गांव म एक झन बिमरहा मनखे रहय। रोज के पेट पीरा म बिचारा कुछ काम-बुता करे नई सकय। भात खावय तहां ले बाहिर कोती जावय।
थोरकिन हफरहा बानी तको रहीस। एक दीन के बात आय। परस हर भात खाके लोटा म पानी धरके चुपे-चाप बाहिर जाय बर निकलत रहीस ततके बेरा कईलान महराज घूमत-घामत आत रहिस। परस ल देख डारिस अउ कहे लागिस… कस जी परस, तैं चुपेचाप अभी कइसे निकलत हावस। तोला खेत खार के संसो नइए का? परस हर कईलान महराज के गोठ ल सुनके कइथे, मोर दु:ख ल तोला कइसे बताववं महाराज! मोर पेट हर रोज-रोज पीरा करथे। भात खाथंव तहां ले मोला बाहिर कोती लागथे। ये दे अभी भात खाय हाववं तहां ले लोटा धर के बाहिर कोती जाय बर निकलत हाववं। येकरे सेती मैं कोनो कोती बुता काम नई जाय सकत हाववं। कईलान महराज परस ल कइथे परस, तैं मोर बात ल मानबे त तोर पेट पीरा अउ बाहिर कोती जवई बंद हो जाही। परस कइलान महराज ल पूछथे- महराज बता न मोला काय करे बर परही। कईलान महराज परस ल कइथे… तैं बासी भात, बासी भाजी घला चाय, पानी, शराब, माखुर, गांजा, खाय-पिए बर छोड़। तोर बीमारी हर आठ दीन म ठीक हो जाही अउ सुन अभी सावन महीना चलत हावय। जेन म हर समवार के शंकर भगवान के उपास रइथें। त तहुं हर उपास -धास रइबे। येमा तोर शरीर शुध्द हो जाही थोरकिन भक्ति हो जाही अउ इही बुध म तोर खवई-पियई बंद हो जाही जेन म तोर पेट पीरा आराम लग जाही। परस कइलान ल पूछथे- कस महराज, मोला तो अब्बड़ भूख लागथे मैं तो उपास नई रह सकवं। कईलान महराज परस ल समझाथे- देख परस, काल समवार आय आज इतवार आय त तैं बिना खाय- पिए बोल बम, बोल बम कहत एकोठन शंकर मंदिर जल धर के जा बहुत मनखे जाथें तिकर संग संघर जा। तोला भूख-प्यास नई लागय। जा अभी घर जा तैं एको दू ठन लोटा सकेल जल धरे बर। मैं तोर बर कांवर बनात हाववं। मैं जात हवं महराज, तैं मोर मोर बर कांवर बना मैं लोटा सकेलत हाववं। दू-तीन समवार के अइसने जाथे त परस के आधा बीमारी कट जाथे। परस हर एक दीन कईलान महराज के घर आथे अउ ओकर गोड़ तरी गिर जाथे। महाराज तैं मोर बर देवता बराबर आस। तैं कहूं मोला बताय नई रइतेस त मैं खटिया म पचत रइतेंव। कइलान महराज कइथे- परस देख, उपास म कतका शक्ति हावय जेतका पइसा कौड़ी तोर सूजी-पानी म लगे होही ओकर ले आधा येमा नई लगे हावय। मैं कहत हंव परस जेन मनखे अपन काया ल निरोगी रखय तेन हर खान-पान अउ उपास-धास रहय। ओला कभू बीमारी नई होवय।
श्यामू विश्वकर्मा
ग्राम नयापारा डमरू
बलौदाबाजार