चैत-नवरात म छत्तीसगढ़ी दोहा 3 : अरुण कुमार निगम


दुर्गा के दरबार मा, मिटे, दरद ,दुःख, क्लेस।

महिमा गावें रात-दिन, ब्रम्हा बिस्नु महेस।। ओ मईया ……

किरपा कर कात्यायिनी, मोला तहीं उबार।

तोर सरन मा आये हौं, भाव-सागर कर पार।। ओ मईया ……

हे महिसासुर मर्दिनी, सुन ले हमर गोहार।

पाप मिटा अउ दूर कर, जग के अतियाचार।। ओ मईया ……

दरसन दे जग-मोहिनी, मन परसन हो जाय।

कट जाय कस्ट, कलेस अउ, सबके नैन जुड़ाय।। ओ मईया ……

सुमिरौं तोरे नाम ला, जस गावौं दिन-रात।

सर्व मंगला सीतला, सुख के कर बरसात।। ओ मईया ……

शैल पुत्री सिंहवाहिनी, पैयाँ लागौं तोर।

तोर सरन मा आये हौं, दुःख-संकट हर मोर।। ओ मईया ……

तीन लोक, चारों जुग मा, तोर ममता के छाँह।

जगदम्बा मा उबार ले, मोर पकड़ के बाँह।। ओ मईया ……

हे महामाया दूर कर, जग के माया जाल।

मन झन अरझे मोह मा, काट दे सब जंजाल।। ओ मईया ……

पाँव परत हौं चंडिका, दुःख बिपदा कर दूर।

तोर सरन मा आये ले, दुःख बन उड़य कपूर।। ओ मईया ……

अरुण कुमार निगम

सरलग …

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