हेलमेट के भूत

हमर मइके रइपुर म नवा रहपुर बन गे हे, तेन ल तो तेहां जानत हस। टूरा के दाई ह अपन अउ अपन मइके के बढई सुनके खुस होगे। भला कोन माइलोगिन खुस नई होही। लडियावत कहिस- नवा रपुर बने ले कहां एको गे हंव मइके। मेहा कहेंव- ले ना ये बखत तोर पूजभजित मन के बिहाव के नेवता आही तक चल देबे। टूरा के दाई ह मगन होके कहिथे- अई ह, नवा रदपुर के रोड मन तो अब अब्बड चौंक-चाकर हावय कहिथें। जुन्ना रइपुर म मोटर गाडी के पीं-पों, मेला…

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बेंगवा के टरर-टरर

एक समे के बात ये, पानी नी गिरीस। अंकाल पर गे। सब कोती हाहाकार मचगे। सब ले जादा पानी म रहवइया जीव-जंतु मन के करलई होगे। एक ठन बेंगवा ल अपन भाई-बंधु के याहा तरहा दुख ल देख के रेहे नी गीस। ओ मन ल ये केवा ले उबारे बर इंद्र देवता मेर पानी मांगे बर जाये के बिचार करीस। एक कनिक दुरिहा गेय राहय त ओला एक ठन बिच्छी भेंट पारिस अउ पूछथे- बेंगवा भईया तैं लकर-लकर कांहा जावत हस गा? बेंगवा अपन मन के बात बतईस। बिच्छी ह…

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खने ला न कोड़े ला, धरे ल खबोसा

हाना म कहिनी एक साहार म एक झन आदमी राहाय। ओ कहिथे- भगवान हा सब झन ल अमीर बनाए हे, भला मुहीच ल काबर गरीब बनईस होही? मैं ये बात के निरने कराहूं तभे बनहीं। अइसे कहिके ओ हा भगवान ला खोजत-खोजत ऐती-ओती, जंगल-झाड़ी डाहार ले जावत रहिथे। रसता म ओला एक ठक गाहबर (हुंडरा) भेंटथे। हुड़रा ह पुछथे- तैं लकर-लकर काहां जात हस जी कहिके। त ओ हा अपन सबो हाल ल बताथे। त हुंड़रा कहिथे- अरे, अइसने मोरो एक ठन बात हे गा, तैं जावत हस त मोरो…

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छत्तीसगढ़ी हायकू

बिन पानी के। सावन-भादो! जेठ। मन उदास। x ठग-ठग के। तैं बिलवा बादर। कांहां बुलबे? x बिगन पानी। कइसे होही खेती। संसो लागथे। x बिचारे हस? निरदई बादर। मन के पीरा। x पीरा ओनहा। पीरा दसना पी-ले। खा ले पीरा ल। विट्ठल राम साहू ‘निश्छल’ मौंवहारी भाठा महासमुन्द

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अंधरी के बेटा – विट्ठलराम साहू ‘निश्छल’

एक झन राजा रिहिस। ओ हा अपन राज म बजार लगवाय। ओखर फरमान रिहिस कि जऊन जिनिस हा सांझ के होवत ले नई बेचाही तौन जिनिस ला राजा के खजाना ले पइसा दे राख लेय जाय। एक झन मूरति बनईया करा राक्छसिन के मूरति बांचगे ओला कोन्हों नई लीन। जान-बूझ के माछी कौन खाय? पइसा दे के राक्छसिन ला कोन ले ही? सांझ किन ओ मूरति ल राजा ल लेय बर परगे। राक्छसिन तो राक्छसिन ये। राक्छसिन हा राजा ला कहिथे, ‘मोला पइसा डार के लेय हस, बने बात ए।…

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जोड़ी! नवलखा हार बनवा दे

”मोर चेहरा के उदासी ह परोसी मेंर घलो नइ दोबईस। मोला अतक पन उदास कभू नई देखे रिहीस होही। परोसी ल मैं अपन समसिया ल गोहरायेंव त कहिथे ”अरे, ओखर बर तैं संसो करत हस जी?” पहिली ले काबर नई बतायेस, चल आजे चल न मैं तोला हजार पांच सौ म बढ़िया हार देवा देथंव। देवत रहिबे पईसा ल आगू-पाछू ले। फेर तोर गोसईन मेंर तोला नाटक करे बर परही।” हासिय बियंग बाल हठ तो जगत परसिध हई हे, फेर तिरिया हठ के आगू बड़े-बड़े तीसमारखां मनखे मन पानी भरथें।…

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मोर सुआरी परान पियारी

”संसार के सब दाई-ददा हा बहू, बेटा, नाती -नतरा के सुख भोगे के सपना देखथे। ओ मन रात -दिन इही संसो म बुड़े रहिथे कि मोर औलाद ल कांही दु:ख-तकलीफ झन होवय। बने-बने कमावयं खावयं। बने ओनहा पहिरे। बने रद्दा म रेंगय। दुनिया म हमर नांव जगावंय। कहिके अपन मन भूख-पियास ल सहिके औलाद के मुंह मं चारा डारथें। औलाद कपूत निकल जथे तेन ल कहूं का करही। सियान मन गुनथें मरे के पहिली नाती-नतुरा के मुंह देख लेतेंव कहिके। मोर दाई ह घलों अइसने सपना देखय। दाई ल बहू…

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