गढ़वाल के ऊंच-नीच धरती म जन्मे, प्रकृति के बीच म खेलत चन्द्रकला जी जब छत्तीसगढ़ के धरती म बहू बनके आइस। तब इंहा के प्रकृति म अपन मन ल बसा लीस। ‘मोर गोठ’ म लिखे हांवय के छत्तीसगढ़ के संस्कृति म कब घुल मिल गेंव पता नई चलिस। गांव-गांव घूमत ये कहिनी के जनम होवत गीस। ”बगरे गोठ” इही कहिनी के संकलन आय। एखर भूमिका लखनलाल गुप्त 1 जनवरी 1994 म लिखे हावंय।
ये संकलन के पहिली कहिनी ह बता देथे के लेखिका ह दू संस्कृति के संगम आय। एक नारी अपन मइके अउ ससुरार के जिनगी ल कइसे अलग-अलग सहेज के रखे रहिथे, जेन ह कभू-कभू बाहिर आथे। एक तरफ गढ़वाल के फौजी वातावरण अउ दूसर डाहर छत्तीसगढ़ के कलेवा अउ भाई दूज म भाई के अगोरा। ”दुलरवा” अइसने कहिनी आय भाई ह पाती भेजथे के मैं ह भाई दूज के आहूं। भाई दूज के पहिली दुलरवा शहीद हो जथे। ओखर अंतिम संस्कार ह घलो दुलारी बर सच नई राहय काबर के काम निपटे के बाद भाई के पाती आथे ”मैं भाई दूज म आहूं।” दुलारी कलेवा बना के रद्दा देखथे। हर साल अइसने होथे। एक साल एक फौजी पानी बर दरवाजा खटखटाथे त दुलारी ह ओला दुलरवा समझ के बइठारथे। ओला राखी बांध के खाना खवाथे। दुलारी के एक वाक्य ”आज तोर भांटो रहितिस त बतातेंव के देख मोर भाई कइसन मयारू हे।” फौजी के दिल रो डारथे। ये कहिनी के जनम तो डाकतार विभाग के सेती होईस, ये कहिनी ओला बिजरावत दिखथे।
आज के वातावरण के चिंता ह जनम दिस ‘बंचक’ कहिनी ल। बिना जान पहचान के कोनो ल घर म रखना नई चाही। छत्तीसगढ़ म भाभी के इस्थान बहुत ऊंचा हावय वो ह एक महतारी सरीख अपन परिवार ल सम्हालथे। ”कटे डारा” उही मया दुलार अउ नि:स्वार्थ भाव के कहिनी आय। बसंत आज देखथे के भौजी ल कइसे ओखर पसंद अउ चाय के बेरा के धियान हावय। बांटा मांगे बर आय बसंत अपन धरती के माटी तिलक लगा लेथे। ”मेड़वा टुरा” के कहिनी आज हर परिवार के कहिनी बनगे हावय। येमा एक महतारी के पीरा दिखथे जेन अकेल्ला पांच लइका ल खड़ा करीस। आज बेटा ह बहू के होगे, अब झामन अपन पति करा जाना चाहथे। लेखिका गांव-गांव घूमत बगरे रंग-रंग के गोठ के सकेला करत रहिथे। उही बेरा म एक पात्र फूलबासन मिल जथे, जेन ह मंगलवार ल छोड़ के रोज टोकनी म भगवान घर के मांगय। कहिथें न इच्छा के अंत नई होवय। वो ह भगवान के दरसन करा-करा के तिरिथ जाय के तैयारी करत हावय। एक मातृत्व के पीरा ‘सुरुज के नोनी’ म दिखथे जब बेटी के मऊत मां के ममता ल कइसे तोड़ देथे, दुनिया के मन वोला टोनही बना देथे।
