– वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गांव म एक झन डोकरी रहय। डोकरी के एक झन बेटा रहय, गांव भर के मनखे ओला लेड़गा कहय। लेड़गा ह काम-बुता कुछु करय नहीं बस गोल्लर कस झड़के अउ गली-गली किंजरय। डोकरी बपरी ह बनी-भूती करके अपन गुजर-बसर करत रहय। एक दिन डोकरी ह किहिस-‘‘ कस रे धरती गरू लेड़गा। अब तो तैहा जवान होगे हस अउ मोर जांगर थकगे हे। कहीं काम-धाम नइ करबे तब हमर गुजारा कइसे होही? तोर देहें पांव भर बाढ़े हे अक्कल-बुध ला घला बढ़ाके कुछु काम करबे तभे तो…
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लोक कथा : लेड़गा मंडल
– वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गांव म एक झ लेड़गा रहय। काम बुता कुछ नइ करय। ओखर दाई ओला अड़बड़ खिसयावय। लेड़गा के दाई जब सियान होगे अउ लेड़गा जवान, तब रिस के मोर डोकरी ओला अड़बड़ गारी-बखाना दिस। लेड़गा हाथ जोड़के किहिस-‘‘ले दाई अब जादा झन खिसया। काली ले महुं कुछु बुता काम करके चार पैसा कमा के तोर हाथ में दुहूं। डोकरी खुश होगे अउ बिहान दिन आज मोर बेटा ह कमाय बर जाही कहिके लेड़गा बर सात ठन मुठिया रोटी रांध के मोटरी म जोर दिस। लेड़गा रोटी…
Read Moreलोक कथा : लेड़गा के बिहाव
– वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गाँव म एक गरीब लेड़गा रहय। ये दुनिया म लेड़गा के कोन्हों नइ रिहिस। दाई रिहिस तउनो ह कुछ समे पहिली गुजर गे। लेड़गा ह बनी-भूती करके भाजी-कोदई, चुनी-भूंसी खाके अपन गुजर बसर करत रहय। सम्पत्ति के नाव म लेड़गा के एक झोपड़ी भर रहय तब उही झोपड़ी के आधा म पैरा के खदर छानी रहय अउ आधा ह अइसने खुल्ला। एक ठन गाय रहय जउन ह आधा भीतरी तब आधा बहिरी बंधाय। एक ठन हउला रहय तहु ह नो जगह ले टोड़का रहय जउन ला…
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–वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गाँव म एक गरीब लेड़गा रहय। ये दुनिया म लेड़गा के कोन्हों नइ रिहिस। दाई रिहिस तउनो ह कुछ समे पहिली गुजर गे। लेड़गा ह बनी-भूती करके भाजी-कोदई, चुनी-भूंसी खाके अपन गुजर बसर करत रहय। सम्पत्ति के नाव म लेड़गा के एक झोपड़ी भर रहय तब उही झोपड़ी के आधा म पैरा के खदर छानी रहय अउ आधा ह अइसने खुल्ला। एक ठन गाय रहय जउन ह आधा भीतरी तब आधा बहिरी बंधाय। एक ठन हउला रहय तहु ह नो जगह ले टोड़का रहय जउन ला लाख…
Read Moreलोक कथा : लेड़गा मंडल
– वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गांव म एक झ लेड़गा रहय। काम बुता कुछ नइ करय। ओखर दाई ओला अड़बड़ खिसयावय। लेड़गा के दाई जब सियान होगे अउ लेड़गा जवान, तब रिस के मोर डोकरी ओला अड़बड़ गारी-बखाना दिस। लेड़गा हाथ जोड़के किहिस-‘‘ले दाई अब जादा झन खिसया। काली ले महुं कुछु बुता काम करके चार पैसा कमा के तोर हाथ में दुहूं। डोकरी खुश होगे अउ बिहान दिन आज मोर बेटा ह कमाय बर जाही कहिके लेड़गा बर सात ठन मुठिया रोटी रांध के मोटरी म जोर दिस। लेड़गा रोटी…
