किसान उपजाए धान ले मिंजके कोठार म रास बनाके अन्नपूरना ”लक्ष्मी देवी” के रूप म नरियर अउ हूम-धूप ले पूजा करथे ओखर बाद कोठी म भंडारन करे खातिर ले जाथे। स्कंद पुरान म दान के महत्ता दरसाय गे हवय, ओखर मुताबिक कमाय धन के दसवां भाग दान करना आदमी के करतब है। ये ही सब ल आधार मानके छत्तीसगढ़ी समाज के पूरा सदस्य मन सकभर निभाय के उदीम म लगे रहिथे। येही दानशीलता के सबसे बड़े परब अउ निसानी के रूप में अन्नदान पर्व छेरछेरा तिहार छत्तीसगढ़ म देखे बर मिलथे।
सृष्टि म भगवान के बाद सबले बड़े दयालू धरती अउ ओखर बेटा धरतीपुत्र किसान होथे। येखरे सेती किसान ल भुइयां के भगवान अउ अन्नदाता किसान के रूप में जाने जाथे। ओही अन्नदाता किसान मन के सबले बड़े अन्नदाता के परब होथे छेरछेरा पुन्नी। धान के कटोरा के बासिंदा किसम मजदूर अउ सबुन्दरा, कोनो होवयं। छेरछेरा पुन्नी के दिन दिल खोल के सकभर अन्नदान (कम से कम 10 रुपिया के अनाज ले लेके पांच सौ, हजार रुपिया के अनाज) करके संतोष अऊ उरीन (कर्जमुक्त) महसूस करथे। अपन ल धन्य समझथे।
पुन्नी नहाय के बाद अपन-अपन संगी जवंरिहा संग मिलके ये अन्नदान के परब रूपी यज्ञ म सरीख होके कोनो छोटे-बडे लइका-सियान, अमीर-गरीब, दाता-याचक के भेद नइ रखंय। छेरछेरा कूटे खातिर सब झन के एके नारा रहिथे के- ”छेरछेरा-माई कोठी के धान हेरहेरा” काहत एक-दूसर के डेहरी, दुआर, अंगना, कोठार, अपन-अपन हमजोली के टोली बना-बनाके पहुंचथे। खास करके भजनहा करमाहा डंडाकार सुआ नचकार, पंथी नचकार स्कूल के पढ़ता मन टोली बना-बना के छेरछेरा कूंटथे अउ अपन छोटे-मोटे ध्येय ल पूरा करे म सुफल होथे। एक किसम ले सहकारिता के बीज बोथे।
दान दिए के सुरूवाती दौर धान बोये से पहिली बैसाख महिना के अक्षय तृतीया (अक्ती) तिथि से चालू हो जाथे। किसान मन अक्ती के दिन ले ही धान बोये के मुहुरत चालू करथे। येकरे सेती अक्ती के दिन भगवान ऊपर भरोसा करके थरहा लगाय अऊ खुर्रा बोय के सुरूवात करथें। नवा अनाज आय के बाद सबले पहिली देवता-धामी अऊ कुल देवता म धान के करपा चढ़ाथे, बाम्हन बावा बैरागी मनल सेर-सीधा के रूप म अनाज पहुंचाये। संगे-संग दसहरा देवारी तिहार म नवा खाय के निमित्त-कुटुम्ब अउ ईष्ट मिश्र मनल खीर सौहारी-फरा, चीला, चौसेला खवाथे।
धान कटाई के आखरी दिन धान लुवइया मन खातिर बढ़ोत्तरी के नाम ले खड़े फसल के कुछ हिस्सा ल छोड़ देथे जेमा धान लुवइया मन के पोगरी हिस्सा होथे। धान लुवइच बखत अनाज बाली के महिना भर ले दरजनों गुच्छा बनाके अंगना डेहरी म चिरई-चिरगुन खातिर बांध देथें। येही किसम ले बारो महिना अन्नदाता किसान भाई मन गरीब-असहाय, बाम्हन, बावा-बैरागी, साधू संत मन ल भीक्क्षा देतेच रहिथें। कोनो-मड़ई मेला, नाच-गम्मत, अऊ गांव के तरक्की बर सामोहिक आयोजन म घलो अपन हिस्सा लुटातेच रहिथे। येही तमाम दानसीलता अऊ सहयोग के सबले बड़े ”अन्नदान परब” के नाम छेरछेरा पुन्नी ले छग भर म जाने जाथे।
