रंग म बूड के फागुन आ गे बइठ पतंग सवारी म
टेसू फूल धरे हे हाथ म ठाढे हावय दुवारी म ।
भौंरा कस ऑंखी हे वोकर आमा मौर हे पागा म
मुच – मुच हॉंसत कामदेव कस ठाढे हावय दुवारी म ।
मन ह मन मेर गोठियावत हे बुध ह बांदी हो गे आज
लाज लुकागे कहॉं कोजनी फागुन खडे दुवारी म ।
पिंवरा लुगरा पोलका पहिरे मंदिर जावत रहेंव मैं आज
दार – भात म करा ह पर गे फागुन खडे दुवारी म ।
रस्ता देखत रहेंव बरिस भर कैसे वोला बिदारौं मैं
‘शकुन’ तैं पहुना ल परघा ले ठाढे हावय दुवारी म ।
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [छ ग ]
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“बूड्र मरय नहकौनी दय” (छत्तीसगढ़ी गज़ल संग्रह) से