कहिनी : लंगड़ा भिखारी के इच्छा

शहर म एक झन लंगड़ा भिखारी रहय। जम्मो मनखे मन ओला लंगड़ा भिखारी कहिके पुकारय। भिखारी ह हमेशा खुसी-खुसी के जीवन बितावय, कभू घुस्सा नई करय।
भिखारी शहर के दुरिहा म एक ठन झोपड़ी म राहय। झोपड़ी ह कुड़ा-करकट के ढेर के बीच म एक ठन पेड़ के तरी रहिस हे।
लंगड़ा भिखारी के झोपड़ी म खाना पकाय के टूटे-फूटे बरतन अउ एक दू ठन चिरहा कपड़ा रहय। भिखारी ह हर दिन बिहनिया नहा-धो के आठ बजे ले अपन भोजन खातिर सहर के जम्मो दरवाजा म भीख मांगे बर जाय अउ मंझनिया एक बजे अपन झोपड़ी म लहुट जाय। वो भिखारी ह भले लंगड़ा राहय। फेर स्वभाव के अच्छा राहय। कभू-कभू लइकामन ओला चिढ़ा देवय, तभो ले लइका मन ल कुछु नई काहय। घर-घर भीख मांगे ल जाय त सीख व धरम-करम के बात बतावय।
सहर के मन एक दिन लंगड़ा भिखारी ल भीख मांगत नई देखिन लोगन मन ल शंका होय बर लागिस कि ये लंगड़ा भिखारी ह कहां चल दिस। नान-नान लइका मन खबर दिस की भिखारी हर अपन झोपड़ी के तीर म सुते असन परे हे। शहर के सियान अउ जवान मनखे मन झोपड़ी के तीर म गिस त लंगड़ा भिखारी ह मरे परे मिलिस। जउन कुरता ल लंगड़ा भिखारी ह पहिरे रिहिस तेकर खीसा म एक ठन चिट्ठी मिलिस। सियान अउ जवान मनखे मन चिट्ठी ल पढ़के अकचकागे। चिट्ठी म लिखाय रिहिस मोर जीवन के इच्छा रिहिस के ये सहर के नान-नान लइका, जवान अउ सियान मन बर एक बड़का जन पुस्तकालय बनवावंव। जेखर सेती मे ह हर दिन मांग-मांग के कुछु रुपया-पइसा सकेले हंव। जउन ह झोपड़ी के कूड़ा-करकट के नीचे हाबे। सियान अउ जवान मनखे मन कूड़ा-करकट के तरी ल खोजिस तब एक ठन टुटहा संदूक मिलिस। जेमा पचास हजार रुपया रिहिस। लंगड़ा भिखारी के विचार अउ सीख ल जान के जम्मो सकलाय मनखे मन के आंखी डाहर ले आंसू निकलगे। जम्मो मनखे मन मिल के लंगड़ा भिखारी के अंतिम संस्कार करिन अउ रुपया-पइसा मिला के लंगड़ा भिखारी के इच्छा पूरा करे के खातिर शहर के बीच म एक बड़का पुस्तकालय के इस्थापना करिस। जेमा रिकिम-रिकिम के मनखे मन पढ़े बर सकलायं अउ लंगड़ा भिखारी के गुन गावयं।
रविशंकर चन्द्राकर दीवान
सिसदेवरी,वटगन-पलारी

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