सोंचव
छत्तीसगढ़ी भाषा – साहित्य-लेखन आज पर्याप्त मात्रा म होवत हे। बड़ा शुभ लक्षण हे। फेर छत्तीसगढ़ी समकालीन साहित्य के बात जब होथे तब हमला मुंह ताके बर पड़ जाथे। साहित्य के प्रवृत्ति अनुसार विद्वान मन वोकर नाम घरथें, जइसे -रीतिकालीन साहित्य, प्रगतिशील साहित्य आदि। अइसनेच समकालीन साहित्य ह घला प्रवृत्ति-विशेष के साहित्य होथे, येकरो अपन लक्षण अउ गुण-धर्म होथे। जइसे कोन्हों घला रचना ल प्रगतिशील रचना नइ कहे जा सके वइसनेच कोन्हों रचना ल समकालीन साहित्य घला नइ केहे जा सके। जउन रचना ह सामकालीन साहित्य के विषेशता से युक्त होही विही रचना ह समकालीन साहित्य माने जाही। समकालीन साहित्य म विद्रोह के स्वर प्रमुख होथे।
छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के बात करन तो गद्य के अन्य विधा के तुलना म कहानी लेखन संतोस जनक हे। पं. सुंदर लाल शर्मा ले ले के आज तक निरंतर साहित्य सृजन होवत आवत हे फेर कतका रचना ह समकालीन साहित्य के कसौटी म खरा उतरत हे? सोचे के जरूरत हे।
कहानी हमर जीवन शैली के अभिन्न अंग आय। लोक जीवन म कहो कि शिष्ट समाज म, कहानी हर जगा मौजूद हे। कहानी न सिर्फ मनोरंजन के साधन आय बल्कि लोक शिक्षण के सबले सशक्त माध्यम आय। कहानी अपन मौखिक रूप म जउन नीति, ज्ञान-विज्ञान, इतिहास, राजनीति अउ समाज सुधार के शिक्षा के दायित्व-भार निभावत आवत हे वो ह वोकर लिखित रूप म अउ जादा स्पष्ट धारदार अउ असरकारक होना चाही, जन-चेतना, जन-जागरण अउ जन-आंदोलन के दायित्व-बोध से युक्त होना चाही। विद्वान मन कहिथें, साहित्य ह प्रत्यक्ष रूप से क्रान्ति नइ करे, क्रान्ति आम जनता के द्वारा होथे फेर क्रांति के वातावरण, के निर्माण, क्रांति के जमीन के निर्माण साहित्य ह करथे। मानस ल प्रेरित अउ उद्वेलित घला तो करथे ? साहित्य ल चकमक पथरा तो कहिच सकथन।
छत्तीसगढ़िया मन ल ‘अमीर धरती के गरीब लोग’ केहे जाथे, बिलकुल सच कहिथें। जंगल के बीच बसइया मन घर बइठे बर टुटहा पिड़हा घला नइ हे, शहर म रहवइया मन के घर ह सैगोना ले पटाय हे। जेकर कई पीढ़ी के नेरवा इही धरती म गड़े हे वोकर घर के छानी ह ओदरे पड़े हे, काली आ के बसइया मन बिल्डिंग खड़ा कर लिन, करोड़ों के मालिक बन गिन।
बड़े-बड़े सरकारी पद ले लेके हमाली के पद म घला दूसर कोती के आदमी आ-आ के भरत जावत हें। कुछू कहिबे त कहिथें, योग्यता म कंपीटीशन करव। मंय पूछथंव, आजादी के बाद इहां बर सांसद के प्रत्यासी घला बंबई के आदमी ल बनाय, इहां सांसद बने के लाइक एको झन आदमी नइ रिहिन होही ? इहां के खदान मन ल विदेस म बेचे बर कते छत्तींसगढिया ले सलाह लिन हें। छत्तीसगढ़ म के ठन आई. आई. टी. अउ आई. आई. एम. खोलिन ? के ठन मेडिकल अउ इंजिनियरिंग के कालेज खेलिन ? इहां के जंगलिहा आदिवासी अउ गांव-गंवइ के लइका मन ल योग्य बनाय खातिर का उदिम करिन हें ? आज तक रेल्वे, खान अउ गृह मंत्रालय म कोई छत्तीसगढिया सांसद ल मंत्री बनाइन? कहिथें, कंपीटीशन करो। वाह भाई ! ये तो विही कहानी हो गे, एक झन राजा ह अपन परजा मन के चतुराई के परछो लेय खातिर राज म मुनादी करवाइस। किहिस कि एक ठन बोकरा हे, वोला छै महीना कोई रखंय। बोकरा ह न तो मरना चाही, न मोटाना चाही। एक झन चतुर सियान रिहिस। वो ह बोकर ल बघवा के पिंजरा के बगल म बांध दिस। छै महीना बाद राज ह देखिस। बोकरा ह न मरे रहय न मोटाय रहय।
संगवारी हो, हमन अपन आप ल ‘छत्तीसगढिया सब ले बढ़िया’ कहिथन। ये तो हमर आत्ममुग्धता आवय। अइसन कहिके हम अपन आप म मोहाय रहिथन। बाहर ले आवइया मन इहां के गंउटिया मन ल दाऊ जी , दाऊ जी कहिके चुहक डारथें, नंगरा बना देथें। ‘छत्तीसगढिया सब ले बढ़िया ‘ के नारा ह घला अइसनेच उदिम आवय। कबीर दास ह केहे हे ‘ कबिरा आप ठगाइये, और न ठगिये कोय’ अइसन बात हे तब तो ठीक हे, नहीं ते मंय ह कहूं कि- ‘छत्तीसगढिया सब ले परबुधिया।’ बाहर ले आवइया मन बर तो न सिरिफ हमन, बल्कि हमर रहन-सहन, हमर खान-पान, हमर तीज-तिहार, हमर बोली-भाखा, सब हेय हे। हमर दाई-बहिनी मन उंखर मन बर कोठा वाली से जादा नइ हे। आज विही मन असली छत्तीसगढिया बन गे हावंय, हमन तिरिया गे हाबन। हमू मन विहिच मन ल अपन अगुवा बनाथन। गांव के जोगी जोगड़ा, आन गांव के सिद्ध। हमन परबुधिया नो हन त अउ का आवन ? सोंचव।
डॉ. नरेश कुमार वर्मा अउ डॉ. जीवन यदु के आभार मंय कोन ढंग ले प्रगट करंव, समझ नइ आवत हे। शब्द के अपन सीमा होथे। आप दुनों के जउन नैतिक साहस अउ मार्गदर्शन मोला मिलत रहिथे वोकर मंय सदा आकांक्षी रहूं , ऋणी रहूं। संपादक सुरेश ‘सर्वेद’ के घला मंय अंतस ले आभारी हंव।
दिनांक: 26 सितंबर 2010
कुबेर