भेजेन करके, गजब भरोसा ।
पतरी परही, तीन परोसा ।
खरतरिहा जब कुरसी पाइन,
जनता ल ठेंगवा चंटवाइन ।
हाना नोहे, सिरतोन आय,
पइधे गाय, कछारे जाय ॥
ऊप्पर ले, बड़ दिखथे सिधवा,
अंतस ले घघोले बघवा ।
निचट निझमहा, बेरा पाके,
मुंहूं पोंछथें, चुकता खा के ।
तइहा ले टकरहा आय,
पइधे गाय कछारे जाय ॥
गर म टेम्पा, घंटी बांधव,
चेतलग रहि के बखरी राखव ।
रूंधना टोरिस हरहा गरूवा,
घर के घला, बना दिस हरूवा ।
हरही संग, कपिला बउराय ।
हाना नोहे, सिरतोन आय,
पइधे गाय, कछारे जाय ॥
Related posts
One Thought to “कबिता: पइधे गाय कछारे जाय”
Comments are closed.
बहुत सुघ्घर रचना हे |