छंद

पारंपरिक राउत-नाच दोहा

गौरी के गनपति भये, अंजनी के हनुमान रे।
कालिका के भैरव भये, कौसिल्या के लछमन राम रे॥

गाय चरावे गहिरा भैया, भैंस चराय ठेठवार रे।
चारों कोती अबड़ बोहावे, दही दूध के धार रे॥

गउ माता के महिमा भैया, नी कर सकी बखान रे।
नाच कूद के जेला चराइस, कृष्णचंद्र भगवान रे॥

नारी निंदा झन कर गा, नारी नर के खान रे।
नारी नर उपजाव॑ भैया, धुरू – पहलाद समान रे॥

दू दिन के दुनिया मां संगी, झन कर बहुतें आस रे।
नदी तीर के रुखड़ा भैया, जब तब होय बिनास रे॥

तेल फूल मा लईका बाढ़े, पानी मा बाढ़े धान रै।
बात बात मां झगरा बाढ़े, अठ खिनवा मां बाढ़े कान रे॥

पांव जान पनही मिले, घोड़ा जान असवार रे।
सजन जान समधी मिले, करम जान ससुरार रे॥

पारंपरिक राउत-नाच दोहा

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