चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 5 : अरुण कुमार निगम

कहूँ नाच-गम्मत कहूँ, कवी-सम्मलेन होय।

कहूँ संत-दरबार सजै, कहूँ मेर कीरतन होय।। ओ मईया ……

सिद्धि पीठ, मंदिर-मंदिर, जले जंवारा जोत।

जेकर दरसन मात्र ले, काज सुफल सब होत।। ओ मईया ……

कई कोस पैदल चलयं, हँस-हँस चढ़यं पहार।

मन मा भक्ति जगाय के, भक्तन पहुँचय दुवार।। ओ मईया ……

कोन्हों राखयं मौन बरत, कोन्हों करयं उपास।

माँ टोला अर्पित करयं, सरधा अउ बिस्वास।। ओ मईया ……

भक्ति-भाव म डूब के, ज्योती-कलस जलायं।

नर-नारी नव राती मा, मन वांछित फल पायं।। ओ मईया ……

माता-सेवा जब सुनय, मन मा उठय हिलोर।

तन-मन नाचय झूम के, होवै भाव-विभोर।। ओ मईया ……

साँझ बिहिनिया आरती, रोज उतारौं तोर।

भाव सागर ले पार कर, जीवन डोंगा मोर।। ओ मईया ……

सबो जियैं संसार मा, दया-मया के संग।

भेदभाव मिट जय सब, होय कभू न जंग।। ओ मईया ……

धरम नीति के जीत हो, दया मया हो चहुँ ओर।

पाप-कुमति के नस हो, अइसन कर दे अँजोर।। ओ मईया ……

अरुण कुमार निगम

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3 Thoughts to “चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 5 : अरुण कुमार निगम”

  1. shakuntala sharma

    गज़ल , दोहा सबोच ल ग अरुण भाई! तैं हर बड सुघ्घर लिखे हावस ग ।भगवान तोला जस देवय ।

  2. रमेशकुमार सिंह चौहान

    अरूण भैया अइसने परयास ले हमर साहित्य के धरोहर के कोठी भरही । बहुत सुघ्घर दोहावली बने हे बहुत बहुत आप ला बधाई

  3. ABHIJEET KUMAR HIRWANEEE

    बहुत सुघ्घर

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