कईसन जमाना आईस ददा, गाँव ह घलो लुकागे I बड़का बड़का महल अटारी म, खेत खार ह पटागे I नईये ककरो ठऊर ठिकाना, लोगन ल बना दिस जनाना I नेता मन के खोंदरा बनगे, छोटकुन के आसरा ओदर गे I चिटकिन रुपिया देके, ठेकेदार अऊ नेता तनगे I गवई ल शहर बनाके, कईसन कईसन गोठीयाथे I मेहनत करईया ल भूखे मारथे, टेसहा ल एसी म घुमाथे I कईसन जमाना आयिस ददा, गुरतुर गोठ सुने बर नदागे I पिरित के मया अऊ, बानी के बोल सिरागे I लईका लोग ह लोक…
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विजेंद्र कुमार वर्मा के कविता
नेता के गोठ नेता ह अड़जंग भोगाय हे, घुरवा कस बेशरम छतराय हे I किसान मन के लहू चूस के, येदे कस के बौराय हे I देख के मजदूर अऊ किसान ह, मरत ले मुरझाय हे I उज्जर उज्जर कुरता पहिन के, दाग ल घलो छुपाय हे I नेता ह अड़जंग भोगाय हे I नेतागिरी अऊ दादागिरी करके, लोगन ल गोड़ तरी दबाय हे I जात अऊ पात में बाटके, भाई ल भाई से लड़ाय हे I चापलूसी करत बाबू अफसर ह, गजब के पोट्ठाय हे I अब तो कुछ…
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