किताब कोठी : विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी़

विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी़

डॉ. विनोद कुमार वर्मा

(छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर से अनुदान प्राप्त )

प्रकाशक : वदान्या पब्लिकेशन
नेहरु नगर बिलासपुर
मो. 77710-30030

मुद्रक : अंकुर प्रिंटर्स, बृहस्पति बाजार बिलासपुर
मो . 98271-70543

भूमिका

संस्कृत, हिन्दी और उसकी प्राय: समग्र प्रमुख लोकभाषाओं यथा-ब्रज, अवधी, भोजपुरी, छत्तीसगढ़ी़ के साथ भारतीय भाषाओं की लिपि देवनागरी है। ध्वनि आधारित होने के कारण उच्चारण भी प्राय: समान ही हैं । प्रश्न उठता है यदि लिपि की समानता है तो वर्णमाला में भेद क्यों ? बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में और आजादी के बाद तीन दशकों तक छत्तीसगढ़ी़ के विद्वानों द्वारा व्याकरण के इस पक्ष को जिस तरह नजर अंदाज किया गया, उससे छत्तीसगढ़ी़ भाषा के प्रवाह की गति थम सी गयी, बल्कि यह कहना ज्यादा सही होगा कि छत्तीसगढ़ी़ भाषा दिशाहीन-सी हो गई थी। विद्वानों ने स्वयं तो छत्तीसगढ़ी़ में समृद्ध साहित्य का सम्यक सृजन किया, मगर छत्तीसगढ़ी़ भाषा का नेतृत्व नहीं किया।
यदि नेतृत्व करते तो छत्तीसगढ़ी़ दिशाहीनता से बच सकती थी। उन्होंने एक सुरक्षात्मक कवच पहन लिया था और उसी व्याकरण के पीछे भागते रहे जो एक सदी पहले लिखी गयी थी। इससे अलग स्वातंत्र्य आंदोलन के उत्तरार्ध में हिन्दी ने अपनी प्रतिष्ठा पायी व अनेक मूर्धन्य साहित्यकारों से उसे दिशा मिली। छत्तीसगढ़ी़ के साथ ऐसा नहीं हुआ । छत्तीसगढ़ी़ के मूर्धन्य विद्वान केवल ‘स्वांत: सुखाय’ साहित्य की रचना करते रहे।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जिस तरह लोग छत्तीसगढ़ी़ फिल्में बनाने के लिए उतावले हो गए और ऐसे-ऐसे अशिक्षित व असंस्कारी लोग फिल्म बनाने के लिए कूद पडे जिन्हें न तो कम्पयूटर का ज्ञान था, न ही उन्हें छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक परम्पराओं से कुछ लेना-देना था। नतीजा यह हुआ कि फिल्में या तो बनी ही नहीं या बन भी गयी तो डिब्बे में बंद हो गयी। ठीक इसी प्रकार छत्तीसगढ़ी़ लिखने वाले नए लेखक व कवि भी दिशाहीनता के शिकार होकर हिन्दी गद्य और पद्य का छत्तीसगढ़ी़ में मनमाने ढंग से रुपान्तरण करने लगे।
छिनीमा (सिनेमा), परकिरिति (प्रकृति), संसकिरिति (संस्कृति) सरधा (श्रद्धा), परसिद्ध (प्रसिद्ध ), डराइबर (ड्रायवर), कम्पोटर (कम्प्यूटर), मुबाईल (मोबाईल) जैसे हजारों अपभ्रंश छत्तीसगढ़ी़ शब्द गढे गए, जो शब्द छत्तीसगढ़ी़ में बोले ही नहीं जा रहे हैं- वैसे नए-नए शब्द गढने से न तो लिखने वालों का भला होगा, न ही छत्तीसगढ़ी़ भाषा का। ‘मानक’ बनाने के फेर में छत्तीसगढ़ी़ भाषा को विकृत करने के प्रयास से बचना आज की सबसे बडी आवश्यकता है, आज तो लोग व्यक्तिवाचक संज्ञा को भी धिकृत-विकृत कर रहे हैं।
डॉ. विनोदकुमार वर्मा ने ‘विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी़’ के बहाने भाषा- लिपि और काव्य-विमर्श का श्रम और मनोयोगपूर्वक लेखन तो किया ही है, साथ ही, छत्तीसगढ़ी़ भाषा के संरक्षण और संवर्धन में समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, छत्तीसगढ़ी़ फिल्मों, आकाशवाणी के भूमिका की विस्तार से चर्चा भी की है।
इस ग्रंथ में व्हाट्स-एप के माध्यम से विलुप्त हो रहे छत्तीसगढ़ी़ छन्द विधान सीखाने वाले स्व. कोदूराम ‘दलित’ के पुत्र अरुण कुमार निगम व छन्द-विधान सीखने वाले छत्तीसगढ़ी़ कवियों पर विस्तृत चर्चा कर छत्तीसगढ़ी़ काव्य साहित्य में छन्दों की प्रासंगिकता को भी रेखांकित किया गया है।
काव्य-साहित्य में ‘विमर्श’ की प्रासंगिकता सर्वविदित है। डॉ. विनोद कुमार वर्मा ने इस ग्रंथ में काव्यसाहित्य में विमर्श को परिभाषित करते हुए उसे तीन भागों : भाव-विमर्श, तुलनात्मक-विमर्श व विषय-विमर्श में विभक्त कर न केवल उसकी मीमांसा की है बल्कि छत्तीसगढ़ी़ काव्य-साहित्य में विमर्श के साथ प्रकाशित कृतियों व उसकी रचनाओं को समेटते हुए एक अनुसंधानपरक कार्य भी किया है।
यह ग्रंथ न केवल शोध अध्येताओं के लिए उपयोगी है, बल्कि छत्तीसगढ़ी़ भाषा को एक दिशा दिखाकर डॉ. विनोद कुमार वर्मा लेखक के रुप में छत्तीसगढ़ी़ भाषा के श्रेष्ठ विमर्शक सिद्ध हुए हैं। प्रस्तुत ग्रंथ छत्तीसगढ़ी़ भाषा-विमर्श को नया आयाम देगा, इनमें दो मत नहीं।

