे भाई भकला, चुनई आवत हे हमर गाँव गंवई के मईनखे बर बड़का तिहार ये। भकला- किथे, पंचू भईया चुनई ह कबले तिहार बन गेहे नवा बनाय हे का ? पहिली तो अईसनहा तिहार सुने नीं रेहेंव। दसेरा, देवारी, होली, हरेली ल जानथव अऊ सबो गाँव वाले मन मिरजुर के मनाथे, फेर ये चुनई ह तिहार कबले बनगे ? पंचू- किथे, जबले अंगरेज मन हमर देश ल छोड़े हे,…
Read Moreझाड़ फूंक करलौ जी लोकतंत्र के
कोलिहा मन करत हे देखव सियानी, लोकतंत्र के करत हे चानी चानी। जनम के अढहा राजा बनगे, परजा के होगे हला कानी। भुकर भुकर के खात किंजरत, मेछराय गोल्लर कस ऊकर लागमानी। अंधरा बनावत हे लोकतंत्र ल, रद्दा घलो छेकावत हे। कऊवा बईठे महल के गद्दी, हँस देख बिलहरावत हे। महर महर महकय लोकतंत्र ह, अईसन बनाय रिहीस पुरखा मन। बईरी बनके आगे कलमुवा, अंधरा कनवा अऊ नकटा मन। सिरतोन केहे तै नोनी के दाई, खटिया म पचगे मिहनत के पाई। भागजनी ह राजा बनथे, करम के फुटहा चुर चुर…
Read Moreआल्हा छंद : भागजानी घर बेटी होथे
भागजानी घर बेटी होथ, नोहय लबारी सच्ची गोठ I सुन वो तैं नोनी के दाई, बात काहते हौ जी पोठ I1I अड़हा कहिथे सबो मोला, बेटा के जी रद्दा अगोर I कुल के करही नाव ये तोर, जग जग ले करही अंजोर I2I कहिथव मैं अंधरा गे मनखे, बेटी बेटा म फरक करत I एके रूख के दुनो ह शाखा, काबर दुवा भेदी म मरत I3I सोचव तुमन बेटी नई होय, कुल के मरजाद कोन ढोय I सुन्ना होय अचरा ममता के, मुड़ी धरके बईठे रोय I4I आवव एक इतिहास…
Read Moreमहतारी भासा
मातृभासा म बेवहार ह बसथे, इही तो हमर संसकार ल गढथे। मइनखे के बानी के संगेसंग, सिक्छा म वोकर अलख ह जगथे। लईकोरी के जब लईका रोथे, इही भाखा के बोल ह फबथे। आगू आगू ले सरकथे काम, महतारी के घलो मान ह बड़थे। समाज के होथे असल चिन्हारी, भासा म जब हमर संसकिरती ह रचथे। सकलाइन एके ठऊर म त, एकजुटता के भावों ह पनप थे। नवा पीढ़ी के मइनखे मन, घरघुन्दिया असन मिन्झारत हे। अंतस म बसे भाखा के मया ल, हंसी ठिठोरी करत बेंझावत हे। महतारी भासा…
Read Moreसेल्फी ह घर परवार समाज ल बिलहोरत हाबय
समे बदल गेहे जमाना कती ले कती भागत हे तेकर ठिकाना नईये, जमाना सन पल्ला भगैईया हमर मन के मगज ह कोन चिखला दांदर म बोजा गेहे, सबो के मति अऊ सोचों ह सेल्फी सन रहीके सेल्फीस होगे हे। सुघ्घर दिखे के चक्कर में हमन भुला जथन कोन करा गढ्ढा हे, कतीहा पखरा हे, कती के रद्दा म काँटा बगरे हे सेल्फीस बनके एक धर्रा म रेंगत हन। थोरको झमेला ल ककरो नई सेहे सकन, अकेल्ला के खुशी बर घर परवार ल मजधार में छोड़ के सेल्फी सन रेंग देथन।…
Read Moreसंबंध मिठास के नांव ताय मड़ई ह
खेत के सोनहा धान ल जब किसान मन बियारा म काटके लाथे, उहा ले मींज के माई कोठी म लाके रखथे त घर म लक्ष्मी के वास से सबो मनखे मन के हिरदे म एक खुशी झलकत रीथे। उही बीच म थोरकिन मिहनत करैईया सबो मनखे मन ह अपन आप ल ठलहा अऊ काम के बोझ ले उबर गेन कहिके गाँव के पंचाईत म सबो कोही जुरियाथे जेमे मड़ई मनाय के तारिख ल मिरजुर के करार करथे। अईसे कहिबे त हमर छतीसगढ़ के संस्कीरति अऊ परमपरा ल पहिचान देय के…
Read Moreईंहा के मनखे नोहय
जिंहा के खावत हे तेकर गुण ल नई गाही, तिरंगा के मया बर अपन लार ल नई टपकाही, वोहा ईंहा के मनखे नोहय I जेन ह ईंहा के माटी ल मथोलत हे, अपनेच दांदर ल मरत ले फुलोवत हे, वोहा ईंहा के मनखे नोहय I कनवा खोरवा मुरहा ल जेन ह कुआं म ढपेलत हे, मदहा अऊ जाँगरओतिहा ल सरग म चढ़ोवत हे , वोहा ईंहा के मनखे नोहय I जेकर मिहनत के कमई म उदाली मार जियत हे, उकरे मिहनत ल जेन ठेंगा दिखावत हे, वोहा ईंहा के मनखे…
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