लोक कथा : कोपरी के महल

एक राज में एक राजा राज करय। राजा के छै झन रानी रहय फेर एको झन के लइका नइ रहय। एक झन संतान के बिना राजा ला राजपाट, धन-दोगानी, महल-अटारी सब बिरथा लागे। रातदिन राजा ह संसो में पडे रहय कि मोर बाद ये राजपाट के काय होही। संसो के सेती राजा के मुँहु करियावत रहय अउ काया ह लकड़ी कस सुखावत रहय। राजा के अइसन दसा ला देख के एक दिन मरदनिया ह किहिस-‘‘राजा साहेब! जादा संसो झन करव। एक बिहाव अउ कर लेव, हो सकथे करम में कहूँ…

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लोक कथा : जलदेवती मैया के वरदान

एक गाँव में एक साहूकार रहय। साहूकार के सोला साल के सज्ञान बेटी रहय। साहूकार के पूरा परिवार र्धािर्मक रहय। साहूकार के दुवारी में आय कोन्हों मंगन जोगी कभुदुच्छा हाथ नइ जावय। भूखन ला भोजन देना, पियासे ला पानी पिलाना अउ भटके ला रद्दा बताना साहूकार के परिवार ह सबले बड़े धरम समझे। साहूकार के बेटी निसदिन अपन कुल देवता के पूजा पाठ करके दान-पुण्य करय। कुछ दिन के बाद लड़की के बिहाव दूसर राज के साहूकार के बेटा संग होगे। ससुरार जाय के पहिली लड़की ह बने मन लगा…

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कमरछठ कहानी (1) – दुखिया के दुःख

वीरेन्द्र सरल एक गाँव में दुखिया नाव के एक झन गरीब माइलोगन रहय। जिनगी के आधा उमर सिरावत रहिस फेर आज ले ओखर कोरा सुन्ना रिहिस। गाँव के लइकोरी मन ओला ठाठा कहिके ताना मारे। काय करे बपरी ह सब के ताना ला कले चुप सहि के आँसू ढारत पहाड़ कस जिनगी ला पहावत रहय। एक बेर उखर बियारा में कुत्तनिन ह पिला जनमे रहय। दुखिया ह उही में के एक ठन पिला ला अपन घर ले आनिस पोसे लगिस। कोन जनी कुकर के ओ पिला के अइसे काय परताप…

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कमरछठ कहानी (2) – सातो बहिनी के दिन

वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गांव में सात भाई अउ एक बहिनी के कुम्हार परिवार रहय। बहिनी के नाम रहय सातो। एक समे के बात आय जब आशाढ़ के महिना ह लगिस। पानी बरसात के दिन षुरू होईस तब कुम्हार भाई मन पोरा के चुकी-जांता, नंदिया बइला अउ गणेष भगवान के मूरती बनाय बर माटी डोहारबो कहिके गाड़ी में बइला ला फांदिन अउ गांव के बाहिर खार डहर चले लगिन। उही बेरा में नानकिन बहिनी सातो घला माटी डोहारे बर जाहूँ कहिके जिद करे लगिन। मयारूक भाई-भौजाई मन, तैहा झन जा नोनी…

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कमरछठ कहानी (3) – मालगुजार के पुण्य

वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गाँव में एक झन मालगुजार रहय। ओहा गाँव के बाहिर एक ठन तरिया खनवाय रहय फेर वह रे तरिया कतको पानी बरसय फेर ओमे एक बूंद पानी नइ माढ़े। सुख्खा तरिया ला देख के देखइया मन मालगुजार ला करम छड़हा कहिके गारी देवय। मालगुजार के जीव बिट्टागे रहय। मालगुजार इही संसो फिकर में घुरत रहय। एक दिन ओला तरिया के देवता ह सपना दिस कि तैहा तोर दुधमुँहा नाती ला लानके मोरा कोरा म सौपबे तभे ये तरिया में पानी भरही। मालगुजार धरम संकट में फँसगे एक…

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कमरछठ कहानी(4) – देरानी -जेठानी

