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आल्हा छंद

आल्हा छंद : झाँसी के रानी

बरस अठारा में रानी ने, भरिस हुंकार सीना तान। भागय बैरी ऐती तेती, नई बाचय ग ककरो प्राण। गदर मचादिस संतावन में, भाला बरछी तीर कमान। झाँसी नई देवव बोलीस, कसदिच गोरा उपर लगाम। राव पेशवा तात्या टोपे, सकलाईस जब एके कोत। छोड़ ग्वालियर भगै फिरंगी, ओरे ओर अऊ एके छोर। चना मुर्रा कस काटय […]

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कविता

चलनी में गाय खुदे दुहत हन

चलनी में गाय खुदे दुहत हन कईसन मसमोटी छाय हे, देखव पहुना कईसे बऊराय हाबै। लोटा धरके आय रिहीस इहाँ, आज ओकरे मईनता भोगाय हाबै। परबुधिया हम तुम बनगेन, चारी चुगली में म्ररगेन। छत्तीसगढिया ल सबले बढिया कीथे, उहीं भरम में तीरथ बरथ करलेन। भाठा के खेती अड़ चेथी जानेंन, खेती बेच नऊकरी बजायेन। चिरहा […]

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गीत

भक्ति करय भगत के जेन

परिया परगे धनहा डोलि, जांगर कोन खपाय। मीठलबरा के पाछू घुमैईया, ससन भर के खाय। बांचा मानै येकर मनके, कुंदरा, महल बन जाय। मिहनत करैईया भूखे मरय, करमछड़हा देखव मसमोटाय। लबारी के दिन बऊराय, ईमान देखव थरथराय। पसीना गारे जेन कमाय, पेट में लात उही ह खाय। भक्ति करय भगत के जेन, पावय परसाद दपट […]

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व्यंग्य

पंचू अऊ भकला के गोठ : चुनई ह कब ले तिहार बनगे

पंचू अऊ भकला के गोठ बात चलत रिहिस हे, थोरकिन सुने बर बईठ गेंव पंचू काहत रहय भकला ल, सुन न रे भाई भकला, चुनई आवत हे हमर गाँव गंवई के मईनखे बर बड़का तिहार ये। भकला- किथे, पंचू भईया चुनई ह कबले तिहार बन गेहे नवा बनाय हे का ? पहिली तो अईसनहा तिहार […]

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कविता

झाड़ फूंक करलौ जी लोकतंत्र के

कोलिहा मन करत हे देखव सियानी, लोकतंत्र के करत हे चानी चानी। जनम के अढहा राजा बनगे, परजा के होगे हला कानी। भुकर भुकर के खात किंजरत, मेछराय गोल्लर कस ऊकर लागमानी। अंधरा बनावत हे लोकतंत्र ल, रद्दा घलो छेकावत हे। कऊवा बईठे महल के गद्दी, हँस देख बिलहरावत हे। महर महर महकय लोकतंत्र ह, […]

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आल्हा छंद

आल्हा छंद : भागजानी घर बेटी होथे

भागजानी घर बेटी होथ, नोहय लबारी सच्ची गोठ I सुन वो तैं नोनी के दाई, बात काहते हौ जी पोठ I1I अड़हा कहिथे सबो मोला, बेटा के जी रद्दा अगोर I कुल के करही नाव ये तोर, जग जग ले करही अंजोर I2I कहिथव मैं अंधरा गे मनखे, बेटी बेटा म फरक करत I एके […]

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कविता

महतारी भासा

मातृभासा म बेवहार ह बसथे, इही तो हमर संसकार ल गढथे। मइनखे के बानी के संगेसंग, सिक्छा म वोकर अलख ह जगथे। लईकोरी के जब लईका रोथे, इही भाखा के बोल ह फबथे। आगू आगू ले सरकथे काम, महतारी के घलो मान ह बड़थे। समाज के होथे असल चिन्हारी, भासा म जब हमर संसकिरती ह […]

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गोठ बात

सेल्फी ह घर परवार समाज ल बिलहोरत हाबय

समे बदल गेहे जमाना कती ले कती भागत हे तेकर ठिकाना नईये, जमाना सन पल्ला भगैईया हमर मन के मगज ह कोन चिखला दांदर म बोजा गेहे, सबो के मति अऊ सोचों ह सेल्फी सन रहीके सेल्फीस होगे हे। सुघ्घर दिखे के चक्कर में हमन भुला जथन कोन करा गढ्ढा हे, कतीहा पखरा हे, कती […]

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गोठ बात

संबंध मिठास के नांव ताय मड़ई ह

खेत के सोनहा धान ल जब किसान मन बियारा म काटके लाथे, उहा ले मींज के माई कोठी म लाके रखथे त घर म लक्ष्मी के वास से सबो मनखे मन के हिरदे म एक खुशी झलकत रीथे। उही बीच म थोरकिन मिहनत करैईया सबो मनखे मन ह अपन आप ल ठलहा अऊ काम के […]

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कविता

ईंहा के मनखे नोहय

जिंहा के खावत हे तेकर गुण ल नई गाही, तिरंगा के मया बर अपन लार ल नई टपकाही, वोहा ईंहा के मनखे नोहय I जेन ह ईंहा के माटी ल मथोलत हे, अपनेच दांदर ल मरत ले फुलोवत हे, वोहा ईंहा के मनखे नोहय I कनवा खोरवा मुरहा ल जेन ह कुआं म ढपेलत हे, […]