सरगुजा के दर्शनीय जल प्रपात
परकिरती कर बदलाव ले भारतभर कर कला अउ संस्किरती कर संगे–संग इतिहास अउ पुरातत्व कर जरहोजात मन धरती कर भितरी हमाये जाथें। येमन कर जानकारी जुटाना काकरो बर अब्बड़ मेहनत कर बुता होथे। हमर सरगुजा हें कईअकठन धरम-करम, इतिहास पुरातत्व मधे कर देखे जोग जगहा हवें। इहां कर जुनहा बेंगरा, माड़ा, मंदिर, गढ़ी, किला, पखना कर मूरती, मनला देख के सरगुजा कर ढेरेच जूना, बकिन सबले जबरजस्स मूरती बनाये कर कला, सुघ्चर सभ्यता अठ धरम-करम हैं जमझन कर एकजुटता कर पता चलथे। इहां कर नदी अउ ओमन हें बनल झरना (प्रपात) घुमे-फिरे कर बड़ सुग्घर जगहा हवें। सुरगुजिहा बोली हैं झरना ला ‘पवई’ चाहे ‘घाघ’ हों कहथे।
नदिमन तईहा जुग ले अपन संग-संग ओ छेतर कर जम जानकारी ला हों ले के बहथें। समाज अठ ओकर संस्किरती कर बिचार ले नदिमन कर चिन्हारी उनकर अपन पहचान होथे। होथे जम झन कर भला करे कर बिचार। संस्किरती अउ-समाजिक चिन्हारी कर संग-संग नदिमन अपन संगे ओ छेतर कर इतिहास अउ भूगोल ला हों गीतकारत बहथें । तडगा जुग ले नदिमन कर कगरे-कगरे ढेरेच जुनहा सभ्यता अउ संस्किरती जनमिनं, फरीन-फुलीन, बाढ़िन। येकरे ले नदिमन ला संस्कार बदले वाला हों कहयथें।
हमर सुरगुजा कर नदिमन हें कईअकठन अइसन सुग्घर जगहा हवें, जेमन ला बुले अवइयामन कर हिसाब ले बनाय देहे ले येमन हों कर छाया छत्तीसगढ़ राज अउ देस भर कर बुलवईयामन कर नक्सा (पर्यटन मानचित्र) हैं उपलाय जाही। तेघरी बुलवईया (पर्यटक) मन अपने-आपन घिंचाये चले आहीं । हमर जिला केन्द्रिय जल विभाजक कर एक छिना हवे। सधारन बोली हें कह सकथीं कि एकर ढलान उत्तर कती हवें। ढेरेच्च नदिमन उतरे कती बहत-बहत सोन नदी हें जायें जोराथें अउ आखिर हैं गंगा नदी हें अमा जाथें। गंगा बन जाथें ।
रकंसगंडा जल प्रपात
रकसगण्डा जल प्रपात कर नांव सबले उपरे उपलावत हवे । रेंड नदी हैं ओड़गी बिकास खंड में चांदनी बिहारपुर कर लिघे बलंगी ले कोस भर (तीन किलोमीटर) पछिम में रकसगंडा झरना (जल प्रतात) हवे । रेंढ़् नदी हर अमिरकापुर अउ सूरजपुर कर जम बोहात पानी ला संघराये के भईयाथान कर उतर हें बन कर रोंट-रोंट पखनामन ला टोरत-फोरत बिहारपुर हें ढूंक के 15 पोरसा (सैकड़ो फुट) तरी गिर के झरना बनाइस हवे। इहां सांकुर कुंईया बन गइस हवे जेहर केतरा गहिर हवे कोनों नई जानें। ये कुंड ले एक ठन लाता (सुरंग) हिंकल के करीब एक सौ फूट तक गईस हवे। एठन सूरूज कर किरन कर मेल ले पानी हर बरन-बरन कर दिसथे ।