डॉ. विनय कुमार पाठक
एम.ए., पी-एच.डी., डी. लिट् (हिन्दी)
पी-एच.डी., डी. लिट् (भाषा विज्ञान)
अध्यक्ष- छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग
छत्तीसगढ़ शासन, रायपुर (छग)
मो. 092298-79898, 088272-03667



अपनी बात

छत्तीसगढ़ी़ भाषा के अविरल प्रवाह को लिपि या व्याकरण के बहाने रोकने का प्रयास करना आत्मघाती है। वर्ष 2012 के जनवरी माह में वसन्ती वर्मा कृत छत्तीसगढ़ी़ काव्य संग्रह ‘मोर अँगना के फूल’ के पूर्विका के संदर्भ में छत्तीसगढ़ी़ के प्रकाण्ड विद्वान डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा के निवास में उनके साथ उनके बेडरुम में मैं बैठा था। वे काफी दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। बातों ही बातों में उन्होंने कहा – ‘ छत्तीसगढ़ी़ कविता का भविष्य उज्ज्वल है- मगर वह सीता की तरह वनवास भोग रही है परन्तु छत्तीसगढ़ी़ गद्य साहित्य में अराजकता की स्थिति है।’ मैंने उनसे पूछा- अराजकता की स्थिति को कौन खत्म करेगा? उन्होंने कहा- ‘पता नहीं ! हमारी तो अब चला-चली का बेरा है!!’ मैं कृषि अनुसंधान से जुडा हुआ कृषि वैज्ञानिक हूँ, किसी भी समस्या के तह तक जाना मेरा जुनून है। इसके बाद छत्तीसगढ़ी़ गद्य-पद्य साहित्य और व्याकरण का जब मैंने अध्ययन-मनन किया तब पाया कि समस्या उतनी भी बडी नहीं है जितनी दिख रही है। छत्तीसगढ़ी़ के अनेक मूर्धन्य विद्वान समस्या की जड तक पहले ही पहुँच चुके हैं, आवश्यकता केवल उनके विचारों के संप्रेषण का है।
संप्रति, हमारे अग्रज साहित्यकारों द्वारा देवनागरी लिपि के कुछ वर्णों को छोडने का आग्रह औचित्यहीन-अर्थहीन हो गया है। समय और काल के प्रवाह में बने रहने के लिए यही प्रासंगिक है कि छत्तीसगढ़ी़ भाषा के लिए देवनागरी लिपि के सभी वर्णों को हम सहर्ष स्वीकार करें। वैश्विक भाषा समूह में बने रहने के लिए यह आवश्यक है, अन्यथा यूनेस्को द्वारा उल्लेखित विलुप्त हो रहे लगभग 250 बोलियों/भाषाओं के समूह से छत्तीसगढ़ी़ को निकाल पाना संभव नहीं होगा व 25-50 बरसों में ही हम विश्व भाषा समूह से ‘ सीता जैसे’ निष्कासित हो जायेंगे। माता सीता को वाल्मीकि का आश्रय मिला क्योंकि वे अवतारी थीं- छत्तीसगढ़ी़ भाषा को बचाने वाल्मीकि कहाँ से आयेंगे ?
इस ग्रंथ के लेखन में छत्तीसगढ़ी़ भाषा के चिंतनशील विचारकों : डॉ.शैल चन्दा (धमतरी), श्रीमती सुधा वर्मा (रायपुर), श्रीमती शकुन्तला शर्मा (दुर्ग), श्रीमती सरला शर्मा (दुर्ग), डॉ. विजय कुमार सिन्हा (बिलासपुर), नरेन्द्र वर्मा ( भाटापारा), अरुण कुमार निगम (दुर्ग), दीनदयाल साहू (हरिभूमि रायपुर), श्याम वर्मा (आकाशवाणी रायपुर), कृष्ण कुमार भट्ट ‘पथिक’ (मुंगेली), डॉ. मनीष कुमार दीवान (बिलासपुर), डॉ. कौस्तुभ मणी द्विवेदी (रायपुर), नन्दकिशोर तिवारी (बिलासपुर), पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे (सचिव, छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, रायपुर) का अमूल्य सहयोग/विचार व गुरुदेव डॉ. विनय कुमार पाठक का आशीर्वाद मिला। मैं सभी गुणीजनों का आभार व्यक्त करता हूँ।

