सृष्टि के पहिली कुछु नइ रिहिस, ना तो अंतरिक्ष अउ ना अगास रिहिस, लुकाए रिहिस वो ह हिरण्यगर्भ गुफा म अनचिन्हार असन, जउन ल कौउनो नइ समझ सकिन अउ नइ कौउनो चिन्हे सकिन। वेद पुरान मन म सृष्टि के रच्इया ल ब्रम्हा कहे गे हे फेर इनकर सिरजन ल धरर्ईया वसुधा त महिंच अंव, महिंच वो वसुधा अंव, जेकर उपर म ब्रम्हा ले सिरजन, विष्णु ले पालन अउ शिव ले संहार करे गए हे। मुण्डकोपनिषद् 2/1/3 म कहे गए हे कि “पृथ्वी विश्वसय धारिणी” मानें जम्मों विश्व ल धारन करने वाली पिरथी माने वसुधा ये। कई हजारन पईत सृष्टि होईस, हज़ारन पईत ब्रहमा बनिन, बिगड़िन फेर मैं उहिच मेर हावंंव, इहि मेर मोरेच गोदी म, हजारन लाखन देवता, राक्षस, दानव, मनखे, गंधर्व मन जनमिन अउ नास होइन फेर मैं ह अभी तक वइसनहेच दसा म ठाढ़ हाावंव। सबों छिन ल एकेच ढंग ले धरें हावंव, अड़बड़ पहिली के नवां-नवां अउ जुन्ना बखत ले बहुते व्यवस्था-अव्यवस्था में मैं ह रहेंव, मै ह उहि वसुधा आंव।
मोरेे गोदि म खेलइया भारत ह छोटेच कन मोर अंस ये, मैं ह बहुतेच बडका हवं। मै अपन भीतर म कतकोन रहस्य लुकाए हावंव, कतकोन विरासत, चीज-बस मोर भितरी म हवय, मै ह ओला नइ बतावंव, मैं ह कुछु कहि देहुँ त रहस्य के परदा उघर जाही। मैं ह काल के साखी आंव, काल घलो मोला चिन्हे म असमर्थ हे, जम्मों मानवता ह मोरेच म समोय हवय। मै ह एकदम धीर अउ निच्छल भाव ले उहिच मेर ठाढ़े हावंव, सबो ल एकेच असन धरें हावंव, हजारन उलट फेर होवत चले गे, एको झिन मोर परवाह नई करिन, काल के घुमरत चकरी के फेर म कतको इतिहास बनिस अउ मेटा गईस, फेर मैं सबो ल जानत हंव तभो ले थिर ठाढ़े हंव।
सबले पहिली मै ह लइकई म रहे़व, हरियर हरियर रहेंव, मोर मेर थिर हवा, निरझर-निरमल आरूग पानी रिहिस। सबो डहर खुसी के व्याप्त रहिस, जइसन के पूरा सरगेच ह मोरेच म उतर गे होवय, मोरो मन लइकई असन चंचल रिहिस। अचानक अबड़ बदलाव होइस जइसन के कउनो लइकई ले छिन म जवानी म भितरा गे हो, बदलाव-बदलाव बस बदलाव। थोथहा राज सुख बर लरर्ई-झंझट-अतलंग। मैं ह रो डारेंव, ब्रम्हा ले सिरजे रचना उपर तरस आ गे, का उन हा अइसन सृष्टि ल रचिंन?? तभो ले मै ह टस ले मस नइ होंयेंव, काबर मोर उपर काकरो राज नइ हे, मैं ह थिर हंव धीर हंव।
मोरेच ततकेच कन कुटका ल पाके अनंद भास करर्इया वाले मन कभु सोचेव, कुटका का कर डरे हव, काकर कुटका होइस? सोचेव कभु? जउन के उपर म डेरा बनाके रहत हवव, ओखर कुटका करके कतका अनंद पाए हो हु? अरे!!! पीरावत हे मोरो देह ह, पीरा म छटपट-छटपट करत हंव तभो ले चुप हंव, चल जान दे सोचके। काबर मोला तो तुमन ल धरना हे, मै ह तो सबो झिन ल एकेच भाव ले धरें हंवव, एकेच भाव ले देखत हवंव, मै ह नइ बनाएंव हिन्दू – मुसलमान फलानां ढेकाना। मै ए सबले आहत हावंव जेकर पीरा ल बता नई सकंव। कोउन सिखाईस अईसन ??? काकर अतका हिममत?? का मै वसुधा अंवं!!!? मै वसुधा अंव!! मै इनकर वसुधा अंव? का मै ह ए सेती मानवता संस्कृति सभ्यता ल धारन करे हंव??