– इहां कर सुघराई कर मेल अउ कोनों जगहा ले नई करत बनथे। एठन कर पानी हैं रोंट-रोंट मछरी, मंगर अउ घड़ियाल हों भेटाथें । ये झरना हर अउरमन ले तनिक फरके हवे। काबर कि ऐला उपरे ठढ़ोए के तरी गिरत देखे के परथे। बरखा घरी नदी हें अब्बड (अथाह) पानी भरे रहे ले झरना हर नई दिसे। एके गरमी घरी सुग्घर ले देखल जाय॑ सकेल। ऐला दुरिहां ले नई देखल जा सके। अंगरेजी कर ५ अछर कर बरन ले बनल जबरजस्स झरिया हर कईअक मिल दुरिहां तक ले चल गईस हवे। इहां ले तनिक आधघू पहटा लगाये के मछरी मारथें, जेमे एक कुंटल तक के हों मछरी भेंटाथें ।जेला गोछरा कहथें। रियासत जुग हें महरायेज रामानुज शरन सिंह जब-तब ये झरना ला देखे अंगरेज अठ आने-आने मेहमान संगे जात रहिन अउ उहां जायके मछरी कर सिकार हों खेलें ।
ए झरना कर नांव रकसगंडा धराये कर आपन कहनी हवे। जब सिरी रामचन्दर जी बनबास घरी सुरगुजा आईन त उनके जगहन जंगहा साधू महात्मा मन कर हाड़ा कर ढेरी देखाल गईस, जेला रकसा मन कुढ़ाये रहिन। त सीरी रामचन्दर जी दंडकारन ला आपन राज कर छेतर जान के रकसामन ला मार गिराईनं । ए जगहा हर रकसगंडा (रकस – राक्षस और गंडा – ढेर) माने राछस मंन कर ढेर कर नांव ले आपन ओ जुग कर घटना ला हों आपन नांव कर संघे जोरे हवे।
रेंड नदी ला रेंढ़, रेणुका चाहे रिहन्द हों कहंथें। एहर ए ठन कर चारो – जिला कर सबले रोंट नदी हवे। मैनपाट कर मंतरिंगा ले हिंकल के एक सै पैंसठ किलोमीटर तक ले पोहाथे। एकर उपरे उतर परदेस कर सरकार हर . सोनभदर जिला हें रिहन्द बांध बन्धुवाईस हवे। एला इहां कर लोग मन गंगा नियर पबितर मानथें। कासी खंड हैं बनारस कर बुधमान पंडितमन लिखिन हवें –
स्मरणत जन्मजं पापं, दर्शनेन मिजन्मजम् ।
स्नात्वा जन्म सहस्याणाहंति रेणु कलो युगे।
एकर अरथ हवे कि रेंड़् नदी कर घियान करे भर ले जनम-जनम कर पाप नठाए जाथे। देखे ले तीन जनम कर पाप नठाथे अठ ए कलजुग हें रेंड् नदी हें असान (स्नान) करे ले हजारों जनम कर पाप नठाये जाथे।
चनान पवई
अमिरकापुर ले रामानुजगंज डहर में 80 किलोमीटर जाये ले बलरामपुर भेंटाथे । बलरामपुर ले पुरब पाखी महराजगंज डहरे पांच किलोमीटर दुरिहां चनान नदी हवे, इहां ले नदी कर, धरीये धरी कच्चा डहर हें करीब आठ किलोमीटर दक्खिने जाये ले जंगल मझारे हर-हर, छर–छर गिरत झरना दिसथे। झरना ला सुरगुजिहा बोली हें – ‘पवई ‘ हों कहयथें। तेकरे ले चनान नदी हैं बनल झरना ला “चनान पवई” कर नांव ले जमझन जानयथें । मानुस जात कर रहवाई ले परहें, बन मझारे कर झरना “चनान पवई” हें गरमी घरी झुंड कर झुंड मइनसे मन आयेके इहें रांधर्थें-खाथें अउ बुल-बाल के संझा होअत – होअत आपन-आपन घरे लहुट जाथें। ए जगहा कर सुधराई ला जेहर एक धार देख लेहिस ओहर एकर गुन गीतकारत कभों नई थके – बिदाये ।
