सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। तइहा के सियान मन कहय-बेटा! कुँआ-तरिया मा जलदेवती माता के निवास होथे रे। एमा कचरा.पथरा नइ डारय, अबड पाप होथे। फेर हमन नई मानेन। जम्मों कुँआ ला कचरा डार-डार के बराबर कर डारेन अउ तरिया ला तो बना के कई मंजिल के बिल्डिंग तान देन। अब कुँआ अउ तरिया के जघा ला हैंडपंप, मोटरपंप अउ स्वीमिंग पुल हा ले डारिस।
सावन के महीना मा बादर ले अमृत बरसथे। ए जम्मो अमृत ला सियान मन कुँआ अउ तरिया मा भर के राखे राहँय। ए अमृत ले जम्मों मनखे, रूख-राई अउ पशु-पक्षी भर के नही बल्कि धरती महतारी के घलाव प्यास बुझात रहिसे। अब तो जम्मों जीव-जन्तु के संगे-संग घरती महतारी के जीव घलाव त्राहि-त्राहि होगे हे। अउ गरमी के मारे हिमालय के बरफ हर घलाव कम होवत जाथे अउ समुद्र के पानी हर बाढत जाथे। संगवारी हो हमन बन ला उजार के फेर बन बना डारबो, कुँआ के जघा मा वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवा डारबो, फेर नदिया सुखा जाही तब दूसर नदिया नई बनाए सकन।
समुद्र मा पूरा आही तब पार नई बांधे सकन। धरती महतारी अउ जम्मों जीव-जन्तु के आत्मा ला तृप्त करे बर हमला फेर कुँआ अउ तरिया बनाए बर परही जब मुँइया के भीतर पानी जाही तभे उपरी बाढ ले हमर जिनगी बाँचही। सावन के महीना मा बादर ले अमृत बरसथे। जोरे सकत हव ततका जोर लेवव नइ तो बिन पानी सब सून हो जाही। धरती महतारी हमर अगोरा मा हवय के कब मोर लइकन मन फेर सावन के अमृत ला कुँआ-तरिया मा भर के राखही अठ जिनगी ला अपन अम्मर बनाही। तभे तो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! कुँआ-तरिया मा जलदेवती माता के निवास होथे रे। सियान बिना धियान नई होवय। उँखर बात ला गठिया के धरे मा ही भलाई हावै। सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हावै।
–रश्मि रामेश्वर गुप्ता