हर साल नवा बछर मा 14 जनवरी के दिन हमन मकर संक्रान्ति परब ला बहुॅत धूम-धाम से मनाथन। अइसे तो ए तिहार ला देस अउ बिदेस म घलाव मनाए जाथे फेर ए तिहार के का महत्तम हे एला जानव………
धार्मिक महत्तम- मकर संक्रान्ति के परब ला जिनगी के संकल्प लेहे के परब घलाव कहे जाथे। ए दिन ला मन अउ इंद्रीय मा अंकुस लगाए के संकल्प के रूप मा घलाव मनाए जाथे। पितामह भीष्म हर मकर संक्रान्ति के दिन अपन परान ला त्यागे के परन लेहे रहिस हावै जबकि उनला इच्छा मृत्यु के वरदान मिले रहिस हावै। ए दिन के अगोरा मा पितामह भीष्म 6 महीना ले बान के सेज मा सुते रहिन हावै। मकर संक्रान्ति के दिन गंगास्नान अउ गंगातट में दान के अड़बड़ महत्तम हावै। हमर धरम ग्रंथ के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन गंगा मइया भागीरथी के पीछू.पीछू रेंगत.रेंगत कपिल मुनी के आश्रम ले होवत सागर में आके मिले रहिस हावै। एखरे सेती ए दिन गंगासागर मा स्नान दान के भारी महत्तम हावै। कहे गै हावय – सारे तीरथ बार.बार,गंगा सागर एक बार। बंगाल में मकर संक्रान्ति के दिन गंगा.सागर मा जनसैलाब उमड़ जाथे। ए दिन तीर्थराज प्रयाग अउ गंगासागर में स्नान महास्नान कहे जाथे। उत्तर परदेस मा इलाहाबाद मा गंगा,यमुना अउ सरस्वती के संगम मा मकर संक्रान्ति से लेके 1 महीना तक मेला भराथे। ए मेला हर पहिली स्नान मकर संक्रान्ति ले सुरू होके शिवरात्रि के आखरी स्नान तक चलथे।
भौगोलिक महत्तम- संगवारी हो ए तिहार ला बडे़ दिन घलाव कहे जाथे। मकर संक्रान्ति हर सिसिर रितु के जाए के अउ बसंत रितु के आए के परतीक हरै। संक्रान्ति के मतलब होथे सम्यक क्रान्ति। ए दिन ले सुरूज के कान्ति में परिवर्तन सुरू हो जाथे। हमर भारत देस हर पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध मा हवै। संक्रान्ति ले पहिली सुरूज हर दक्छिनी गोलार्ध मा रहिथे मतलब हमर भारत देस से सुरूज के दूरी जादा होय के सेती हमर देस मा रात हर बडे़ अउ दिन हर छोटे होथे जेखर कारन हमर इंहा जाड़ा के मौसम रहिथे। मकर संक्रान्ति के दिन सुरूज नारायन हर दक्छिनी गोलार्ध ले उत्तरी गोलार्ध मा आ जाथे जेखर सेती हमर देस मा आज के दिन ले सुरूज के परकास जादा देर तक रहिथे अउ दिन हर बडे़ अउ रात हर छोटे हो जाथे। ए दिन सुरूज नारायन हर धनु राशि ला छोड़के मकर राशि मा आ जाथे। ए दिन ले हमन अंधकार से परकास के तरफ बढ़ जाथन जेखर से जम्मों परानी के चेतना अउ ताकत मा बढ़ोतरी होथे। सर्दी के परकोप ला दूर करे बर मकर संक्रान्ति के दिन भगवान सुरूज नारायन के पूजा अर्चना करे जाथे। बारह राशि के रथ मा सुरूज नारायन हर आकास मा विचरन करत रहिथे जेखरे सेती रितु मा परिवर्तन होवत रहिथे। भारतीय पंचाग पद्धति मा जम्मों तिथि ला चन्दा के गति ला आधार मानके तय करे जाथे फेर मकर संक्रान्ति ला सुरूज के गति ला आधार मानके तय करे जाथे एखरे सेती ए परब ला हर साल 14 जनवरी के मनाए जाथे।
समाजिक महत्तम- हमर भारत देस के अलग.अलग जगह मा अलग.अलग नाम से ए तिहार ला मनाए जाथे। पंजाब मा मकर संक्रान्ति के एक दिन पहिली ए तिहार ला लोहड़ी के नाम से मनाए जाथे। ए दिन घर.घर गजक,रेवड़ी, मक्का के रोटी अउ सरसों के साग खाए जाथ अउ बाटे जाथे। असम में माघ बीहू या भोगाली बिहू के नाम से मनाए जाथे। तमिलनाडू मे पोंगल के नाम से 4 दिन के तिहार मनाए जाथे। पहिली दिन भोगी पोंगल-ए दिन जम्मों कचरा ला सकेल के बारे जाथे। दूसर दिन सूर्य पोंगल-ए दिन लछमी माता के पूजा होथे। तीसर दिन मट्टू या केनू पोंगल-ए दिन पसुधन के पूजा करे जाथे। अंतिम दिन होथे कन्या पोंगल-ए दिन बेटी अउ दमाद के बिसेस रूप से स्वागत करे जाथे। पोंगल के तिहार मनाए बर स्नान करके खुला अंगना मा माटी के बरतन मा खीर बनाए जाथे जेला पोंगल कहे जाथे। ए खीर ला सुरूज देव ला अरपित करे के बाद परसाद के रूप मा बाटके खाए जाथे। राजस्थान में महिला मन 14 ठन सौभाग्यसूचक जिनिस तिली के लड्डू संग 14 पंडित या बेटी.माई ला दान मा देथे। महाराष्ट्र मा कहे जाथे-तिल गुलध्या आनि,गोड़.गोड़बोला। इंहा माई लोगिन मन तिली गुड़ अउ रोली ,हरदी देके कहिथे-तिली गुड़ लेवौ अउ मीठ.मीठ बोलव।। बिहार मा मकर संक्रान्ति हर खिचड़ी नाम से मनाए जाथे। ए दिन उरिद के दार,चाउर,तिली,चिवड़ा,गौ,सोना,उनी वस्त्र,कंबल आदि दान मा दिये जाथे। ए दिन घी अउ कंबल दान के अड़बड़ महत्तम हवै। कहे गै हे-माघ मासे महादेवः यो दास्यति घृतकम्बलम। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति।।ए दिन घी अउ कंबल दान करने वाला मनखे ला ए दुनिया मा हर परकार के सुख भोगे के बाद अंत में मोक्छ के प्राप्ति हो जाथे। ए तिथि मा दिये गै दान के हमला एक हजार गुना जादा पुन मिलथे। वइसे भी ए दुनिया मा दान.पुन हा हर हाल में जीव के उद्धार करथे। भारत के संगे.संग नेपाल मा ए तिहार ला फसल अउ किसान मन के तिहार के नाम से मनाए जाथे। ए दिन सुरूज नारायन के बिसेस पूजा अर्चना करे जाथे अउ बने फसल बर धन्यवाद देके उॅखर आसीस लिये जाथे। नेपाल में ए दिन ला माघे संक्रान्ति या सुर्योत्तरायन या माघी कहे जाथे।
रामेश्वर गुप्ता ”राम”
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