फिलमी गोठ
आधा-आधा कपड़ा पहिरे टुरी मन के दृश्य के बहिष्कार होना चाही। अभी एखर बर कुछु नई करेन त ये मान लन कि ये बाढ़ हा हम सब ला बोहा के ले जाही। हमर मन बर बताए अउ देखाए बर कुछ नई रहहि, ऊटपटांग लिखना फिलिम के कहानी म मौलिकता के अभाव दिखना, दृस्य म अस्लीलता के प्रभाव बढ़ना ये सब छत्तीसगढ़ बर बने नोहय।
हमर छत्तीसगढ़ी फिलिम उद्योग म अइसन खतरनाक-खतरनाक प्रयोगवादी मन आ गे हें कि अब तो अइसे लागत हे जइसे आम दरसक अउ खास दरसक संगे-संगे लइका ले लेके जवान अउ सियान तक के मति के भ्रष्ट होना तय हे। एखर मन के दुस्साहस हा धीरे-धीरे बाड़हत हे, अउ सबले अचरज के बात ये हावय के जम्मो छत्तीसगढ़ हा चुपेचाप येला साहत हे। मोर ख्याल से जब कोनो फिल्मी टुरी हा अपन आधा-आधा कपड़ा पहिरथे त दरसक ल घलो बने लागत होही।
इही कारण पत्रकार ले साहित्यकार, साहित्यकार ले लेके गांव के आम मनखे तक, इहां तक हमर भाषण झड़इया नेता तक मन चुप हें। एखर सामूहिक बहिष्कार होना जरूरी हे। अभी एखर बर कुछु नई करेन त ये मान लन कि ये बाढ़ हा हम सब ला बोहा के ले जाही हमर मन बर बताए अउ देखाए बर कुछ नई रहहि, ऊटपटांग लिखना फिलिम के कहानी म मौलिकता के अभाव दिखना, दृस्य म अस्लीलता के प्रभाव बढ़ना ये सब छत्तीसगढ़ बर बने नोहय। जउन मन ला हम योग्य फिलिमकार कहिथन, योग्य कलाकार कहिथन तेखरे कोती ले अइसन विध्वंसक पहल करना निंदनीय हे। कलाकार मन ला ये फिलिम उद्योग म समझौता करे ला परत हे, समझौता नइ करत हे त काम छूटत हे काबर कि अउ लइका म खडे फ़ोकटइया कलाकार हे जउन मन कैमरा म दिखे के लालच म अउ परसिध्दि के झूठा चकाचउंध म कलाकार मन के पेट मारे बर तियार खड़े हें। कलाकार मन ला घलो अपन कीमत बनाए ला लागही अपन शर्त राखे ल लागही उही रकम ले सबो विद्या के कलाकार मन ल अपन मापदण्ड तय करे ल लागही। तब एखर मन के मनमानी ले जम्मो छत्तीसगढ़ी फिलिम उद्योग हा बांच सकही। अनुज शर्मा, मनमोहन ठाकुर मन कहिथें कि हमन अपन पारिश्रमिक से अउ अपन रोल से कभु भी समझौता नइ करन। बस, अइसनहे सबो कलाकार हो जावंय तब मजा आही। खैर, वर्तमान म हमर इच्छा हे कि छत्तीसगढ़ी फिलिम घलो सामान्य टाकीज ले मल्टीप्लेक्स तक के सफर तय करय। फेर अश्लील दृश्य ले दुरिहा राहय अउ ए मन तभे चेतही जब हम छत्तीसगढ़िया मन अश्लीलता के सामूहिक रूप ले विरोध करबोन।
चम्पेश्वर गोस्वामी
आरंभ में पढ़ें : –
रौशनी में आदिम जिन्दगी : भाग 1
रौशनी में आदिम जिन्दगी : भाग 2
रौशनी में आदिम जिन्दगी : भाग 3
रौशनी में आदिम जिन्दगी : भाग 4
जम्मो हां चकाचौंध में चौंधिया गे हवे।
पहिरे ओढे बर घला कानून बनाए ला परही।
sahi baat hare.
sehmat havav
जचे के लइक गोठ लिखे ह्व
हमर छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी फिलिम म एकेच ठन अंतर दिखते… भाखा के. बाकी त एक्के हे. वईसनेच ओढ़ना लत्ता, नाच गवई, चूमा चाटी कुछुच म अंतर नी दिखे. सिरतोन गोठ हवे पोस्ट म. हमन ल बिचारना चाही अउ बिचार करे बार लागही अपन संस्कृती ल अश्लीलता ले बचाए बर.
बहुत सुन्दर और शानदार प्रस्तुती!
शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!