अगुवा बनव

हुसियार बनके हुसियारी करव रे- बिजहा धान के रखवारी करव रे। करगा ल निमार फेकव, बन बदौरी ल चाली करव रे। लईका सियान मिलके बने, निस्तारी करव रे— सुमत के रद्दा म रेंगव, पिछवाव झन पूछी धरके, अगुवा बनव संगवारी चलव रे। मुहुकान ल तोपव झन, रद्दा ककरो रोकव झन। मुड़ी उपर चढ़हैईया ल, धरव पकड़व छोड़व झन। पगुरात झन बईठो भईसा कस, बघुवा कस गुरराय चलव रे। हमन किसनहा बेटा हरन, संघरही तेला संघराय चलव रे। ओरयाइस ओरवाती के धार, बांध लौ आजे तुमन पार। चिखला म गरकट्टा ल…

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कँपकँपाई डारे रे

कँपकँपाई डारे रे ….ए….. एसो के जाड़ा कँपकाई डारे। करा कस तन ला जमाई डारे। कँपकँपाई डारे रे….ए….. दाँत किनकिनावत हे नाक हा बोहावत हे।। गोरसी तीर बइठे बबा चोंगी सुलगावत हे।। सुरूर सुरूर ए दे पुरुवाई मारे रे। कँपकँपाई डारे रे….ए…… उगती ले बुड़ती होथे कुरिया ह नइ भावै। कतको ओढ़े कथरी ला निंदिया नइ आवै।। का करवँ जीव ला करलाई डारे। कँपकँपाई डारे रे….ए….. देखव संगी सुरुज हा मोला बिजरात हे। भागत हावय छेंव छेंव कइसे इँतरात हे।। नहाई खोराई तरसाई डारे। कँपकँपाई डारे रे….ए…. बोधन राम निषाद…

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हंडा पाय हे किथे सिरतोन ये ते लबारी

समझ नई परय काकर गोठ सिरतोन ये काकर ह लबारी, कोनों करते चारी, कोनों बड़ई त कोनों बघारथे सेखी अऊ हुसयारी। सियनहा मन ह गाँव के गुड़ी म चऊपाल जमाय रिहिस हे, मेंहा भिलई ले गाँव गेहव त ओकरे मन करा पायलगी करे बर चल देयेव। ओमेर शुकलाल, रामरतन, मनीराम अऊ किसन सियनहा बड़े ददा मन ह हाल चाल पूछिस मोर, मेंहा केहेव सब बने बने हे बड़े ददा, तुही मन सुनावव ग गाँव गवई के गोठ ल केहेंव, तहाले रामरतन बड़ा ह का सुनावन मुन्ना तै जानथस ते नई…

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कभू तो गुंगवाही

कईसे के बांधव मोर घर के फरिका, जरगे मंहगाई नेता मन करथे बस बईठका I कोनों दांत निपोरथे, कतको झिन खिसोरथे, कुर्सी म बैठके कुर्सी भर ल तोड़थे I अज्ररहा नेता कईके मंगतीन देथे गारी, गोसैईया किथे इही मन ताय हमर बिपत के संगवारी I तरुवा सुखागे मंहगाई के आगी म, उपराहा होगे लेड़गा के गाँव म सियानी I कोन जनी कोन ह बघवा असन ललकारही, जम्मों पैहा मन जब कुकुर असन भागही I गुंगवाही कभू तो ककरो चुल्हा के आगी, तभेच मुड़ी धरके बईठही भ्रषटाचारी नेता अऊ बैपारी I…

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नान्‍हे कहिनी : बदना

भव्यता के इतिहास लिए मनखे मनखे ल अँजोर करत जनमानस में अथाह बिसवास के नाव बदना के दाई बोहरही माई सबो मनखे बर एक तारनहार आय। आज ये जगा ह लोगन के आसथा अऊ भक्ति के प्रतीक माने जाथे, एक बार जेन ह ठाकुर देव बोहरही माई ल सुमर के बदना बदथे त जरूर ओकर मनोकामना ह पूरा होथे। अईसन बिसवास के नाव आय, सोजे सोज गोठ ये, मनोकामना पूरा होथे तभे मनखे मन आके ईहा बदना ल बदथे। पुरखा जमाना ले चलत आवत हे कोनों धन संपति, कोनों संतान…