असम में छेरछेरा दान पर्व के संबंध ऐतिहासिक हवय। प्राचीनकाल म गांव के व्यवस्था मुखिया मन के हाथ म रिहिस। 12 गांव मिलाके बरही होवत रिहिस अउ सात बरही मिलाके एक चौरासीपति होवय रिहिस। भूमिपति अऊ मुखिया मन के जवाबदारी होवत रिहिस किसान मन ले भरना (टैक्स) वसूल के राजा के राजधानी तक पहुंचाना। येकरे सेती ये कहे जाथे कि साल म एक दिन पुस-पुन्नी के दिन गांव में जलसा मनाके, गां-बजाके भरना वसूले जात रिहिस। भरना अनाज के रूप म वसूले जात रिहिस। भरना अनाज के रूप म वसूले जात रिहिस। मराठा राज म जमींदार अऊ मालगुजार भरना वसूले के काम करत रिहिस। कुछ विद्वान मन के येहू कहना हे के आदिकाल म भगवान सदाशिव ह नट के रूहप धारन करके अन्नपूर्णा देवी पार्वती तीर भीक्षा मांगे बर गे रिहिस। येखरे सेती छेरछेरा कूटे या मांग के संग नाच गाना के जउन रिवाज जुडे हैं, येहर भगवान सदाशिव के भिक्षाटन के बड़े रूप सिरिफ धान कूटे या मांग के संग नाच-गाना के जउन रिवाज जुडे हैं, येहर भगवान सदाशिव के भिक्षाटन के बड़े रूप सिरिफ धान कटोरा के नाम ले जगजाहिर छग म छेरछेरा पुन्नी के दिन अन्न पर्व के रूप म देखे जाथे।
किसान उपजाये धान ले मिंजके कोठार म रास बनाके अन्नपूरना ”लक्ष्मी देवी” के रूप म नरियर अउ हूम-धूप ले पूजा करथे ओखर बाद कोठी म भंडारन करे खातिर ले जाथे। स्कंद पुरान म दान के महत्ता दरसाय गे हवय, ओखर मुताबिक कमाय धन के दसवां भाग दान करना आदमी के करतब है। येही सब ल आधार मानके छत्तीसगढ़ी समाज के पूरा सदस्य मन सकभर निभाय के उदीम म लगे रहिथे। येही दानसीलता के सबसे बड़े परब अउ निसानी के रूप में अन्नदान पर्व छेरछेरा तिहार छत्तीसगढ़ म देखे बर मिलथे।
छत्तीसगढ़ राज के किसान परिवार माने ”छत्तीसगढ़ी समाज” खातिर सेर-सरा बनाम छेरछेरा पुन्नी ह सबले बड़े अन्नदान परब (तिहार) आय। फेर ये दिन न तो कोनो नवा कपड़ा पहिने-ओढे क़े रिवाज हे न तो रोटी कलेवा बनाय के। ओखर बाद घलो दाता याचक अमीर गरीब ऊंच नीच सबके भेद भूलाके सबों घर के सेर-सीधा पाके गजबेच खुसी आनन्द-मंगल महसूस करथें।
ये ही अन्नदान परब के सुभ खड़ी ले छग भर म कतकोन सहकारी संस्था, रामायन मंडली, लीला मंडली, भजन मंडली सहकारी बैंक के रूप म रामकोठी, सिक्छिा मंदिर के रूप म जनता स्कूल के सुरूवात होय हवय। जेखर जरिया गरीब असहाय मन अन्नदान, ज्ञान दान, अऊ समाज म सहकारिता के भावना ल बिजहा रूप म बचा के रखे हवंय।
आज के भौतिकता के जुग म सोसनकारी पूंजीवादी व्यवस्था ले पीड़ित-प्रताड़ित जनता ल उबार खातिर सुभ भावना ले सहकारिता के नार अउ बगीचा ल फइलाय के जरूरत हवय। ताकि सोसनमुक्त समाज बनाय म सहायक हो सकय।
”जय अन्नदान पर्व जय छेरछेरा पुन्नी”
जागेश्वर प्रसाद