जेन भाखा म जतके सरलता,सहजता अउ सरलगता होही वो भाखा उतके उन्नति करही, अँग्रेजी भाखा येकर साक्षात उदाहरण हवय । अउ जेन भाखा म क्लिष्टता होही वो भाखा ह नंदाये के स्थिति म पहुंच जाथे जइसे कि हमर संस्कृत । यदि हम ये सोचथन कि छत्तीसगढी ह वैश्विक भाखा बनय त ओखर सरलता अउ सहजता उपर हमन ल ध्यान दे बर परही । खास करके संज्ञा शब्द के उपयोग करत बेरा । जडउन शब्द मन हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी या अन्य भाखा ले आय हे वो शब्द ल ज्यों के त्यौ छत्तीसगढी म ले बर परही नहीं ते दूसर भाखा के शब्द ल छत्तीसगढी बनाय के प्रयास म हम पाठक के आघू म भ्रम के स्थिति पैदा करे के काम करबो येहा हमर छत्तीसगढी भाखा के विकास बर रूकावट बनही । जइसे साईकिल ल हिन्दी म द्वि चक्रवाहिनी तो करिन फेर सफल होईस का ….नहीं । आपरेशन रूम ल शत्य क्रिया कक्ष कहिबो तक कतका झिन समझही … ? इही समस्या अब छत्तीसगढी भाखा म आवत हव्य ।
ये मेर बात केवल छत्तीसगढी भाखा के जानकार या छत्तीसगढी बोलईया मन के नई हे,ये मेर बात बाहिर ले हमर छ.ग. म आये मनखे अउ आई.ए.एस. मन के घलो हवय जङडन ल हम चाहथन कि उन छत्तीसगढी बोलय । यदि संज्ञा शब्द मन ल हम परिवर्तित करके लिखबो त उँकर आघू भ्रम के स्थिति निर्मित हो जही अउ उन ला छत्तीसगढी सीखे म अड्चन घलो होही । हर शब्द के छत्तीसगढी बनाय के प्रयास म हम क्लिष्टता ल जनम देबो जउन हमर भाखा बर उचित नइ होही । छत्तीसगढी भाखा म सरलता अउ सहजता ल स्वीकार करे ल परही यदि हम छत्तीसगढी के विकास के बात करथन ।
व्यक्तिबाचक,जाति वाचक, स्थानबोधक संज्ञा शब्द ल बिना परिवर्तित करे मूलरूप म लिखना चाही – शिवनारायण – सिवनारायण (×), निशा – निसा (20), शिवाजी -सिवाजी (2), शशिभूषण -ससिभूषण (×), शिव – सिव (×), शंकराचार्य – संकराचार्य (×), संतोष- संतोस (×), नंदकिशोर-नंदकिसोर (×), त्रिभुवन-तीरभुवन (×) लिखना अनुचित हवय । अब यदि शंकर ल हम संकर (×) लिखत हन त येकर अर्थ ह बदल जाथे – संकर माने क्रास प्रजाति होथे । प्रयोग ल- परयोग (×), प्रदीप ल हम परदीप (×) लिखबो तब परदीप माने – पर+दीप-मतलब दूसर दीप ये मेर शब्द के अर्थ ह बदल जाथे अउ भ्रम के स्थिति उत्पन्न होथे ।
शर्मा-सरमा (×), वर्मा -वरमा (×), शुक्ल-सुकुल (2), मिश्रा-मिसरा (×), शक्कर- सक्कर (20), शास्त्री -सासतरी (×) या सास्तरी (×), प्रजातंत्र- परजातंतर (×) लिखना अनुचित हवय । अट्सन शब्द ल पढे के बाद हमी मन सोंच म पर जथन कि ये कोन से नवा शब्द आगे भाई ? तब सोचव कि जब येला दूसर भाखा के मनखे मन पढही त का समझही ? जब उन हमर भाखा के शब्द ल ही नइ त छत्तीसगढी ल उन काबर सीखही ?
कुछ स्थान बोधक संज्ञा शब्द ल देखव -जशपुर-जसपुर (×), शिवरीनारायण- सिवरीनारायण (×) कवर्धा -कवरधा (×) ,काशी-कासी (×), शिमला-सिमला (×) लिखे म ये स्थान ह कोनो दूसर जघा के बोध कराथे अउ हम सोंच म पर जथन अरे ये नवा जघा ह कोन मेर हवय । कुछ लेखक मन प्रचार-प्रसार ल छत्तीसगढी बनाये के चक्कर म “परचार-परसार , अउ प्रचलन ल परचलन लिखत हवय, ये मेर भ्रम के स्थिति उत्पन्न हो जाथे संगे-संग ये शब्द के अर्थ घलो बदल जाथे | प्रदेश ल परदेस लिखथन त ओकर अर्थ ह बदल जाथे पर + देस अर्थात दूसर देश । प्रदेश ल छत्तीसगढी म राज लिख सकथन । धन्यवाद ल धनियाबाद, धनबाद(×), ट्रेनिंग ल टरेनिंग(×), स्कूल ल इसकूल, संस्कृति ल संसकिरिती (×), श्री ल सिरी (×) अउ श्रीमती ल सिरिमती (×) लिखना कदापि उचित नई हे,येकर ले नवा पीढी के आघू भ्रम के स्थिति उत्पन्न हो जही जउन हा छत्तीसगढी विकास बर बाधा होही ।
वाचिक परंपरा म कई शब्द अलग बोले जाथे लेकिन लेखन म हम वो शब्द ल सही लिखन शब्द ला बिगाड के हम छत्तीसगढी भाखा के उत्थान नइ कर सकन । यदि छत्तीसगढी ल अंतर्राष्ट्रीय स्तर म स्थापित करना हे त खासकर संज्ञा शब्द ल प्रयोग करे के बेरा बनेच सावधानी राखे ल परही । छत्तीसगढी शब्द मन ह क्लिष्ट झन होय येकर पूरा खियाल रखे बर परही तभे छत्तीसगढी भाखा के समुचित विकास हो पाही ।
अजय अमृतांशु
Bane kaht hav amritanshuhuji