मोर उपर रहईया तुमन कुछु करहू त पीरा मोहिंच ल होही। तुहंर कुटका करे ले मै कुटका नइ हो सकंव। मोर बडकापन मोर चिन्हार ये, मोर आन मोर आत्मा ये, तुहंर अउ मोर संग नता कईयो जुग ले हे। तुुहंर पहिचान मोर सेती ले हे, तुमन जउन कुछु करहू ओखर फल तुंंहर संगे-संग महुं भोगहूं।
तुमन सुघ्घर राज करहूं, महुं घलो तुमन के भलाई करहूं। तुमन बीज डारहू त मै तुमन ल फसल देके खुस करहुँ, तुमन रूख लगाहु त तुमन ल हरिहर हरियर आरूग वातावरण देहूं। तुमन के फरज हे साफ-सफई रखेके, मोला जतने के, तुमन जतका मोला आरूग रखहु मैं ह ओतकेच तुमन ल जिनगी देहूं। मोर अन्न, जल, हवा, परकास ल दोहन करहू मै तुमन ल भितराए गहिर रहस्य कोति इसारा करहूं। मै ह तुमन के हरेक हरकत उपर नजर रखे हंव, तुमन मोला बरबाद करहू त मोर संगेच संग तुमन के नास हो जाहि। जब तुम अउ मै एकेच हन त फेर का बर अतका असांत हवव? तुमन चलथव त छाप मोर उपर परथे, तुमन कुछू करथव ओखर परिनाम मोला भोगना परथे, माने तुम अउ मै बंधना म फंदाए हवन। त फेर छोड़ देवव अबिरथा-अनख-इरसा ल, तुमन के हाथ म मोर जिनगी हे, मै सिसकत हंव मोला जतनव तुमन, मै रोवत हंव मोर कलियान करव, झन करव तार-तार मोला, मां अंव तुमन के, मां के भलई करव। आज मै ह जरत हंव, पियास म तडफत हंव, सांस नइ ले सकत हंव। जिनगी मोर खतरा म हे, मोला बचाव कोउनो…!
मोर जिनगी तुमन सबो झिन बर जरूरी हे, हाथ ल जोर के बिनति करत हंव… बचा लेवव मोला बचा लेवव…. का मानवता मर चुके हे… तडफत हे मोर वसुधा, तार-तार होगे हे मोर वसुधा… का ए तुमन के फरज नइ हे?? बोम पारके रोवत हे कहत हे … ये मोर भितर के ताप ह बाढत हे, मानवता के असितत्व खतरा म हे। ओ ह अगाह करत हे कि ओ ह गरम होवत हे, अब हमन ओखर उपर बोझा हो गे हन। ओखर सिसकी ल सुन लेवव, ओखर परचंड भाव ल लेवव, इसारा-इसारा म समझावत हे ओला समझव…. ओ ह वसुधा ये ओला बचा लेवव। एक दिन आहि ओ ह टूट जाहि, जउन दिन ओ ह बिफरही वो दिन कोनो नइ बचही, जब उहि नइ रहिही त फेर का के मनखे अउ ओखर असतित्व, अउ कहा के मानवता रहिही…… इहि बताए बर आए हे मोर वसुधा… मोर वसुधा……
जय जोहार जय छत्तीसगढ़….
– गीता शर्मा