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बड़का तिहार

परिया परगे धनहा भुईयां, दुख के बादर नई भागय रे भैय्या I काय तिहार अऊ काला जोहर, पेरावत हाबन सालों साल I ऐसो के किसानी जीव के काल, परगे संगी जब्बर अकाल I नांगर ओलहा के टूटगे फेर, काय तिहार अऊ काला जोहर I का संझा का बिहनिया, ताकते रहिथन मंझनिया, सुन ले गोठ ग सियनहा I नेता बनके ससुरा सियार होगे न, ऐकरे मनके जुरयई बड़का तिहार होगे न I तीजा पोरा अऊ दसेरा देवारी, जुरियावन सबो खैईरका दुवारी खेलन होरी मा रंग गुलाबी I अईसन कतिहा बोनस तिहार…

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मया के अंजोर

तोर मोर मया के अँजोर संगी, निक लागय महकय अँगना खोर I नाचय पतंगा आरा पारा, चिरैया चहकय डारा डारा I बांधे कईसन तै बंधना के डोर, तोर बर मोर मया सजोर I तोर मोर मया के अँजोर संगी I2I पुन्नी के जईसे चमके चंदा, सावन मा बरसे रिमझिम बरखा I झर झर झरे मोती मया के, जुरागे पीरा करके सुरता I तोर मोर मया के अँजोर संगी I2I हिरदे के अईना मा बसे हस मोर, झुलत रहिथे चेहरा ह तोर I पाखी बांधे जईसे जीव उड़ाथे, तोर बिना कुछु…

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गदहा के सियानी गोठ

पहिली मेंहा बता दौ घोड़ा अउ गदहा म का फरक हे, घोड़ा ह बड़ होशियार, सयाना अऊ मालिक के जी हजूरी करईया सुखियार जीव ये। आँखी कान म टोपा बांध के पल्ला दऊड़ई ओकर काम ये, भले मुड़भसरा गिर जही, मुड़ी कान फूट जही, माड़ी कान छोला जही फेर पल्ला भागे बर नई छोड़य। रद्दा ह चातर रहय फेर चिखला सनाय राहय मालिक ह जेती दऊड़ा दय उही कोती दऊड़े बर परही। माने होशियार होके दूसर के दिमाग अऊ दूसर के बताय रद्दा म चलईया आज के समे मा इही…

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समे समे के गोठ ये

[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”] सांच ल आंच काय हे जेन मेर गलत दिखते तेला बोले बर पड़ही, जेन ह हमर छतीसगढ़ के माटी के अपमान करही, जेन ह ईहाँ के मया ल लात मारही अऊ जेन मनखे ह ईहा के जर जमीन जंगल के सत्यानाश करे बर उमड़े हे तेने ह हमर बईरी ये। वोहा कभू हमर हितवा नई हो सकय, फेर सोचथव आज के समे म सब अपनेच सुवारथ में डूबे हाबय, कमे देखे अऊ सुने बर मिलथे छतीसगढ़ भुईयां के पीरा ल समझईया । अभिच…

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हाय रे मोर गुरतुर बोली

मोर बोली अऊ भाखा के मय कतका करव बखान, भाखा म मोर तीरथ बरथ हे जान ले ग अनजान। हाय रे मोर गुरतुर बोली, निक लागय न। तोर हँसी अऊ ठिठोली निक लागय न। मोर बोली संग दया मया के, सुग्हर हवय मिलाप रे। मिसरी कस मिठास से येमे, जईसे बरसे अमरीत मधुमास रे। ईही भाखा ल गूढ़ के संगी, होयेन सजोर,सगियान रे। अपन भाखा अऊ चिन्हारी के, झन लेवव तुमन परान रे। मुड़ी चढईया भाखा ल आवव, जुरमिर के फरियातेन। सूत उठ के बोलतेन सबले पहिलिच राम राम ग।…

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