Read Moreपुस्तक समीक्षा : अव्यवस्था के खिलाफ आक्रोश की अभिव्यक्ति ‘‘झुठल्ला‘‘
महान विचारक स्वेट मार्डन ने कहा है कि ‘कहकहों में यौवन के प्रसून खिलते है।‘ अर्थात उन्मुक्त हँसी मनुष्य को उर्जा से भर देती है। पर आज के भौतिकवादी इस युग ने जीवन को सुविधाओं से तो भर दिया है पर होंठो से हँसी छिन ली है। एक ओर ढोंगी, पाखंडी, बेईमान और भ्रष्ट लोग अपनी आत्मा को बेचकर समृद्धि की शिखर पर मौज मना रहे हैं वहीं दूसरी ओर ईमानदार, श्रमशील और सत्यवादी लोग दो-जून की रोटी को तरस रहे है। जब चारों ओर ढोंग, आडम्बर, पाखंड का पहाड़…
Read Moreव्यंग्य : बछरू के साध अउ गोल्लर के लात
चरवाहा मन के मुखिया ह अतराप भर के चरवाहा मन के अर्जेन्ट मीटिंग लेवत समझावत रहय कि ऊप्पर ले आदेष आय हे, अब कोन्हो भी बछरू ला डराना-धमकाना, छेकना-बरजना नइ हे बस अतके भर देखना हे, ओमन रोज बरदी म आथे कि नहीं? बरदी म आके बछरू मन कतको उतलइन करे फेर हमला राम नइ भजना हे। जउन बछरू बरदी म नइ आवत हे ओखर घर में जाके ओला ढिल के लाना हे अउ भुलियार के बरदी म रखना हे। ओमन चाहे तुमन ला लटारा मारे, चाहे हुमेले। तुमन ला…
Read Moreव्यंग्य : कुकुर के सन्मान
कबरा कुकुर ला फूल माला पहिर के माथ म गुलाल के टीका लगाय अंटियावत रेंगत देखिस तब झबरा कुकुर ह अचरज में पड़गे। सन्न खा के पटवा म दतगे। ओहा गजब बेर ले सोचिस, ये कबरा ह बइहागे हे तइसे लागथे। नंदिया बइला अस मनमाने सम्हर के कोन जनी कहाँ जावत हे। अभी तो न कहूँ ठउर म कुकुर सम्मेलन होवत हे अउ न कुकुर मेला भरात हे। तीरथ-बरथ जाय के तो सवालेच नइ उठय। हमर पुरखा मन तो पहिली ले चेताय हे कुकुर ह गंगा जाही तब पतरी ला…
Read Moreलोक कथा चन्दन के पेड़
एक राज में एक राजा राज करय। राजा के आधा उमर होगे रहय फेर एको झन सन्तान नइ रहय। संतान के बिना राजा-रानी मन ला अपन जिनगी बिरथा लागय। रात-दिन के संसो-फिकर में उखर चेहरा कुम्हलागे रहय। एक दिन राजमहल में एक झन साधू अइस। राजमहल ला निचट सुन्ना देखके अउ रानी के चेहरा देख के ओहा रानी के दुख ला जान डारिस। साधु ह रानी ला किहिस-‘‘बेटी! तैहा जादा संसो झन कर। तोर भाग में संतान सुख लिखाय हावे। मैहा तोला एक ठउर के पता बतावत हवं, उहाँ आमा…
Read Moreलोक कथा : घंमडी मंत्री
एक राज में एक राजा राज करय। वो राज म अन्न-धन, गौ-लक्ष्मी, कुटुंब-परिवार के भरपूर भंडार रहय, सब परजा मन सुखी रहय। सबो कोती बने सुख संपत्ति रहय। कोन्हों ला कोन्हों किसम के दुख-पीड़ा नई सतावय। एक समे के बात आय। राजा के मंत्री मन ला बहुत घंमड होगे कि वो राज मे उंखर ले जादा बुद्धिमान जीव कोन्हों नइ हे। ओमन सब परजा ला मूरख समझे अउ सोचय कि राज के सुख षांति सब हमरे भरोसा म हावे। मंत्री मन के हाव-भाव ला देख के राजा जान डारिस कि…
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