चेन्द्रा-रनघाघ
अमिरकापुर ले रायगढ़ जायकर डहरे दस किलोमीटर दुरिहां चेन्द्रा ले तीन-चार किलोमीटर उतर पाखी सरई बन कर मझारे, पहार उपरी रनघाघ हवे। येहर जबर सुग्घर हवे। झरना कर लिघे बन बिभाग कर पउधा लगाये कर नरसरीं अठ नान अकन निरीछन कूटिर हों हवे। एठन कर बन कर सुघराई अठ झरना कर पानी कर मेल देखे जोग हवे। दस किलोमीटर लामा अउर आठ सै फूट ऊँच पहार ऊपरे “रनघाघ” होय ले सुग्घर बनभोज कर जगहा बन गईस हवे। इहां सबे दिन मइनसेमन बुलेबर आवत रहथें। झरना ले पूरब कती पहार हवे जेमे कईअन ठन माड़ा (गुफा) बनीस हवे, ऐमन हें जनावर मन आपन रहे कर जगहा बनाये लेहिन हवें। रनघाघ, तीन कती ले पहार ले घोरावल हवे, तबे त इहां चार बजत ले संझा लागे लागथे। लोग लहुटे लागथें।
सेदम दालधोवा झरना
अमिरकापुर ले रायगढ़ जाय कर डहरे चालीस किलोमीटर दुरिहां सेदम नांव कर गांव हवे। पक्का संडक ले दुई किलोमीटर दक्खिन-पछिम कती पहार उपरी ले गिरत झरना भेंटाथे। जिहां झरना गिरथे उहां एकठन जबर गहिर गड़हा बन गईस हवे। तइहा जुग हें ए गड़हा हर केतरा गहिर रहिस कोनों नई बताये पारत रहिन। आज-काल माटी-बालू ले गड़हा हर पटाये गईस हवे, तबो ले दस – इगारह हाथ गहिर हवे । ए जग एगोट सिव मनदिर हों हवे। बच्छर भर सिव भगंत अउ बुलवइयामन कर आवा-जाही लागले रहथे।
ए झरना ला दालधोवा झरना कर नांव ले जानथें। इहां कर रहवईया मन बताथें कि राजा जुगे झरना हैं उरदी दाल धोये ले अमिरकापुर कर तलवा हें छोकला हर हिंकले। आज काल गड़हा हर पटाये गइस हवे, तबो ले इहां ले छव किलोमीटर दुरिहां मंगारी गावं कर तुर्रा ढोढ़ी हें छोकला हिंकलेल। एकर ले अइसन जान परथे कि झरना कर पानी गड़हा भितरी जाय के तुर्रा ढोंढ़ी हें उपकिस हवे।
टाईगर प्वाईंट, मैनपाट
अमिरकापुर-रायगढ़ डहर होयके काराबेल होअत, मैनपाट कर दूरी पचासी किलोमीटर हवे जबकि अमिरकापुर ले दरिमा होयके जाये ले पचास किलोमीटर । मैनपाट कर ऊंचाई समुन्दर तल ले चार हजार फूट हवे। नदी-झरना, बन अउर पहारदार जगहा कर नांव हवे मैनपाट । इहां कर सरभंजा नांव कर झरना हर एक सै पचास फूट ऊपरे ले मोती नियर पानी ला गिराथे, जेहर सूरूज किरन संग सनाय के बरनग दिसथे। इहां कर मतरिंगा पहार ले रेड़ नदी हिंकलीस हवे। नरमंदापुर ठन एहर चालीस फुट ऊपरे ले झरना