वीरेन्द्र ‘सरल‘ एक गाँव में एक देरानी अउ जेठानी रहय। जेठानी के बिहाव तो बहुत पहिलीच के होगे रहय फेर अभी तक ओखर कोरा सुनना रहय। अड़बड़ देखा-सुना इलाज-पानी करवाय फेर भगवान ओला चिन्हबे नइ करय। मइनखे मन ओला बांझ कहिके ताना मारे। जेठानी के जीव ताना सुनई में हलाकान रहय। सास-ससुर अउ ओखर गोसान तक ओला नइ भावय। ओहा निचट निर्दयी घला रहय काखरो लोग लइका ला नइ भाय। सब ला गारी बखाना दे। उहीच घर में जब ओखर देरानी ह बिहा के अइस तब साल भर में ओखर…

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कमरछठ कहानी (6) – सोनबरसा बेटा

वीरेन्द्र सरल एक गांव में एक झन गरीब माइलोगन रहय। भले गरीब रिहिस फेर आल औलाद बर बड़ा धनी रिहिस। उहींच मेरन थोड़किन दूरिहा गांव में एक झन गौटनीन रहय। ओखर आधा उमर सिरागे रहय फेर ओहा निपूत रहय। एक झन संतान के बिना ओखर जिनगी निचट अंधियार रहय। एक समय के बात आय। गरीबिन घर एक झन मंगन जोगी आइस। ओ समें गरीबिन फेर अम्मल में रिहिस। जोगी किहिस-बेटी! तैहा बड़ा किस्मत वाली अस। ये पइत तो तोर घर सउंहत भगवाने अवतरही। तोर अवइया बेटा ह घातेच गुणी होही।…

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पुस्तक समीक्षा : माटी की महक और भाषा की मिठास से संयुक्त काब्य सग्रंह- ‘जय हो छत्तीसगढ़’

राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ी भाषा को समुचित मान-सम्मान मिलने लगा है और यहां के निवासियों के मन में से अपनी भाषा के प्रति जो हीनता का भाव था वह भी समाप्त होने लगा है। इसलिए आजकल साहित्य की सभी विधाओं में छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रचुर मात्रा में लेखन हो रहा है। भाषा की समृद्धि और विकास के लिए यह सुखद और सकारात्मक संदेश है। यदि हम आज से तीस चालिस साल पहले की कल्पना करें जब छत्तीसगढी को देहातियों की भाशा कहकर तिरश्कृत किया जाता था और छत्तीसगढ़ी भाषी…

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व्यंग्य : नवा सड़क के नवा बात

गरमी के दिन में बने नवा चमचमाती सड़क ह बरसात के पहिलीच पानी में हिरोइन के मेक-अप असन धोवागे अउ रेती, सिरमिट, डामर अउ बजरी गिट्टी मन भिंगे उड़िद दार के फोकला कस उफलगे। सड़क ह चुहके आमा के फोकला कस खोचका-डबरा होगे। जी पराण देके जनता के सेवा करइय्या भैय्या जी किसम के मनखे मन तुरते ये बात के शिकायत, सड़क बनवइय्या बड़े साहब मेरन जा के करिन। पत्रकार मन घला साहब मेरन पहुँचे रिहिन। पत्रकार मन साहब ला पुछिन-’’कस साहब! आजकल लाखों-करोड़ों रूपिया के बने पुल-पुलिया अउ चमचमाती…

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लोक कथा : सुरहीन गैया

एक गांव में एक झन डोकरी रिहिस, ओखर एक झन बेटा रिहस जउन ह निचट लेड़गा अउ कोड़िहा रहय। डोकरी ह गांव में बनी-भूती करके दु पइसा कमावय उही आमदनी में दुनों महतारी बेटा के गुजारा होवय। उपरहा में लेड़गा ह अपन-संगी जहुंरिया मन ला बने खई-खजाना खावत देख के वइसनेच जिनिस के मांग अपन दाई ले करे। अब बिचारी गरीबिन डोकरी ह लेड़गा के मांग ला कहां पूरोय बर सकतिस। एक दिन लेड़गा ह पान-रोटी खाहूं कहिके अड़बड़ जिद करिस। बिचारी गरीबिन काय करे, एक डहर दुलरवा बेटा के…

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