सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! करम के डोरी हर बड़ मजबूत होथे रे। फेर हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। तइहा जमाना म जब ग्वाला हर गाय चराय बर जावय तब का करय? गाय ला एक ठन रूख़ म बांध देवय अउ अपन हर कोनो मेर छॉव में बइठके बॉसुरी बजावत बइठे राहय अउ उॅहा ले गाय के उपर घलाव नजर राखे राहय। गाय हर रूख के चारो कोती के दूबी ला सुघ्घर किंजर-किंजर के चरत राहय। जब ग्वाला हर देखय के गाय हर तो रूख के चारो डाहर के दूबी ला चर डारे हावय तब ओखर बंघना ला थोरकन ढील का दय जेखर से गाय हर अउ दुरिहा के दूबी ला चरे सकय।
संगवारी हो हमर कका बाप हर कहय-बेटी! भगवान हर उत्तम ग्वाला आय। वो हर हमन ला ए दुनिया में अच्छा करम करे बर भेजे हावय। वो हर हमन ला दुरिहा ले देखत रहिथे। जब भगवान हर देखथे के हमन अपन चारो डाहर के बुता ला अपन ताकत अउ साहस भर कर डारे हवन तब वो हर हमर करम के डोरी ला थोरकन अउ ढील कर देथे जेखर से हमला पहिली ले अउ जादा अच्छा काम करे के अवसर मिल जाथे अउ हमन फेर अपन बुता-काम म नवा उमंग अउ उत्साह के संग लग जाथन। जउन मनखे हर जतका मन लगा के काम करथे ओखर करम के डोरी हर ओतके बाढ़त जाथे। जउन बेरा ग्वाला ल लगथे के अब सॉझ होवत हे जाय के बेरा होगे, अब चलना चाही ओ बेरा ग्वाला हर गाय के बंधना ला खोल के ओखर ठिहॉ तक पहुचा देथे वइसने जेन दिन भगवान ला लगही के अब हमर जाय के बेरा होगे ओ दिन हमर आत्मा ला ए दुनिया के बंधन ले मुक्त करके हमला अपन परमधाम में पहुचा देही। सियान बिना धियान नई होवय। तभे तो उॅखर सीख ला गठिया के धरे मा ही भलाई हावै। सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हावै।
रश्मि रामेश्वर गुप्ता