बन के गिरथे जेकर नांव “टाईगर प्वाईट” फरियाये गइस हवे। तईहा जुगे एजग गरमी कर दिने बघवा मन रहत रहिन, पानी पिये आवत रहिन। एकरे संगे इहां कर “फिश प्वाईट” अउ “मेहता प्वाईट” जग ठढोएके उगत अउ बूड़त सुरूज ला ताके ले जीव हर जुड़ाय जाथे। बरखा घरी टाईगर प्वाईट हैं आये ले देखत बनथे । अइसन लागथे जईसे हमन असमान ऊपरी उड़त ही अउ बदरी मन गोड़ तरी पउंरत हवें। मैनपाट हें तिब्बती मन ला बसावल गइस हवे। गरमी घरी हों इहां जाड़ लागथे। एला समुझ के सरकार छत्तीसगढ़ कर गरमी घरी कर रजधानी मैनपाट ला बनाये कर बिचार करत हवे। येके पर्यटन वाला जघा बनाये कर हों उदीम करत हवें।
भेड़िया पत्थर जल-प्रपात ईदरी
कुसमी-चांदो डहर हें तीस किलोमीटर जाए ले ईदरी नांव कर एकठन गाँव भेटाथे। ईदरी ले तीन किलोमीटर पछिम जाये ले घन बन मझारे भेड़िया पखना नांव कर झरना दिसथे । ऐठन भेड़िया नरवा कर पानी दुईठन पहार मझार ले पहरत ईदरी ठन जबर ऊंच जगहा ले गिरत घरी बड़ सुग्घर दिसेल। ऊपरे दुइयो पहार हर जुरे हवे जेकर ले पुलिया नियर _ बन गइस हवे। एठन एगोट खोह (गुफा) हवे जिहां पहिल जुगे भेड़िया रहत रहिन । इहां एकठन पानी जमा होय कर जगहा हवे जिहां ले तरी-तरी पानी पहरत रहथे।
झरना ले दक्खिन कती तीन किलोमीटर दुरिहां मगाजी पहार हवे, जिहां बनबासी मन कर बघचंडी देवता कर धाम हवे। एजग पखना कर मझारे सुग्धर खोह बनिस हवे जेमे पाँच कोरी (एक सौ) ले हों बगरा मइनसे एके संघे बइठ सकथें । बनबासी मन बच्छर भर हें एक धार इहां आबेच्च करथें ।
कन्हर पवई (कोठली प्रपात)
जसपुर जिला कर खुड़िया घन बन कर पखना तरी ले कन्हर नदी हिंकलीस हवे, ओ जगहा कर नांव हवे खुड़ियारानी। उहां ले पछिम कती बहत कन्हर जसपुर-सुरगुजा कर सीमा बनात चलीस हवे । अमारी गांव ठन ले घुंच के पड़रापाट कर पानी ला बटोरत उतर पाखी रोसे ले बहिस हवे। पहार – पखनामन ला टोरत-फोरत डीपाडीह कर पछिम धरी बहत बेनगंगा कर पानी ला हों ले के अठारह किलोमीटर दुरिहां जाए के कोठली गांव ले पाँच किलोमीटर आघू तक जाथे । फिन घोड़ा पहार ला दुई छिना करत पवई ला जम पानी दे देथे। जेकर नांव कन्हर पवई (कोठली प्रपात), फरिआए गइस हवे।
डुइठन पहार कर मझार ले रोंट-रोंट पखना मन ला टोरत-फोरत तीस पोरसा (दुई सौ फूट) उपरे ले झरना गिरत हवे। पानी कर उज्जर-बागर छिटकी ले जम जगहा हर दुध नहावल कसन॑ लागथे। जेला देखते जीव हर जुड़ाय जाथे। ”
झरना हर जिहां गिरथे उहां दुई एकड़ जगहा हें पानी माढ़े रहथे। ओठन कतेक गहिर हवे कोनों नई जानें । बनबासी मन ये जगहा कर नांव ‘अंगनई’ फरियाय ढारिन हवें।
