कहूँ नाच-गम्मत कहूँ, कवी-सम्मलेन होय।
कहूँ संत-दरबार सजै, कहूँ मेर कीरतन होय।। ओ मईया ……
सिद्धि पीठ, मंदिर-मंदिर, जले जंवारा जोत।
जेकर दरसन मात्र ले, काज सुफल सब होत।। ओ मईया ……
कई कोस पैदल चलयं, हँस-हँस चढ़यं पहार।
मन मा भक्ति जगाय के, भक्तन पहुँचय दुवार।। ओ मईया ……
कोन्हों राखयं मौन बरत, कोन्हों करयं उपास।
माँ टोला अर्पित करयं, सरधा अउ बिस्वास।। ओ मईया ……
भक्ति-भाव म डूब के, ज्योती-कलस जलायं।
नर-नारी नव राती मा, मन वांछित फल पायं।। ओ मईया ……
माता-सेवा जब सुनय, मन मा उठय हिलोर।
तन-मन नाचय झूम के, होवै भाव-विभोर।। ओ मईया ……
साँझ बिहिनिया आरती, रोज उतारौं तोर।
भाव सागर ले पार कर, जीवन डोंगा मोर।। ओ मईया ……
सबो जियैं संसार मा, दया-मया के संग।
भेदभाव मिट जय सब, होय कभू न जंग।। ओ मईया ……
धरम नीति के जीत हो, दया मया हो चहुँ ओर।
पाप-कुमति के नस हो, अइसन कर दे अँजोर।। ओ मईया ……
अरुण कुमार निगम
गज़ल , दोहा सबोच ल ग अरुण भाई! तैं हर बड सुघ्घर लिखे हावस ग ।भगवान तोला जस देवय ।
अरूण भैया अइसने परयास ले हमर साहित्य के धरोहर के कोठी भरही । बहुत सुघ्घर दोहावली बने हे बहुत बहुत आप ला बधाई
बहुत सुघ्घर