अंग्रेजी माध्यम के पढ़ई अउ हिन्दी म पढ़े एक महतारी के बीच के तकलीफदायक धन कइसना होथे येला बहुत बारीकी ले लिखे हावय। ”लइका मन के भविष्य” बर महतारी स्वयं अंग्रेजी पढ़ना चाहथे। सोच प्रेरनादायक हावय। दूसर डाहर, ”बुधिया के सुख” के दायरा कुछु अउ हे। सिक्छित होय के खुसी अउ पोस्ट आफिस म पइसा जमा करे रे फारम भरे के खुसी। आज बुधिया आसीस देवत हावय बड़े बाड़ा के बाई ल जेन ह कहे रहिस हे ”सीख ले रे बुधिया तोर कामें आही।” सिक्छा के बात, परेतिन म अंधविश्वास दूर करे के संदेस, कुरा ससुर ले पर्दा करे के परथा ल दूर करे के बात लेखिका बहुत सहजता ले नान्हे कहिनी म कह दे हावय। ”दुनिया चांद म पहुंचगे फेर तूमन कुरा ससुर ले लुकावत हव।” टुकनी म तोपवा देहूं हास्य अऊ सहायता दूनो दिखाई देथे।
लेखिका के सोच ह कहिनी के रूप म अवतरित होगे हे। या कहे जा सकथे के छत्तीसगढ़ी के रयपुर अउ बिलासपुर म जगह- जगह घूमत चन्द्रकला जी रंग-रंग के बगरे गोठ के सकेला कर ले हावय ”महंगाई म सगा” आज के जीवन के सच्चाई आय। एक काम वाली बाई ”दुकलहिन के पीरा” म चन्द्रकला जी दूसर के जिनगी के एहसास म खोये हांवय। मनटोरा के समाज सेवा के भाव ल देखके फगनी घलो समाज सेविका बन जथे। कहिनी समाज सेवा के भाव ल पैदा करे बर बहुत हे। अंतिम ”सांतवा जनम” ये कहिनी संकलन के सांस आय। वट सावित्री के उपवास अउ कहिनी के माध्यम ले नारी के पीरा ल बताना ये संकलन के सफलता ल कहि देथे। सिरिफ एक वाक्य ”ये मोर सातवां जनम आय” लछमिन के मुंह ले बोलवा के लेखिका बिना कहे लछमिन के पीरा ल बताथे।
कहिनी मन म एक बहाव हे, जेमा पाठक ह बोहावत रहिथे। ठहरे बर कोनो मेर कांटा-खुंटी नइए। सरल मानक छत्तीसगढ़ी म लिखे कहिनी म बिलासपुर के छत्तीसगढ़ी के सब्द मिलथे। ये स्वाभाविक हे, कर्मभूमि के प्रभाव जादा रहिथे।
खाजा, पपची, ठेठरी, खुरमी सब्द कहिनी म अपनापन लाथे। आमा, बोईर सकेलना, बोईर ल कूट के नून-मिरचा डारके गुठिया बनाना हमर संस्कृति ल आक्सीजन देथे। उही मेर टेम, ईमली, लिस्ट, मैं फिर आहूं (मैं फेर आहूं) सरीख सब्द गोंटी कस दांत के बीच म आ जथे। फेर ये ह सच आय। जेन धरती ले धान उपजथे, उही धरती म चाउंर बनथे, कतको बचा ले धरती के कुछ अंस तो चाऊंर म आबे करथे। प्रूफ के गलती पढ़े के बहाव म बाधा जरूर पैदा करथे फेर एक छन म ये बाधा दूरिहा जथे।
कहिनी के संग म ”सुरता” घलो बने हावय। ये ह लेखिका के एक उपलब्धि आय। ”संस्मरण” के इस्थान म ”सुरता” शब्द रहितीस त छत्तीसगढ़ी संकलन म जुड़ाव आतीस। आज कहिनी लेखन कम होवत हावय, अइसना बेरा म अपन खेत खार ले बाहिर निकलके नवा कथानक के संग बगरे गोठ के आना, गद्य लेखन बर एक सुग्घर मोती के जुड़ जाना आय। चन्द्रकला जी ल छत्तीसगढी साहित्य के कोठी म नवा सोच ”बगरे गोठ” के कहिनी डारे बर बहुत-बहुत बधई।
सुधा वर्मा