महारायेज रामानुजसरन सिंह कर राज घरी अंगरेजमन सिकार-खेले जब-तब इहां आवत रहिन। ते घरी ओमन झरना कर लिघे डेरा डालें। महारायेज हों चाहत रहिन कि ए जगहा ला अउ सुग्घर अरामदार बनावल जाये।
देस अजाद होईस त कोठली झंरना कर बिकासकती लोग अउ सरकार कर घियान गईस। इहां कर नाप-जोख कर दुई ठन जोजना बनिस, पहिल बिजली बनायेकर, दूसर छिंचाई करे कर । नाप-जोख ले पता चलीस हवे कि रेंड़ नदी ले ढेर, कन्हर नदी कर पानी ले बिजली बनाल जा सकेल । खुटपाली जोजना ला पुरा कर लेहे ले चाहे ईहां तक आये-जाये कर बारहमासी डहर बन जाये ले अउ रहे-खाये कर जुगाड़ होय जाय त येहर सुग्घर बुले लाईक जगहा बन जांही।
बूढ़ाघाघ
सामरी पाट कर पछिम कती चिरई गाँव ठन सातगोट सोता कर पानी जुर के एगोट होय के आगू बहथें। इहां ले पच्चीस किलोमीटर आगू जाय के जबर ऊँच जगहा ले झरना गिरथे। इहां कर रहवईयामन एकर “बुढ़ाघाघ” नांव फरियान ढारिन हवें। ए झरना कर खाल्हे पानी माढ़े कर जगहा हों बड़ सुग्घधर बनिस हवे।
सूरजधारा कुदरगढ़
अमिरकापुर ले पन््चानबे किलोमीटर दुरिहां हवें कुदरगढ़ । सूरजपुर, भईयाथान होअत, ओड़गी बिकासखंड कर कुदरगढ़ी धाम तक जायेबर उुग्घर पक्का संड़क बनिस हवे। पहार उपरे कुदरगढ़ी धाम पहुंचे कर डहरे आधा किलोमीटर नियर उपरे सूरजधारा नांव कर झरना हवे इहां साठ फुट उपरे ले पानी झरत रहथे । एठन भईया बहादुर इनदर प्रताप सिंह गरमी घरी बिसोये बर पखना ला कूटवाय के सुग्घर जगहा बनुवाईन हवें। देबी धाम जवईयामन इहें ले पानी ले के जाथें। अइसन कहथें कि रोज दिन देबी दाई इहां तक ले आथें। ।
कुदरगढ़ पहार कर खोह मनहें ढेरे जुनहा पखनामन हें फोटो (शैल चित्र) भेंटाइस हवे। जेमे धारीदार जनावर, हरिन हाथी, गाय बैल कर संगे मईनसेमन ला सिकार खेलत अउ हाथ धर के ठढ़ोअल हों देखावल गईस हवें।
ए नियर हमन देखेन-जानेन कि हमर सुरगुजा हें रकसगंडा , चनान पवई, चेन्द्रा रनघाघ, सेदम दालधोवा झरना, टाईगर प्वांईट, मैनपाट, भेड़िया पत्थर जल प्रपात-ईदरी, कन्हर पवई (कोठली प्रपात), बूढ़ा घाघ, सूरजधारा कुदरगढ़ नांव कर देखे जोग झरना हवें। एमन कर संगे सारासोर, तातापानी, बेनगंगा, बांक जल, कुंड, छोटे तुर्रा-रामगढ़ मेहता पाईंट, फिश पाईंट मैनपाट में हों अब्बड़ सुग्धर देखे-बुले जोग जगहा हवें।
– डॉ. सुधीर पाठक
लक्ष्मीपुर, बिलासपुर चौक
देहाती होटल के पीछे, अम्बिकापुर
जिला-सरगुजा (छ.ग.) 497001
फोन 07774-223571, मो. 9425582236