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कविता

रंग: तीरथराम गढ़ेवाल के कविता

तोला कोन रंग भाथे वो नोनी के दाई
वोही रंग लाहूं मंय बिसा के।
मोला जउने रंग भाथे हो बाबू के ददा।
वोही रंग लाहा तू बिसा के ॥
लाली लाहूं लाल लगाहूं,
नीला लाहूं रंग रंगाहूं,
हरा लाहूं अंग सजाहूं,
पींवरा लाहूं रंग मिलाहूं।
कारी रंग लाहूं का बिसा के !
लाली लागय हो अंगरा अस
नीला लागय हो बदरा अस,
हरा लागय हो कचरा अस
कारी लागय हो कजरा अस।
पींवरा रंग लाहा झन बिसा के।
लाली हे तोर मांथ के सेंदूर
कारी हे तोर कारी चुंदी,
हरा हे तोर अंग सवांगा
नीला हे नैन के मूदी।
पीवरा रंग अंग तोर मिलाके।
लाली न भावय मन ल जोंही
हरा न भावय तन ल जोंही
कारी-नीला बने नइ लागय
पींवरा न भावय अंग ल जोंही
लाहा तूं अपन रंग मिला के।

तीरथराम गढ़ेवाल