Categories
कहानी

लोक कथा : सतवंतीन

बहुत जुन्‍नस बात आय। एक गांव में सात भाई अउ एके झन बहिनी के परिवार रहय। सब ले छोटे भाई के नाव संतु अउ बहिनी के नाव सतवंतीन रहय। छै झन भाई मन के बिहाव होगे रहय। संतु भर के बिहाव होय बर बांचे रिहिस। बिचारी सतवंतीन अपन दाई-ददा मन ला जानबे नइ करय, काबर […]

Categories
कहानी

छत्‍तीसगढ़ी लोक कथा : घंमडी मंत्री

–वीरेन्द्र सरल एक राज मे एक राजा राज करय। वो राज म अन्न धन, गौ लक्ष्मी कुटुंब परिवार के सब भरपूर भंडार रहय, सब परजा मन सुखी रहय। सबो कोती बने सुख संपत्ति रहय। कोन्हो ला कोन्हो किसम के दुख पीड़ा नई सतावय। एक समे के बात आय। राजा के मंत्री मन ला बहुत घंमड […]

Categories
कहानी

छत्‍तीसगढ़ी लोक कथा : जइतमाल के ठेंगा

वीरेन्‍द्र सरल बहुत जुन्ना बात आय। एक गांव म एक गरीब महराज महराजिन रहय। महराज गांव गांव किंजर के भिक्षा मांगे। भिक्षा मे जउन मिले तिही मे दुनो पराणी के गुजर बसर होवय। महराज महराजिन मन के एको झन लोग लइका नइ रिहिस। भिक्षा मे बहुत कम धन मिले। मंहगाई मनमाने बाढ़ गे रिहिस। ओमन […]

Categories
कहानी

मुठिया के पेड़

– वीरेन्द्र सरल एक गाँव म एक झन डोकरी रहय। ओखर एक झन बेटा रहय, नाव रहय कल्लू। कल्लू ह निचट अलाल अउ घुम्मकड़ रहय। कल्लू के छोटे रहत ले डोकरी ह कुटिया पिसिया बनी भूति करके वोला पोस डारिस फेर जब कल्लू ह जवान होगे तब कमती आमदनी म महतारी बेटा दुनो के गुजारा […]

Categories
कहानी

ईमानदार चोर

– वीरेन्द्र सरल एक राज मे एक झन राजा राज करय। राजा के तीन बेटा रहय। दु झन बेटा के बिहाव होगे रहय फेर तीसरा बेटा ह कुवांरा रहय। एक दिन राजा सोचिस कि अब मोर बुढ़ापा आगे हावे, ये जीव कब छूट जही तेखर कोई ठिकाना नइहे। मरे के पहिली मै अपन संपत्ति ला […]

Categories
व्यंग्य

बियंग : भइंस मन के संशो

रेंगत-रेंगत कारी भइंस किहिस सिरतोन मं बहिनी हमर मन के जनम तो दुहायच बर होय हावे। न चारा न पानी, एक मुठा सुख्खा पैरा ला आघू मं फेंक दिन अउ दुहत हे लहू के निथरत ले। दूध ला हमर पिला मन बर तक नइ छोड़य बेईमान मन। हमरे दूध, हमरे दही, हमरे घी अउ लेवना […]

Categories
व्यंग्य

व्यंग्य : छत मा जल सग्रंहण

-वीरेन्द्र सरल एकेच दो साल पहिली बने नवा सरकारी भवन के छत उपर गर्मी भर मनमाने बोरझरी और बमरी कांटा ला बगरा के राखे गे रिहिस हावे । रद्दा म रेगंइया ओती ले रेंगें तब छत उपर कांटा ला देख के अचरज मे पड जाय।कारण जाने के उदिम करे फेर कारण समझ मा आबे नई […]

Categories
समीच्‍छा

पुस्तक समीक्छा : अंतस के पीरा के गोहार ‘लदफंदिया’

हमर छत्तीसगढ़ी म एक ठन हाना हे ‘ढोल तरी पोल अउ मशाल तरी अंधियार’ व्यंग्य लेखक मन इही अंधियार अउ पोल ला देखके व्यंग्य लिखथे। जेला पढ़के पढ़इय्या मन कहिथे, ‘गजब मजा आइस अउ हांसी लागिस।’ फेर एक ठन बात ऊपर ध्यान देना बहुत जरूरी हे। व्यंग्य लेखक फकत हंसाय बर कभू रचना नइ करय […]

Categories
कहानी

जलदेवती मैय्या के वरदान

एक गांव म एक साहूकार रहय। साहूकार के सोला साल के सज्ञान बेटी रहय। साहूकार के पूरा परिवार धार्मिक रहय। साहूकार के दुवारी मं आय कोन्हो मंगनजोगी कभु दुच्छा हाथ नई जाय। भूखन ला भोजन देना, पियासे ला पानी पिलाना अउ भटके ला रस्ता बताना साहूकार के परिवार अपन धरम समझे। साहूकार के बेटी निसदिन […]