सादर सविनय!
डॉ. विनोद कुमार वर्मा
एम.एस-सी. (कृषि), शस्य विज्ञान
पी-एच.डी. (वनस्पति विज्ञान)
प्राध्यापक, कृषि महाविद्यालय बिलासपुर
मो. 098263-40331 079874-83365



”छत्तीसगढ़ी़ भाषा एवं देवनागरी लिपि, छत्तीसगढ़ी़ भाषा के विकास में पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं सिनेमा की भूमिका, छत्तीसगढ़ी़ भाषा में छंद के नए हस्ताक्षर एवं छत्तीसगढ़ी़ काव्य साहित्य में विमर्श” की तथ्यपरक विवेचना विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी़

अनुक्रम
भूमिका : डॉ. विनय कुमार पाठक
अपनी बात : डॉ. विनोद कुमार वर्मा

अध्याय (1) छत्तीसगढी भाषा और देवनागरी लिपि : कुछ चिंतनशील विचारकों का अभिमत
डॉ. रमेश चन्द्र महरोत्रा, डॉ. विनय कुमार पाठक, डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा, डॉ. शैल चन्दा, डॉ. विजय कुमार सिन्हा, अरुण कुमार निगम, श्रीमती सरला शर्मा, श्रीमती शकुन्तला शर्मा, श्रीमती सुधा वर्मा, डॉ. कौस्तुभ मणी द्विवेदी, नरेन्द्र वर्मा, डॉ. विनोद कुमार वर्मा

अध्याय (2) छत्तीसगढी भाषा के विकास में समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, आकाशवाणी और सिनेमा की भूमिका छत्तीसगढी में पत्रकारिता और समीक्षा साहित्य
मड़ई (देशबन्धु), चौपाल (हरिभूमि), गुड्डी के गोठ (नवभारत), संगवारी (दैनिक भास्कर), अपन डेरा (अमृत संदेश), पहट (पत्रिका)
छत्तीसगढी लोकाक्षर (संपादक : नन्दकिशोर तिवारी), मोर भुइयाँ (आकाशवाणी रायपुर), छत्तीसगढी सिनेमा

अध्याय (3) छत्तीसगढी के तत्सम, तद्भव, देशज विदेशज व संकर शब्द

अध्याय (4) छत्तीसगढी भाषा में छन्द के नये हस्ताक्षर ‘छन्द के छ’ से
शकुन्तला शर्मा, रमेश कुमार सिंह चौहान, सूर्यकांत गुप्ता, चोवाराम वर्मा ‘बादल’, आशा देशमुख, वसन्ती वर्मा, ज्योति गभेल, दिलीप कुमार वर्मा, कन्हैया लाल साहू ‘अमित’, गजानंद पात्रे ‘ सत्यबोध’, अतनु जोगी, सुखन जोगी, जितेन्द्र वर्मा ‘ खैरझिटिया’, मनीराम साहू, अजय अमृतांशु, मोहन लाल वर्मा, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर, ज्ञानुदास मानिकपुरी, दुर्गाशंकर इजारदार, रश्मि रामेश्वर गुप्ता, हेमंत कुमार मानिकपुरी, अरुण कुमार निगम

अध्याय (5) छत्तीसगढी काव्य साहित्य में विमर्श : परिभाषा एवं विस्तृत विवेचना
(अ) भाव-विमर्श के साथ प्रकाशित पाँच प्रतिनिधि
कविताएँ – डॉ. विनय कुमार पाठक
(ब) तुलनात्मक-विमर्श के साथ प्रकाशित पाँच
प्रतिनिधि कविताएँ : वसन्ती वर्मा
(स) विषय-विमर्श के साथ प्रकाशित पाँच
प्रतिनिधि कविताएँ : वसन्ती वर्मा

परिशिष्ट
(01) देवनागरी वर्णमाला क्रम में कवियों, लेखकों, समीक्षकों आदि का नाम
(02) पुस्तकों आदि का नाम जिसका उल्लेख इस ग्रंथ में किया गया है
(03) ग्रंथ लेखक डॉ. विनोद कुमार वर्मा का परिचय




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One Thought to “किताब कोठी : विमर्श के निकष पर छत्तीसगढ़ी़”

  1. askaran Das Jogi

    बहुत सुघ्घर…. वर्मा जी ल गाड़ा गाड़ा बधाई

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